Saturday, 10 May 2025

राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, २०१०: अपील और दंड संबंधी प्रावधान

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) अधिनियम, २०१०, भारत में पर्यावरण संरक्षण और उससे संबंधित मामलों के निपटान के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी ढांचा प्रदान करता है। यह अधिनियम न केवल पर्यावरणीय विवादों के शीघ्र और प्रभावी समाधान के लिए तंत्र स्थापित करता है, बल्कि इसमें पारित आदेशों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए अपील और दंड संबंधी विशिष्ट प्रावधान भी शामिल हैं। 


**अपील संबंधी प्रावधान:**

एनजीटी अधिनियम की धारा २२ के अनुसार, अधिकरण द्वारा पारित किसी भी आदेश या निर्णय के विरुद्ध भारत के **उच्चतम न्यायालय** में अपील की जा सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि एनजीटी द्वारा पारित अंतिम आदेश के **९० दिनों** के भीतर उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की जानी चाहिए। हालांकि, उच्चतम न्यायालय यदि संतुष्ट है कि अपीलार्थी निर्धारित समय सीमा के भीतर अपील दायर करने में सक्षम नहीं था, तो वह ९० दिनों के बाद भी अपील स्वीकार कर सकता है।

यह अपील का अधिकार उन व्यक्तियों या संस्थाओं को प्रदान किया गया है जो एनजीटी के आदेश या निर्णय से व्यथित हैं। इसका अर्थ है कि यदि कोई व्यक्ति, कंपनी, सरकारी विभाग या कोई अन्य संस्था एनजीटी द्वारा पारित आदेश से असंतुष्ट है, तो उन्हें उच्चतम न्यायालय में अपील करने का कानूनी अधिकार प्राप्त है।

अपील प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि एनजीटी द्वारा पारित आदेशों की वैधता और निष्पक्षता की समीक्षा की जा सके, और यदि आवश्यक हो, तो न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर पर सुधार किया जा सके। यह एक महत्वपूर्ण जांच और संतुलन तंत्र प्रदान करता है।

**दंड संबंधी प्रावधान:**

एनजीटी अधिनियम के तहत पारित आदेशों और निर्देशों का पालन न करना एक गंभीर अपराध माना जाता है और इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान है। अधिनियम की धारा २६ उन दंडों का विवरण देती है जो एनजीटी के आदेशों का अनुपालन न करने पर लागू होते हैं।

* **व्यक्तियों के लिए दंड:** यदि कोई व्यक्ति एनजीटी द्वारा पारित किसी भी आदेश, निर्णय या पुरस्कार का पालन करने में विफल रहता है, तो उसे **तीन साल तक के कारावास** या **दस करोड़ रुपये तक के जुर्माने** से दंडित किया जा सकता है, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
* **कंपनियों के लिए दंड:** यदि कोई कंपनी एनजीटी द्वारा पारित किसी भी आदेश, निर्णय या पुरस्कार का पालन करने में विफल रहती है, तो उसे **पच्चीस करोड़ रुपये तक के जुर्माने** से दंडित किया जा सकता है।
* **निरंतर उल्लंघन के लिए दंड:** यदि उल्लंघन जारी रहता है, तो पहली दोषसिद्धि के बाद प्रत्येक दिन के लिए **एक लाख रुपये तक का अतिरिक्त जुर्माना** लगाया जा सकता है, जब तक कि उल्लंघन जारी रहता है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि उल्लंघनकर्ता शीघ्रता से आदेशों का पालन करें।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अधिनियम की धारा २७ यह भी प्रावधान करती है कि यदि अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है, तो न केवल कंपनी, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति जो अपराध के समय कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार था, को भी दोषी माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, जब तक कि वे यह साबित न कर दें कि अपराध उनकी जानकारी के बिना हुआ या उन्होंने अपराध को रोकने के लिए उचित सावधानी बरती थी।

ये दंड संबंधी प्रावधान एनजीटी के आदेशों की प्रभावशीलता और प्रवर्तनीयता सुनिश्चित करते हैं। वे पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन के लिए एक मजबूत निवारक के रूप में कार्य करते हैं और उल्लंघनकर्ताओं को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराते हैं।

**निष्कर्ष:**

राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, २०१०, एक व्यापक और प्रभावी कानूनी ढांचा है जो भारत में पर्यावरण संरक्षण को मजबूत करता है। अपील और दंड संबंधी इसके प्रावधान महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे न केवल एनजीटी द्वारा पारित आदेशों की समीक्षा और संभावित सुधार के लिए मार्ग प्रदान करते हैं, बल्कि उनके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत प्रवर्तन तंत्र भी स्थापित करते हैं। ये प्रावधान यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि पर्यावरणीय न्याय केवल कागजों पर न रहे, बल्कि व्यवहार में भी लागू हो, जिससे हमारे पर्यावरण की सुरक्षा और टिकाऊ विकास को बढ़ावा मिले।

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