Tuesday, 1 April 2025

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)

 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)

इस अधिनियम को भारत सरकार ने 7 सितंबर 2005 में पारित किया था। आरंभ में इस अधिनियम को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम अर्थात नरेगा के नाम से जाना जाता था। 2 अक्टूबर 2009 को इस अधिनियम का नाम बदलकर महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम कर दिया गया था। इस योजना के कार्य की निगरानी ग्रामीण विकास मंत्रालय राज्य सरकारों के साथ मिलकर करता है। यह भारत सरकार की एकमात्र ऐसी योजना है, जो भारत में काम के अधिकार की गारंटी देती है। भारत सरकार के अनुसार यह योजना काम की गारंटी देने वाली विश्व की सबसे बड़ी योजना है।

 

इस योजना को भारत सरकार ने सामाजिक कार्यों में सुधार के रूप में भारत में प्रस्तुत किया था। इस योजना के तहत कार्यों को सोशल ऑडिट करवाया जाना आवश्यक है, जिसके कारण इस योजना के काम में पारदर्शिता एवं जवाबदेही आती है। इस योजना के तहत जितने भी प्रकार के कार्य निर्धारित किए गए हैं, उन कार्यों को ग्राम पंचायत एवं ग्राम सभा के माध्यम से मंजूरी प्रदान की जाती है एवं उन कार्यों मैं सबसे पहले किस काम को करना है, यह प्राथमिकता ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत ही तय करती।

उद्देश्य

 

इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले परिवार के वयस्क यदि काम की मांग करते हैं, तो सरकार उन वयस्कों को 15 दिनों में काम देगी। यदि सरकार 15 दिनों में काम नहीं देती है, तो उन वयस्कों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा।

कम से कम 100 दिनों तक अकुशल शारीरिक काम प्रदान करना इस योजना का मुख्य उद्देश्य।

सिंचाई चैनल, चेक डैम, रिसाव टैंक, सड़क की परत, तालाब, खेत आदि मनरेगा की संपत्तियां हैं। इस योजना में इन सभी का कार्य किया जाता है।

उपलब्धियां

इस योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2020- 21 में 2.95 करोड़ लोगों को काम पेश किया गया।

इस योजना माध्यम से 5.98 लाख संपत्ति का निर्माण किया गया।

इस योजना के द्वारा 34.56 करोड़ लोगों के लिए इतने ही दिन का कार्य उपलब्ध करवाया गया।

एग्रीवोल्टेइक परियोजना

एग्रीवोल्टेइक परियोजना: कृषि और ऊर्जा का संगम

  उत्तर प्रदेश ‘एग्रीवोल्टेइक’ परियोजना को अपनाने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है। 

 एग्रीवोल्टेइक परियोजना, जिसे एग्री-वोल्टेइक सिस्टम (Agri-Voltaic System) भी कहा जाता है, एक नवोन्मेषी दृष्टिकोण है जो एक ही भूमि पर कृषि उत्पादन और सौर ऊर्जा उत्पादन को संयोजित करता है। यह न केवल स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देता है बल्कि कृषि भूमि उपयोग को भी अनुकूलित करता है। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संकट के दौर में, एग्रीवोल्टेइक परियोजना एक टिकाऊ समाधान के रूप में उभर रही है।

एग्रीवोल्टेइक परियोजना कैसे काम करती है?

एग्रीवोल्टेइक सिस्टम में, सौर पैनलों को खेतों के ऊपर इस तरह से स्थापित किया जाता है कि फसलें अभी भी पर्याप्त धूप प्राप्त कर सकें। यह कई तरीकों से किया जा सकता है:

  • ऊंचे फ्रेम पर सौर पैनल: पैनलों को जमीन से काफी ऊपर उठाया जाता है, ताकि कृषि मशीनरी आसानी से नीचे से गुजर सके।
  • पारदर्शी या अर्ध-पारदर्शी पैनल: ये पैनल कुछ मात्रा में धूप को फसलों तक पहुंचने देते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया जारी रहती है।
  • रोटेटिंग पैनल: कुछ सिस्टम में, पैनलों को दिन के दौरान इस तरह घुमाया जाता है कि वे अधिकतम धूप को कैप्चर करें, जबकि फसलों को भी उचित धूप मिले।

एग्रीवोल्टेइक परियोजना के लाभ:

