बाबासाहेब के बारे में २ अनसुनी बाते
(१)
No Peon, No Water / चपरासी नहीं, पानी नहीं
बाबासाहेब
महार जाति से थे जिसे अछूत माना जाता था. यही कारण था कि वे विद्यालय में
बाकी छात्रों के साथ नहीं बैठ सकते थे और उन्हें कक्षा के बाहर बैठ कर पढना
पड़ता था. इसके अलावा उन्हें विद्यालय का नल छूने की भी अनुमति नहीं थी,
जबकि बाकि के छात्र जब चाहे तब नल चला कर पानी पी सकते थे.
उन्हें
सिर्फ एक ही सूरत में पानी मिल सकता था, जब विद्यालय का चपरासी भी उपस्थित
हो, यही वह नहीं होता था तो कोई और भी उन्हें नल चला कर पानी नहीं देता
था. इसी स्थिति को उन्होंने बाद में अपने एक article में एक लाइन में
summarize किया है-
“No peon, no water.”
(२)
ख़याल कौन रखेगा?
यह
घटना तबकी है जब डॉ. आंबेडकर जब अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़
रहे थे. वह रोज सुबह लाइब्रेरी खुलने से पहले ही वहां पहुँच जाते थे और
सबके जाने के बाद ही वे वहां से निकलते थे. यहाँ तक कि वे कई बार लाइब्रेरी
की टाइमिंग ख़त्म होने के बाद भी वहां बैठे रहने की अनुमति माँगा करते थे.
उन्हें
रोज ऐसा करते देख एक दिन चपरासी ने उनसे कहा, “क्यों तुम हमेशा गंभीर रहते
हो, बस पढाई ही करते रहते हो और कभी किसी दोस्त के साथ मौज-मस्ती नहीं
करते.”
तब बाबा साहेब बोले-
“अगर मैं ऐसा करूँगा तो मेरे लोगों का ख़याल कौन रखेगा?”
बाबा साहब ज्ञान का सागर
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ये _लूँ_कि_वो?
पापा अपने बेटे को बहुत मानते थे और उसकी ये रिक्वेस्ट ठुकरा नहीं पाए.
“ठीक है बेटा तुम ये कार ले लो!”, पापा ने बेटे को पुचकारते हुए कहा.
बच्चे ने झट से कार उठा ली और ख़ुशी से झूमता हुआ आगे बढ़ने लगा. अभी वो दो-चार ही कदम चले होंगे कि बेटा बोला, ” पापा, मुझे ये कार नहीं चाहिए…मुझे तो वो रिमोट कण्ट्रोल हेलीकाप्टर चाहिए!”
यह सुनते ही पापा कुछ गुस्सा हो गए और बोले, ” हमारे पास अधिक टाइम नहीं है, मार्केट बंद होने वाला है… जल्दी से खिलौना लो और यहाँ से चलो!”
बेटे ने कार रखी और हेलीकाप्टर को अपने कब्जे में लेकर इतराने लगा.
ये भी पढ़ें: Decision Making Problem – क्या निर्णय लेंगे आप ?
पापा ने बेटे का हाथ पकड़ा और आगे बढ़ने लगे की तभी बेटा जोर से बोला, ” रुको-रुको-रुको पापा, वो देखो वो डायनासौर कितना खतरनाक लग रहा है… मैं वो ले लूँ क्या…बाताओ ना पापा… क्या करूँमैं… ये लूँ कि वो ?”
पापा ने बेटे को फ़ौरन गोद से उतार दिया और कहा, “जाओ…जल्दी से कोई खिलौना चूज कर लो और यहाँ से चलो!”
अगले कुछ पलों तक बेटा इधर-उधर दौड़ता रहा और यही सोचता रहा कि ये लूँ कि वो ? पर वो डिसाइड नहीं कर पाया कि उसे क्या लेना है?
तभी सुपरमार्केट की लाइट्स ऑफ होने लगीं और कस्टमर्स को बाहर निकलने के लिए कहा जाने लगा. पापा भी गुस्से में थे, उन्होंने बेटे को गोद में उठाया और बाहर निकल पड़े. बेचारा बेटा रोता रह गया, उसके मन में यही आ रहा था कि काश उसने कोई टॉय चूज कर लिया होता.
