महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
इस अधिनियम को भारत सरकार ने 7 सितंबर 2005 में पारित किया था। आरंभ में इस अधिनियम को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम अर्थात नरेगा के नाम से जाना जाता था। 2 अक्टूबर 2009 को इस अधिनियम का नाम बदलकर महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम कर दिया गया था। इस योजना के कार्य की निगरानी ग्रामीण विकास मंत्रालय राज्य सरकारों के साथ मिलकर करता है। यह भारत सरकार की एकमात्र ऐसी योजना है, जो भारत में काम के अधिकार की गारंटी देती है। भारत सरकार के अनुसार यह योजना काम की गारंटी देने वाली विश्व की सबसे बड़ी योजना है।
इस योजना को भारत सरकार ने सामाजिक कार्यों में सुधार के रूप में भारत में प्रस्तुत किया था। इस योजना के तहत कार्यों को सोशल ऑडिट करवाया जाना आवश्यक है, जिसके कारण इस योजना के काम में पारदर्शिता एवं जवाबदेही आती है। इस योजना के तहत जितने भी प्रकार के कार्य निर्धारित किए गए हैं, उन कार्यों को ग्राम पंचायत एवं ग्राम सभा के माध्यम से मंजूरी प्रदान की जाती है एवं उन कार्यों मैं सबसे पहले किस काम को करना है, यह प्राथमिकता ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत ही तय करती।
उद्देश्य
इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले परिवार के वयस्क यदि काम की मांग करते हैं, तो सरकार उन वयस्कों को 15 दिनों में काम देगी। यदि सरकार 15 दिनों में काम नहीं देती है, तो उन वयस्कों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा।
कम से कम 100 दिनों तक अकुशल शारीरिक काम प्रदान करना इस योजना का मुख्य उद्देश्य।
सिंचाई चैनल, चेक डैम, रिसाव टैंक, सड़क की परत, तालाब, खेत आदि मनरेगा की संपत्तियां हैं। इस योजना में इन सभी का कार्य किया जाता है।
उपलब्धियां
इस योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2020- 21 में 2.95 करोड़ लोगों को काम पेश किया गया।
इस योजना माध्यम से 5.98 लाख संपत्ति का निर्माण किया गया।
इस योजना के द्वारा 34.56 करोड़ लोगों के लिए इतने ही दिन का कार्य उपलब्ध करवाया गया।
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