  • भूमि का अधिकतम उपयोग: एक ही भूमि पर कृषि और ऊर्जा उत्पादन दोनों संभव हैं, जिससे भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
  • पानी का संरक्षण: सौर पैनलों की छाया के कारण मिट्टी से पानी का वाष्पीकरण कम होता है, जिससे पानी की बचत होती है और फसलों को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • फसल सुरक्षा: पैनलों से फसलों को तेज धूप, ओलावृष्टि और अत्यधिक बारिश से बचाया जा सकता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और पैदावार में सुधार हो सकता है।
  • ऊर्जा उत्पादन: सौर पैनल स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करते हैं, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है।
  • किसानों की आय में वृद्धि: ऊर्जा उत्पादन से किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
  • स्थानीय रोजगार: एग्रीवोल्टेइक परियोजनाओं से निर्माण, संचालन और रखरखाव के क्षेत्र में स्थानीय रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।

चुनौतियां:

  • उच्च प्रारंभिक लागत: एग्रीवोल्टेइक सिस्टम स्थापित करने की लागत पारंपरिक कृषि या सौर ऊर्जा परियोजनाओं से अधिक हो सकती है।
  • तकनीकी जटिलता: सिस्टम डिजाइन और स्थापना के लिए विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
  • फसल चयन: सभी फसलें एग्रीवोल्टेइक सिस्टम के तहत अच्छी तरह से नहीं बढ़ती हैं, इसलिए फसलों का चयन सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
  • सौर पैनलों की छाया: सौर पैनलों की छाया के कारण कुछ क्षेत्रों में फसल की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।

निष्कर्ष:

एग्रीवोल्टेइक परियोजना एक आशाजनक समाधान है जो कृषि और ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। हालांकि कुछ चुनौतियां मौजूद हैं, लेकिन इसके लाभ इसे भविष्य के लिए एक टिकाऊ और आकर्षक विकल्प बनाते हैं। सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को इस अभिनव तकनीक को बढ़ावा देने और इसे व्यापक रूप से अपनाने के लिए निवेश करना चाहिए, ताकि कृषि और ऊर्जा सुरक्षा दोनों सुनिश्चित की जा सके। एग्रीवोल्टेइक परियोजना न केवल स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करती है, बल्कि यह किसानों की आय बढ़ाने, पानी बचाने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मदद करती है। यह वास्तव में कृषि और ऊर्जा का एक सफल संगम है।

 

 

मुख्य बिंदु

  • एग्रीवोल्टेइक प्रणाली
    • एग्रीवोल्टाइक प्रणाली, जिसे कृषि-वोल्टीय प्रणाली या "सौर-खेती" भी कहा जाता है, एक नई तकनीक है जिसमें किसान अपनी फसलों के उत्पादन के साथ-साथ बिजली का उत्पादन भी कर सकते हैं। 
    • इस प्रणाली में फोटो-वोल्टाइक (PV) तकनीक का उपयोग करके कृषि योग्य भूमि पर सौर पैनल स्थापित किये जाते हैं। 
    • यह तकनीक पहली बार वर्ष 1981 में एडॉल्फ गोएट्ज़बर्गर और आर्मिन ज़ास्ट्रो द्वारा पेश की गई थी। 2004 में जापान में इसका प्रोटोटाइप विकसित किया गया और कई परीक्षणों के बाद 2022 में पूर्वी अफ्रीका में इसे लागू किया गया। 
    • वर्तमान में भारत, अमेरिका, फ्राँस, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों में इसका सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है। 
      • हालांकि, भारत में यह तकनीक अभी अपने प्रारंभिक चरण में है।
  • लाभ
    • बढ़ती ऊर्जा की मांग और खाद्य सुरक्षा की समस्याओं का समाधान।
    • सौर पैनल से फसलों की वाष्पन दर कम और जल का बेहतर उपयोग।
    • सौर पैनल से फसलों को उच्च तापमान और UV किरणों से सुरक्षा।
    • सौर ऊर्जा से बिजली की लागत में कमी और किसानों की आय में वृद्धि।
    • बारिश का पानी सौर पैनल से एकत्र और सिंचाई के लिये उपयोग।
  • चुनौतियाँ
    • यह एक भूमि-आधारित प्रणाली है, जिसमें प्रति मेगावाट उत्पादन के लिये लगभग दो हेक्टेयर ज़मीन की आवश्यकता होती है।
    • बरसाती मौसम में जब आकाश में बादल होते हैं, तब यह प्रणाली उतनी प्रभावी नहीं रहती है और किसानों को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
    • सौर पैनल से उत्पन्न छाया कभी-कभी पौधों में पीड़क का कारण बन सकती है, जिससे फसलों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
  • एडीबी से अनुदान:
    • वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने “उत्तर प्रदेश में एग्रीवोल्टेइक परियोजनाओं का प्रदर्शन” शीर्षक वाले राज्य सरकार के तकनीकी सहायता प्रस्ताव को मंजूरी दी है। 
    • इसके तहत एशियाई विकास बैंक (ADB) से 0.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹4.15 करोड़) की तकनीकी सहायता स्वीकृत हुई है।
    • उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है, जिसे ADB से इस प्रकार की आर्थिक सहायता मिली है।
  • महत्त्व
    • इस परियोजना के तहत एक ही ज़मीन पर कृषि उत्पादन के साथ सौर ऊर्जा का भी उत्पादन होता है। 
    • इससे किसानों को अतिरिक्त आय मिलेगी, ऊर्जा उत्पादन बढ़ेगा और सतत् विकास को बढ़ावा मिलेगा। 
    • यह पहल स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन, पर्यावरण संरक्षण और सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।