दोस्तों, हम सभी उस लड़के की तरह हैं और ये दुनिया खिलौनों की एक दूकान है, जिसमे हर तरह के ढेरों खिलौने मौजूद हैं… life आपको अलग-अलग स्टेज पे टॉयज की ढेर सारी choices देती है.
कभी आपको education, कभी job या business तो कभी relationship choose करने का option देती है, but unfortunately बहुत से लोग कोई ठोस निर्णय लेने की बजाय यही सोचते रहते हैं किये लूँ कि वो?
ये पढाई करूँ कि वो?
ये जॉब करूँ कि वो?
ये बिजनेस करूँ कि वो?
इससे शादी करूँ कि उससे?
और इसी चक्कर में कुछ करने का उनका prime time निकल जाता है और बाद में उन्हें उस बच्चे की तरह पछताना पड़ता है या sub-standard option choose करना पड़ता है.
इस बात को याद रखिये कि-
कोई भी निर्णय ना लेने से अच्छा है कोई ग़लत निर्णय लेना!
इसलिए जब life के important decisions लेने की बात हो तब indecisive मत बने रही…अपने निर्णय को लम्बे समय तक टालिये नहीं. अपने circumstances और best of knowledge को use करते हुए एक निर्णय लीजिये और ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाइए.
बाज_और_पेंगुइन
An Inspirational Story on Using Your Strengths
समुद्र के किनारे खड़े एक पेंगुइन ने जब ऊँचे आसमान में उड़ते बाज को देखा तो सोचने लगा-
“बाज
भी क्या पक्षी है…कितने शान से खुले आकाश में घूमता है…और एक मैं हूँ जो
चाहे जितना भी पंख फड़-फड़ा लूँ ज़मीन से एक इंच ऊपर भी नहीं उठ पाता…”
और ऐसा सोच कर वह कुछ उदास हो गया.
ठीक
इसी पल बाज ने भी पेंगुइन को नीचे समुद्र में तैरते हुए देखा…और सोचने
लगा, “ये पेंगुइन भी क्या कमाल का पक्षी है… जो धरती की सैर भी करता है और
समुद्र की गहराइयों में गोता भी लगाता है… और यहाँ मैं…बस यूँही इधर-उधर उड़ता फिरता हूँ!”
जानते हैं इसके बाद क्या हुआ?
कुछ
नहीं… बाज आकाश की ऊँचाइयों में खो गया और पेंगुइन समद्र की गहराइयों में…
दोनों अपनी मन में आये नेगेटिव थॉट्स को भूल गए और बिना समय गँवाए भगवान
की दी हुई उस ताकत को… उस शक्ति को प्रयोग करने लगे जिसके साथ वो पैदा हुए
थे.
सोचिये अगर वो बाज और पेंगुइन बाज और पेंगुइन न होकर इंसान होते तो क्या होता?
बाज
यही सोच-सोच कर परेशान होता कि वो पानी के अन्दर तैर नहीं सकता और पेंगुइन
दिन-रात बस यही सोचता कि काश वो आकाश में उड़ पाता… और इस चक्कर में वे
दोनों ही अपनी-अपनी existing strengths या skills सही ढंग से use नहीं कर
पाते.
काश हम
इंसान भी इन पक्षियों से सीख पाते कि ईश्वर ने हर किसी के अन्दर अलग-अलग
गुण दिए हैं… हर किसी ने अलग-अलग क्षमताओं के साथ जन्म लिया है और हर इंसान
किसी दुसरे इंसान से किसी ना किसी रूप में बेहतर है. But unfortunately,
बहुत से लोगों का ध्यान अपनी competencies की बजाय दूसरों की achievements
पर ही लगा रहता है, जिसे देखकर वे जलते हैं और अपनी energy गलत जगह लगाते
हैं.
आप क्या करते हैं?
क्या
आपको पता है कि आपके अन्दर सबसे अच्छी बात क्या है? क्या आपने कभी कोशिश
की है उस strength को जानने और निखारने की जिसके साथ ईश्वर ने आपको भेजा
है?
अगर
नहीं की है तो करिए, उस gifted skill… उस strength को समझिये…अपनी ताकत को
पहचानिए और उसे अपनी मेहनत से इतना निखारिये कि औरों की नज़र में आप एक
achiever बन पाएं या नहीं लेकिन अपनी और उस ऊपर वाले की नज़र में आप एक
champion ज़रूर बन जाएं!
