Thursday, 5 October 2023

इच्छामृत्यु

इच्छामृत्यु


हाल ही में
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक बुजुर्ग दंपत्ति की उस याचिका को अस्वीकार कर दिया जिसमें उन्होंने अपने कोमाटोज (गंभीर रूप से अचेत) पुत्र, जो गिरने के कारण 11 वर्षों से बिस्तर पर है, के लिये  "निष्क्रिय इच्छामृत्यु" (Passive Euthanasia) की मांग की थी।

  • इस निर्णय ने भारत में इच्छामृत्यु के कानूनी और नैतिक आयामों पर चर्चा को पुनः शुरू कर दिया है।

मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने रोगी के माता-पिता की याचिका के विरुद्ध निर्णय सुनाते हुए कहा कि यह मामला निष्क्रिय इच्छामृत्यु के दायरे में नहीं आता क्योंकि मरीज किसी भी जीवन रक्षक प्रणाली पर नहीं है और उसे फीडिंग ट्यूब के जरिये पोषण प्राप्त हो रहा है।
  • न्यायालय ने कहा कि उसके जीवन को समाप्त करने की अनुमति देना निष्क्रिय इच्छामृत्यु नहीं बल्कि सक्रिय इच्छामृत्यु होगी जो भारत में अवैध है।

निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) क्या है?

  • इच्छामृत्यु :
    • इच्छामृत्यु, रोगी की पीड़ा को सीमित करने के लिये उसके जीवन को समाप्त करने की प्रथा है।
  • इच्छामृत्यु के प्रकार:
    • सक्रिय इच्छामृत्यु (Active euthanasia): 
      • सक्रिय इच्छामृत्यु तब होती है जब चिकित्सा पेशेवर या कोई अन्य व्यक्ति जानबूझकर ऐसा कुछ करता है जिससे रोगी की मृत्यु हो जाती है, जैसे घातक इंजेक्शन देना।
    • निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia): 
      • निष्क्रिय इच्छामृत्यु चिकित्सा उपचार को रोकने या वापस लेने का कार्य है, जैसे कि किसी व्यक्ति को मरने की अनुमति देने के उद्देश्य से जीवन समर्थक उपकरणों को बंद कर देना या वापस लेना है।
  • भारत में इच्छामृत्यु:
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कॉमन कॉज बनाम भारत संघ (2018) में एक ऐतिहासिक निर्णय में एक व्यक्ति के सम्मान के साथ मरने के अधिकार को मान्यता देते हुए कहा कि एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति निष्क्रिय इच्छामृत्यु का विकल्प चुन सकता है और चिकित्सा उपचार से इनकार हेतु लिविंग विल निष्पादित कर सकता है।  
      • इसने असाध्य रूप से बीमार रोगियों द्वारा बनाई गईलिविंग विलके लिये भी दिशा-निर्देश निर्धारित किये, जिन्हें पहले से ही पता होता है कि उनके स्थायी रूप से निश्चेत अवस्था में चले जाने की संभावना है।
      • इससे पहले वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने अरुणा शानबाग मामले में पहली बार निष्क्रिय इच्छामृत्यु को मान्यता दी थी।
    • न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि "मृत्यु की प्रक्रिया में गरिमा, अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है। किसी व्यक्ति को जीवन के अंत में गरिमा से वंचित करना व्यक्ति को एक सार्थक अस्तित्व से वंचित करना है।"
  • इच्छामृत्यु वाले विभिन्न देश:
    • नीदरलैंड, लक्ज़मबर्ग, बेल्जियम किसी भी ऐसे व्यक्ति, जो "असहनीय पीड़ा" का सामना करता है और जिसके स्वास्थ्य में सुधार की कोई संभावना नहीं है, को इच्छामृत्यु एवं सहायता प्राप्त आत्महत्या दोनों की अनुमति देते हैं। 
    • स्विट्ज़रलैंड में इच्छामृत्यु प्रतिबंधित है लेकिन किसी डॉक्टर या चिकित्सीय पेशेवर की उपस्थिति तथा सहायता से मृत्यु प्राप्त करने की अनुमति है।
      • वर्ष 1942 से, स्विट्ज़रलैंड ने सहायता प्राप्त आत्महत्या की अनुमति दी है, जिसमें व्यक्तिगत पसंद और मरने की प्रक्रिया पर नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। कानून के अनुसार व्यक्तियों का मस्तिष्क स्वस्थ होना चाहिये और उनका निर्णय स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों से प्रेरित नहीं होना चाहिये।
    • ऑस्ट्रेलिया ने भी दोनों प्रकार की इच्छामृत्यु को वैध कर दिया है। यह उन वयस्कों पर लागू होता है जिनमें पूर्ण निर्णय लेने की क्षमता है तथा वे ऐसी लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हैं जिनकी छह या बारह महीनों के भीतर मृत्यु होने की संभावना है।
    • नीदरलैंड में इच्छामृत्यु के लिये एक सुस्थापित विधिक ढाँचा है, जिसे वर्ष 2001 के "अनुरोध पर जीवन की समाप्ति और सहायता प्राप्त आत्महत्या (समीक्षा प्रक्रिया) अधिनियम" द्वारा विनियमित किया जाता है।

निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिशानिर्देशों में हाल ही में क्या परिवर्तन किये गए?