एशियाई विकास बैंक क्या है?

  • परिचय: ADB एक क्षेत्रीय विकास बैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 1966 में एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
    • ADB सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये ऋण, तकनीकी सहायता, अनुदान एवं इक्विटी निवेश प्रदान करके अपने सदस्यों तथा भागीदारों की सहायता करता है।
  • मुख्यालय: मनीला, फिलीपींस
  • ADB और भारत: भारत ADB का संस्थापक सदस्य और बैंक का चौथा सबसे बड़ा शेयरधारक है।
    • ADB की रणनीति 2030 और देश की साझेदारी रणनीति, 2023-2027 के अनुरूप मज़बूत, जलवायु लचीले एवं समावेशी विकास के लिये भारत की प्राथमिकताओं का समर्थन करता है।

 एशियाई विकास बैंक की स्थापना 19 दिसंबर, 1966 को एशिया में आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। इसका मुख्यालय फिलीपींस के मनीला शहर में स्थित है।

ADB की स्थापना क्यों हुई?

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एशिया के कई देश गरीबी, बुनियादी ढांचे की कमी और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहे थे। इसी परिप्रेक्ष्य में, इन देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए एक संस्थान की आवश्यकता महसूस हुई, जो उन्हें अपने विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सके।

ADB के सदस्य देश:

ADB में वर्तमान में 68 सदस्य देश हैं, जिनमें से 49 एशिया और प्रशांत क्षेत्र से हैं और 19 सदस्य अन्य क्षेत्रों से हैं। भारत, ADB के संस्थापक सदस्यों में से एक है।

ADB के उद्देश्य:

ADB के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:

  • गरीबी उन्मूलन: एशिया और प्रशांत क्षेत्र में गरीबी को कम करना।
  • सतत विकास: पर्यावरण की सुरक्षा और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देते हुए आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना।
  • समावेशी विकास: यह सुनिश्चित करना कि विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे।
  • सुशासन: शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता को बढ़ावा देना।

ADB क्या करता है?

ADB अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई प्रकार के काम करता है, जिनमें शामिल हैं:

  • ऋण प्रदान करना: विकासशील सदस्य देशों को विभिन्न परियोजनाओं के लिए रियायती दरों पर ऋण प्रदान करना।
  • तकनीकी सहायता: विकास परियोजनाओं की योजना, डिजाइन और कार्यान्वयन में सदस्य देशों को विशेषज्ञता और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
  • इक्विटी निवेश: निजी क्षेत्र की कंपनियों में निवेश करना जो विकास को बढ़ावा देती हैं।
  • अनुदान: विकासशील देशों में महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक परियोजनाओं के लिए अनुदान प्रदान करना।

ADB किन क्षेत्रों में निवेश करता है?

ADB मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में निवेश करता है:

  • बुनियादी ढांचा (सड़कें, पुल, बिजली संयंत्र, आदि)
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • कृषि और ग्रामीण विकास
  • पर्यावरण संरक्षण
  • शहरी विकास
  • वित्तीय क्षेत्र विकास

ADB की वित्तपोषण संरचना:

ADB अपनी पूंजी सदस्यों के योगदान और ऋणों से जुटाता है। यह अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजारों में भी उधार लेता है।

निष्कर्ष:

एशियाई विकास बैंक एशिया और प्रशांत क्षेत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह गरीबी उन्मूलन, सतत विकास और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। यह ऋण, तकनीकी सहायता, इक्विटी निवेश और अनुदान के माध्यम से सदस्य देशों को उनकी विकास योजनाओं में मदद करता है।


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