Copied....
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चार_मोमबत्तियां
A Hindi Motivational Story on Peace, Faith Love and Hope
रात
का समय था, चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था , नज़दीक ही एक कमरे में चार
मोमबत्तियां जल रही थीं। एकांत पा कर आज वे एक दुसरे से दिल की बात कर रही
थीं।
पहली मोमबत्ती बोली, ”
मैं शांति हूँ , पर मुझे लगता है अब इस दुनिया को मेरी ज़रुरत नहीं है , हर
तरफ आपाधापी और लूट-मार मची हुई है, मैं यहाँ अब और नहीं रह सकती। …” और
ऐसा कहते हुए , कुछ देर में वो मोमबत्ती बुझ गयी।
दूसरी
मोमबत्ती बोली , ” मैं विश्वास हूँ , और मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच
मेरी भी यहाँ कोई ज़रुरत नहीं है , मैं भी यहाँ से जा रही हूँ …” , और दूसरी
मोमबत्ती भी बुझ गयी।
तीसरी
मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली , ” मैं प्रेम हूँ, मेरे पास जलते रहने की
ताकत है, पर आज हर कोई इतना व्यस्त है कि मेरे लिए किसी के पास वक्त ही
नहीं, दूसरों से तो दूर लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं ,मैं
ये सब और नहीं सह सकती मैं भी इस दुनिया से जा रही हूँ….” और ऐसा कहते हुए
तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।
वो अभी बुझी ही थी कि एक मासूम बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ।
मोमबत्तियों को बुझे देख वह घबरा गया , उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे और वह रुंआसा होते हुए बोला ,
“अरे , तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही , तुम्हे तो अंत तक जलना है ! तुम इस तरह बीच में हमें कैसे छोड़ के जा सकती हो ?”
तभी
चौथी मोमबत्ती बोली , ” प्यारे बच्चे घबराओ नहीं, मैं आशा हूँ और जब तक
मैं जल रही हूँ हम बाकी मोमबत्तियों को फिर से जला सकते हैं। “
यह सुन बच्चे की आँखें चमक उठीं, और उसने आशा के बल पे शांति, विश्वास, और प्रेम को फिर से प्रकाशित कर दिया।
मित्रों
, जब सबकुछ बुरा होते दिखे ,चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार नज़र आये , अपने
भी पराये लगने लगें तो भी उम्मीद मत छोड़िये….आशा मत छोड़िये , क्योंकि इसमें
इतनी शक्ति है कि ये हर खोई हुई चीज आपको वापस दिल सकती है। अपनी आशा की
मोमबत्ती को जलाये रखिये ,बस अगर ये जलती रहेगी तो आप किसी भी और मोमबत्ती
को प्रकाशित कर सकते हैं।
उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था ,और दूसरा एक दम सही था . इस वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था .ऐसा दो सालों से चल रहा था .
सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है , वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है . फूटा घड़ाये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया , उसने किसान से कहा , “ मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ ?”
“क्यों ? “ , किसान ने पूछा , “ तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?”
“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ , और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ , मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है , और इस वजह से आपकी मेहनत बर्वाद होती रही है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा.
घड़े ने वैसा ही किया , वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया , ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा .
किसान बोला ,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे , सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था . ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था , और मैंने उसका लाभ उठाया . मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग -बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे , तुम रोज़ थोडा-थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया . आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ . तुम्ही सोचो अगर तुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ?”
दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है , पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं . उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा.
