पर्यावरण संरक्षण आज वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। भारत में भी इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, जिनमें से एक प्रमुख मील का पत्थर है **पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, १९८६ (EPA, 1986)**। यह अधिनियम पर्यावरण की सुरक्षा और उसमें सुधार के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इस अधिनियम की **धारा ३** विशेष रूप से केंद्रीय सरकार को पर्यावरण संरक्षण और सुधार के लिए व्यापक शक्तियां प्रदान करती है।
**धारा ३ का महत्व:**
धारा ३ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, १९८६ का एक केंद्रीय उपबंध है। यह धारा केंद्रीय सरकार को पर्यावरण की रक्षा, सुरक्षा, सुधार और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक सभी उपाय करने का अधिकार देती है। इन उपायों में किसी भी व्यक्ति, संगठन या प्राधिकरण के लिए निर्देश जारी करना शामिल है, चाहे वह सरकारी हो या निजी। यह धारा केंद्रीय सरकार को एक नियामक और प्रवर्तन निकाय के रूप में सशक्त बनाती है, जो पर्यावरण के मुद्दों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
**धारा ३ के तहत केंद्रीय सरकार की मुख्य शक्तियां:**
धारा ३ केंद्रीय सरकार को कई प्रकार की शक्तियां प्रदान करती है। इनमें से कुछ प्रमुख शक्तियां निम्नलिखित हैं:
* **देशव्यापी पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम बनाना और उनका कार्यान्वयन:** केंद्रीय सरकार पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार के लिए राष्ट्रव्यापी योजनाएं और कार्यक्रम तैयार कर सकती है और उनका कार्यान्वयन कर सकती है। इसमें विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं जैसे प्रदूषण नियंत्रण, जैव विविधता संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन आदि से निपटने के लिए नीतियां और रणनीतियां शामिल हो सकती हैं।
* **विभिन्न प्राधिकरणों के कार्यों का समन्वय:** पर्यावरण संरक्षण के प्रयास अक्सर कई मंत्रालयों, विभागों और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की आवश्यकता होती है। धारा ३ केंद्रीय सरकार को इन विभिन्न प्राधिकरणों के कार्यों का समन्वय करने का अधिकार देती है, ताकि एक एकीकृत और प्रभावी दृष्टिकोण अपनाया जा सके।
* **पर्यावरणीय प्रदूषण के मानक निर्धारित करना:** केंद्रीय सरकार विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों के लिए उत्सर्जन और निर्वहन के मानक निर्धारित कर सकती है। यह उद्योगों, वाहनों और अन्य स्रोतों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद करता है।
* **उद्योगों और संचालन के लिए नियम बनाना:** केंद्रीय सरकार उद्योगों, प्रक्रियाओं और संचालन के लिए नियम और दिशानिर्देश बना सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाएं। इसमें खतरनाक पदार्थों का प्रबंधन, अपशिष्ट उपचार और संसाधन दक्षता जैसे पहलुओं को शामिल किया जा सकता है।
* **पर्यावरणीय प्रदूषण के क्षेत्रों को प्रतिबंधित करना:** केंद्रीय सरकार उन क्षेत्रों को निर्दिष्ट कर सकती है जहां कुछ प्रकार के उद्योग या संचालन प्रतिबंधित या विनियमित हैं ताकि इन क्षेत्रों में पर्यावरणीय गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके।
* **प्रयोगशालाएं स्थापित करना और मान्यता देना:** पर्यावरण प्रदूषण के नमूनों के विश्लेषण और परीक्षण के लिए केंद्रीय सरकार प्रयोगशालाएं स्थापित कर सकती है या मौजूदा प्रयोगशालाओं को मान्यता दे सकती है। यह पर्यावरण प्रदूषण की निगरानी और नियंत्रण के लिए आवश्यक वैज्ञानिक डेटा प्रदान करता है।
* **पर्यावरण प्रदूषण के कारणों और रोकथाम के लिए अनुसंधान:** केंद्रीय सरकार पर्यावरण प्रदूषण के कारणों, प्रकृति और सीमा पर अनुसंधान को प्रोत्साहित कर सकती है और उसके लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती है। यह पर्यावरण संबंधी समस्याओं के समाधान खोजने में मदद करता है।
* **जानकारी एकत्र करना और प्रसारित करना:** केंद्रीय सरकार पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित जानकारी एकत्र कर सकती है और उसे प्रसारित कर सकती है। यह जागरूकता बढ़ाने और जनता को पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में सूचित करने में मदद करता है।
* **अधिकारियों की नियुक्ति:** धारा ३ के तहत अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए केंद्रीय सरकार आवश्यक अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है और उन्हें शक्तियां सौंप सकती है।
**धारा ३ के कार्यान्वयन का महत्व:**
धारा ३ के तहत केंद्रीय सरकार की शक्तियों का प्रभावी कार्यान्वयन भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। इन शक्तियों का उपयोग करके,
केंद्रीय सरकार:
* **प्रदूषण को नियंत्रित कर सकती है:** मानकों और नियमों को लागू करके, केंद्रीय सरकार विभिन्न स्रोतों से होने वाले प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकती है।
* **प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा कर सकती है:** पर्यावरण संरक्षण उपायों को लागू करके, केंद्रीय सरकार वन, वन्यजीव, जल संसाधन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा कर सकती है।
* **पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है:** समग्र पर्यावरणीय गुणवत्ता में सुधार के लिए केंद्रीय सरकार विभिन्न कार्यक्रम और नीतियां लागू कर सकती है।
* **सतत विकास को बढ़ावा दे सकती है:** पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को आर्थिक विकास के साथ एकीकृत करके, केंद्रीय सरकार सतत विकास को बढ़ावा दे सकती है।
**निष्कर्ष:**
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, १९८६ की धारा ३ केंद्रीय सरकार को पर्यावरण संरक्षण और उसमें सुधार के लिए एक मजबूत कानूनी आधार प्रदान करती है। इन व्यापक शक्तियों का उपयोग करके, केंद्रीय सरकार भारत में पर्यावरण की सुरक्षा और गुणवत्ता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इन शक्तियों का प्रभावी और पारदर्शी उपयोग भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह आवश्यक है कि केंद्रीय सरकार इन शक्तियों का जिम्मेदारी से और जनता के सर्वोत्तम हित में उपयोग करे।