Tuesday, 1 April 2025

एग्रीवोल्टेइक परियोजना

एग्रीवोल्टेइक परियोजना: कृषि और ऊर्जा का संगम

  उत्तर प्रदेश ‘एग्रीवोल्टेइक’ परियोजना को अपनाने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है। 

 एग्रीवोल्टेइक परियोजना, जिसे एग्री-वोल्टेइक सिस्टम (Agri-Voltaic System) भी कहा जाता है, एक नवोन्मेषी दृष्टिकोण है जो एक ही भूमि पर कृषि उत्पादन और सौर ऊर्जा उत्पादन को संयोजित करता है। यह न केवल स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देता है बल्कि कृषि भूमि उपयोग को भी अनुकूलित करता है। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संकट के दौर में, एग्रीवोल्टेइक परियोजना एक टिकाऊ समाधान के रूप में उभर रही है।

एग्रीवोल्टेइक परियोजना कैसे काम करती है?

एग्रीवोल्टेइक सिस्टम में, सौर पैनलों को खेतों के ऊपर इस तरह से स्थापित किया जाता है कि फसलें अभी भी पर्याप्त धूप प्राप्त कर सकें। यह कई तरीकों से किया जा सकता है:

  • ऊंचे फ्रेम पर सौर पैनल: पैनलों को जमीन से काफी ऊपर उठाया जाता है, ताकि कृषि मशीनरी आसानी से नीचे से गुजर सके।
  • पारदर्शी या अर्ध-पारदर्शी पैनल: ये पैनल कुछ मात्रा में धूप को फसलों तक पहुंचने देते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया जारी रहती है।
  • रोटेटिंग पैनल: कुछ सिस्टम में, पैनलों को दिन के दौरान इस तरह घुमाया जाता है कि वे अधिकतम धूप को कैप्चर करें, जबकि फसलों को भी उचित धूप मिले।

एग्रीवोल्टेइक परियोजना के लाभ:

  • भूमि का अधिकतम उपयोग: एक ही भूमि पर कृषि और ऊर्जा उत्पादन दोनों संभव हैं, जिससे भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
  • पानी का संरक्षण: सौर पैनलों की छाया के कारण मिट्टी से पानी का वाष्पीकरण कम होता है, जिससे पानी की बचत होती है और फसलों को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • फसल सुरक्षा: पैनलों से फसलों को तेज धूप, ओलावृष्टि और अत्यधिक बारिश से बचाया जा सकता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और पैदावार में सुधार हो सकता है।
  • ऊर्जा उत्पादन: सौर पैनल स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करते हैं, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है।
  • किसानों की आय में वृद्धि: ऊर्जा उत्पादन से किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
  • स्थानीय रोजगार: एग्रीवोल्टेइक परियोजनाओं से निर्माण, संचालन और रखरखाव के क्षेत्र में स्थानीय रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।

चुनौतियां:

  • उच्च प्रारंभिक लागत: एग्रीवोल्टेइक सिस्टम स्थापित करने की लागत पारंपरिक कृषि या सौर ऊर्जा परियोजनाओं से अधिक हो सकती है।
  • तकनीकी जटिलता: सिस्टम डिजाइन और स्थापना के लिए विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
  • फसल चयन: सभी फसलें एग्रीवोल्टेइक सिस्टम के तहत अच्छी तरह से नहीं बढ़ती हैं, इसलिए फसलों का चयन सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
  • सौर पैनलों की छाया: सौर पैनलों की छाया के कारण कुछ क्षेत्रों में फसल की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।

निष्कर्ष:

एग्रीवोल्टेइक परियोजना एक आशाजनक समाधान है जो कृषि और ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। हालांकि कुछ चुनौतियां मौजूद हैं, लेकिन इसके लाभ इसे भविष्य के लिए एक टिकाऊ और आकर्षक विकल्प बनाते हैं। सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को इस अभिनव तकनीक को बढ़ावा देने और इसे व्यापक रूप से अपनाने के लिए निवेश करना चाहिए, ताकि कृषि और ऊर्जा सुरक्षा दोनों सुनिश्चित की जा सके। एग्रीवोल्टेइक परियोजना न केवल स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करती है, बल्कि यह किसानों की आय बढ़ाने, पानी बचाने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मदद करती है। यह वास्तव में कृषि और ऊर्जा का एक सफल संगम है।

 

 

मुख्य बिंदु

  • एग्रीवोल्टेइक प्रणाली
    • एग्रीवोल्टाइक प्रणाली, जिसे कृषि-वोल्टीय प्रणाली या "सौर-खेती" भी कहा जाता है, एक नई तकनीक है जिसमें किसान अपनी फसलों के उत्पादन के साथ-साथ बिजली का उत्पादन भी कर सकते हैं। 
    • इस प्रणाली में फोटो-वोल्टाइक (PV) तकनीक का उपयोग करके कृषि योग्य भूमि पर सौर पैनल स्थापित किये जाते हैं। 
    • यह तकनीक पहली बार वर्ष 1981 में एडॉल्फ गोएट्ज़बर्गर और आर्मिन ज़ास्ट्रो द्वारा पेश की गई थी। 2004 में जापान में इसका प्रोटोटाइप विकसित किया गया और कई परीक्षणों के बाद 2022 में पूर्वी अफ्रीका में इसे लागू किया गया। 
    • वर्तमान में भारत, अमेरिका, फ्राँस, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों में इसका सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है। 
      • हालांकि, भारत में यह तकनीक अभी अपने प्रारंभिक चरण में है।
  • लाभ
    • बढ़ती ऊर्जा की मांग और खाद्य सुरक्षा की समस्याओं का समाधान।
    • सौर पैनल से फसलों की वाष्पन दर कम और जल का बेहतर उपयोग।
    • सौर पैनल से फसलों को उच्च तापमान और UV किरणों से सुरक्षा।
    • सौर ऊर्जा से बिजली की लागत में कमी और किसानों की आय में वृद्धि।
    • बारिश का पानी सौर पैनल से एकत्र और सिंचाई के लिये उपयोग।
  • चुनौतियाँ
    • यह एक भूमि-आधारित प्रणाली है, जिसमें प्रति मेगावाट उत्पादन के लिये लगभग दो हेक्टेयर ज़मीन की आवश्यकता होती है।
    • बरसाती मौसम में जब आकाश में बादल होते हैं, तब यह प्रणाली उतनी प्रभावी नहीं रहती है और किसानों को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
    • सौर पैनल से उत्पन्न छाया कभी-कभी पौधों में पीड़क का कारण बन सकती है, जिससे फसलों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
  • एडीबी से अनुदान:
    • वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने “उत्तर प्रदेश में एग्रीवोल्टेइक परियोजनाओं का प्रदर्शन” शीर्षक वाले राज्य सरकार के तकनीकी सहायता प्रस्ताव को मंजूरी दी है। 
    • इसके तहत एशियाई विकास बैंक (ADB) से 0.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹4.15 करोड़) की तकनीकी सहायता स्वीकृत हुई है।
    • उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है, जिसे ADB से इस प्रकार की आर्थिक सहायता मिली है।
  • महत्त्व
    • इस परियोजना के तहत एक ही ज़मीन पर कृषि उत्पादन के साथ सौर ऊर्जा का भी उत्पादन होता है। 
    • इससे किसानों को अतिरिक्त आय मिलेगी, ऊर्जा उत्पादन बढ़ेगा और सतत् विकास को बढ़ावा मिलेगा। 
    • यह पहल स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन, पर्यावरण संरक्षण और सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।

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