  • वर्ष 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 के इच्छामृत्यु दिशानिर्देशों को संशोधित कर दिया, ताकि गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिये निष्क्रिय इच्छामृत्यु प्रदान करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके।
    • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने सम्मान के साथ मृत्यु के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी तथा इस अधिकार को लागू करने के लिये असाध्य रूप से बीमार रोगियों के लिये दिशानिर्देश निर्धारित किये।
  • सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों में संशोधन:
    • लिविंग विल का सत्यापन: न्यायालय ने लिविंग विल (एक दस्तावेज़ जिसमें कोई व्यक्ति यह बताता है कि वह भविष्य में गंभीर बीमारी की हालत में किस तरह का इलाज कराना चाहता है) पर न्यायिक मजिस्ट्रेट के सत्यापन की आवश्यकता को हटा दिया है। अब, नोटरी या राजपत्रित अधिकारी द्वारा सत्यापन ही पर्याप्त है, जिससे व्यक्तियों के लिये अपने जीवन को समाप्त करने के विकल्प को व्यक्त करने की प्रक्रिया सरल हो गई है।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य डिजिटल रिकॉर्ड के साथ एकीकरण: पहले, लिविंग विल को ज़िला न्यायालय द्वारा रखा जाता था। संशोधित दिशा-निर्देशों में यह अनिवार्य किया गया है कि यह दस्तावेज़ राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड का हिस्सा हों। इससे देश भर के अस्पतालों और डॉक्टरों के लिये सरल पहुँच सुनिश्चित होती है, जिससे समय पर निर्णय लेने में सुविधा होती है।
    • इच्छामृत्यु से इनकार के लिये अपील प्रक्रिया: यदि किसी अस्पताल का मेडिकल बोर्ड जीवन रक्षक प्रणाली हटाने की अनुमति देने से इनकार करता है, तो रोगी/मरीज़ का परिवार संबंधित उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। इसके बाद न्यायालय मामले का पुनर्मूल्यांकन करने हेतु एक नया मेडिकल बोर्ड गठित करेगा, ताकि मामले की गहन और न्यायपूर्ण समीक्षा सुनिश्चित की जा सके।

इच्छामृत्यु से जुड़े नैतिक पहलू क्या हैं?

  • स्वायत्तता और सूचित सहमति: इच्छामृत्यु में व्यक्तिगत स्वायत्तता का सम्मान करना शामिल है, जिसका अर्थ है कि लोगों को अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिये, विशेष रूप से यदि वे मानसिक रूप से सक्षम हैं तो पीड़ा को समाप्त करने का अधिकार होना चाहिये। 
    • इसके लिये सूचित सहमति की भी आवश्यकता होती है, जिसमें व्यक्ति को अपनी स्थिति, इच्छामृत्यु की प्रक्रिया और इसके परिणामों को पूरी तरह से समझना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उस पर दबाव नहीं डाला जा रहा है या उसके साथ किसी भी प्रकार का छल-कपट नहीं किया जा रहा है।
  • जीवन की गुणवत्ता बनाम जीवन की शुचिता: इच्छामृत्यु पर विमर्श प्रायः जीवन की गुणवत्ता बनाम जीवन की शुचिता पर केंद्रित होता है। जीवन की गुणवत्ता में यह तर्क दिया जाता है कि कि पीड़ा को समाप्त करना और गंभीर बीमारी के दौरान अपनी गरिमा को संरक्षित करना नैतिक हो सकता है जबकि जीवन की शुचिता या पवित्रता अक्सर धार्मिक या दार्शनिक मान्यताओं को दर्शाती है जिसके तहत यह माना जाता है कि जीवन आंतरिक रूप से मूल्यवान है और इसे समय से पहले समाप्त नहीं किया जाना चाहिये।
  • विधिक और सामाजिक निहितार्थ: इच्छामृत्यु से संबंधित विधिक रूपरेखा क्षेत्राधिकार के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है, जो जीवन के अंत से जुड़े मुद्दों पर विभिन्न सांस्कृतिक दृष्टिकोणों और नैतिक विमर्शों को दर्शाती है। 
    • इसके सामाजिक प्रभाव में चिकित्सा पेशेवरों की भूमिका, सामाजिक उत्तरदायित्व तथा इच्छामृत्यु की मांग के अंतर्निहित कारणों को संबोधित करने के लिये उपशामक देखभाल तथा मनोवैज्ञानिक सहायता तक समान पहुँच की आवश्यकता से संबंधित प्रश्न शामिल हैं।


COMPUTER

FULL FORM OF COMPUTER

            C -      Common (सामान्य)
            O -      Operating (संचालित)
            M -     Machine (मशीन)
            P -      Purposely (विशेष रूप से)
            U -      Used for (के लिए प्रयुक्त)
            T -     Technological (तकनीकी)
            E -     Educational (शैक्षणिक)
            R -     Research (अनुसंधान) 

    इसलिए, इस अनौपचारिक पूर्ण रूप के अनुसार, कंप्यूटर का अर्थ है एक सामान्य संचालित मशीन जो विशेष रूप से तकनीकी, शैक्षणिक और अनुसंधान उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाती है।

 कंप्यूटर की परिभाषा:

    एक कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो उपयोगकर्ता से डेटा (इनपुट) स्वीकार करता है, उस डेटा को निर्देशों (प्रोग्राम) के अनुसार संसाधित करता है, और फिर परिणाम (आउटपुट) प्रदान करता है। यह डेटा को संग्रहीत, पुनर्प्राप्त और संसाधित करने में सक्षम है।

कंप्यूटर परिचय

    कंप्यूटर, आधुनिक युग का एक अभिन्न अंग है, जिसने हमारे जीवन के लगभग हर पहलू को गहराई से प्रभावित किया है। यह एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो डेटा स्वीकार करने, उसे निर्देशों के अनुसार संसाधित करने और परिणाम के रूप में सूचना उत्पन्न करने में सक्षम है। 'कंप्यूटर' शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द 'कंप्यूटारे' से हुई है, जिसका अर्थ है 'गणना करना'। यह प्रारंभिक उद्देश्य को दर्शाता है जब कंप्यूटर मुख्य रूप से गणना करने वाले उपकरणों के रूप में परिकल्पित किए गए थे।

    हालांकि, समय के साथ, कंप्यूटर की परिभाषा और क्षमताएं काफी विकसित हुई हैं। आज, एक आधुनिक डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर प्रोग्राम नामक सामान्य संचालन सेट कर सकता है, जिससे वे विभिन्न प्रकार के कार्य करने में सक्षम हो जाते हैं। यह बहुमुखी प्रतिभा उन्हें बैंकिंग, टिकट आरक्षण, अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों, हवाई अड्डों, टेलीविजन और विज्ञान प्रयोगशालाओं जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपरिहार्य बनाती है। वास्तव में, कंप्यूटर हमारे दैनिक जीवन का एक इतना महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं कि उन्हें 'आमतौर पर संचालित मशीन विशेष रूप से तकनीकी शिक्षा और अनुसंधान के लिए उपयोग की जाती है' के रूप में वर्णित किया गया है।

    प्रारंभ में, कंप्यूटरों का मुख्य कार्य गणितीय गणनाएँ करना था। हालाँकि, प्रोग्रामों के विकास और तार्किक कार्यों को करने की क्षमता के एकीकरण ने उनके दायरे का नाटकीय रूप से विस्तार किया है। यह परिवर्तन कंप्यूटिंग प्रक्रियाओं को सॉफ्टवेयर में सारणीबद्ध करने की शक्ति को दर्शाता है। कंप्यूटरों को 'इलेक्ट्रॉनिक उपकरण' के रूप में बार-बार जोर देना उनके कामकाज में विद्युत इंजीनियरिंग और डिजिटल लॉजिक के महत्व को रेखांकित करता है। बिजली का उपयोग बाइनरी सिग्नल (0 और 1) के रूप में डेटा के तेजी से प्रसंस्करण और हेरफेर की अनुमति देता है। डेटा और प्रोग्राम को 0 और 1 के इलेक्ट्रॉनिक रूप में परिवर्तित करना (डिजिटल कंप्यूटर) एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में प्रकाश डाला गया है, जिसने सूचना के विश्वसनीय और तेज हेरफेर को सक्षम किया है।

    इसके अलावा, कंप्यूटर सिस्टम के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के बीच सहक्रियात्मक संबंध को प्रारंभिक परिभाषाओं में ही उल्लेख किया गया है। एक कंप्यूटर केवल एक भौतिक मशीन (हार्डवेयर) नहीं है, बल्कि कार्यों को करने के लिए निर्देशों (सॉफ्टवेयर) की भी आवश्यकता होती है। ये इस बात पर जोर देते हैं कि एक कंप्यूटर अकेले काम नहीं कर सकता है और कार्य करने के लिए विभिन्न उपकरणों और प्रोग्रामों (हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर) की आवश्यकता होती है। यह सहक्रियात्मक संबंध किसी भी कंप्यूटर के लिए उपयोगी कार्य करने के लिए आवश्यक है।

यह अध्याय कंप्यूटरों का परिचय प्रदान करने का लक्ष्य रखता है, जिसमें उनकी बुनियादी अवधारणाओं, इतिहास, प्रकारों, घटकों, अनुप्रयोगों, लाभों, हानियों और भविष्य के रुझानों को शामिल किया गया है। अध्याय को उपयोगकर्ता के प्रश्न के प्रत्येक पहलू को व्यवस्थित रूप से संबोधित करने के लिए संरचित किया जाएगा, जिससे कंप्यूटरों की व्यापक समझ बनेगी।




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