बदले_की_आग
बहुत समय पहले की बात है, किसी कुँए में मेढ़कों का राजा गंगदत्त अपने परिवार व कुटुम्बियों के साथ रहता था। वैसे तो गंगदत्त एक अच्छा शाषक था और सभी का ध्यान रखता था, पर उसमे एक कमी थी, वह किसी भी कीमत पर अपना विरोध सहन नहीं कर सकता था।
लेकिन एक बार गंगदत्त के एक निर्णय को लेकर कई मेंढकों ने उसका विरोध कर दिया। गंगदत्त को ये बात सहन नहीं हुई कि एक राजा होते हुए भी कोई उसका विरोध करने की हिम्मत जुटा सकता है। वह उन्हें सजा देने की सोचने लगा। लेकिन उसे भय था कि कहीं ऐसा करने पर जनता उसका विरोध ना कर दे और उसे अपने राज-पाठ से हाथ धोना पड़ जाए।
फिर एक दिन उसने कुछ सोचा और रात के अँधेरे में चुपचाप कुँए से बाहर निकल आया।
बिना समय गँवाए वह फ़ौरन प्रियदर्शन नामक एक सर्प के बिल के पास पहुंचा और उसे पुकारने लगा।
एक मेढक को इस तरह पुकारता सुनकर प्रियदर्शन को बहुत आश्चर्य हुआ। वह बाहर निकला और बोला, “कौन हो तुम? क्या तुम्हे इस बात का भय नहीं कि मैं तुम्हे खा सकता हूँ?”
गंगदत्त बोला,” हे सर्पराज! मैं मेढ़कों का राजा गंगदत्त हूँ और मैं यहाँ आपसे मैत्री करने के लिए आया हूँ।”
“यह कैसे हो सकता है। क्या दो स्वाभाविक शत्रु आपस में मित्रता कर सकते हैं?”, प्रियदर्शन ने आश्चर्य से कहा।
गंगदत्त बोला, “आप ठीक कहते हैं, आप हमारे स्वाभाविक शत्रु हैं। लेकिन इस समय मैं अपने ही लोगों द्वारा अपमानित होकर आपकी शरण में आया हूँ, और शाश्त्रों में कहा भी तो गया है- सर्वनाश की स्थिति में अथवा अपने प्राणों की रक्षा हेतु शत्रु की अधीनता स्वीकार करने में ही समझदारी है… कृपया मुझे अपनी शरण में लें। मेरे दुश्मनों को मारकर मेरी मदद करें।”
प्रियदर्शन अब बूढ़ा हो चुका था, उसने मन ही मन सोचा कि यदि इस मेंढक की वजह से मेरा पेट भर पाए तो इसमें बुराई ही क्या है.
वह बोला, “बताओ, मैं तुम्हारी मदद कैसे कर सकता हूँ?”
सर्प को मदद के लिए तैयार होता देख गंगदत्त प्रसन्न हो गया और बोला, “आपको मेरे साथ कुएं में चलना होगा, और वहां मैं जिस मेंढक को भी आपके पास लेकर आऊंगा उसे मारकर खाना होगा। और एक बार मेरे सारे दुश्मन ख़तम हो जाएं तो आप वापस अपने बिल में आकर रहने लगिएगा”
“पर कुएं में मैं रहूँगा कैसे मैं तो अपने बिल में ही आराम से रह सकता हूँ?”, प्रियदर्शन ने चिंता व्यक्त की।
उसकी चिंता आप छोड़ दीजिये आप हमारे मेहमान हैं, मैं आपके रहने का पूरा प्रबंध पहले ही कर आया हूँ. परन्तु वहां जाने से पहले आपको एक वचन देना होगा।
“वह क्या?” प्रियदर्शन बोला।
“वह यह कि आपको मेरी, मेरे परिवार वालों और मेरे साथियों की रक्षा करनी होगी!”, गंगदत्त ने कहा।
प्रियदर्शन बोला- “निश्चितं रहो तुम मेरे मित्र बन चुके हो। अत: तुमको मुझसे किसी भी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए। मैं तुम्हारे कहे अनुसार ही मेंढ़कों को मार-मार कर खाऊँगा।”
बदले की आग में जल रहा गंगदत्त प्रियदर्शन को लेकर कुएं में उतरने लगा।
पानी की सतह से कुछ ऊपर एक बिल था, प्रियदर्शन उस बिल में जा घुसा और गंगदत्त चुपचाप अपने स्थान पर चला गया।
अगले दिन गंगदत्त ने एक सभा बुलाई और कहा कि आप सबके लिए खुशखबरी है, बड़े प्रयत्न के बाद मैंने एक ऐसा गुप्त मार्ग ढूंढ निकाला है जिसके जरिये हम यहाँ से निकल कर एक बड़े तालाब में जा सकते हैं, और बाकी की ज़िन्दगी बड़े आराम से जी सकते हैं। पर ध्यान रहे मार्ग कठिन और अत्यधिक सकरा है, इसलिए मैं एक बार में बस एक ही मेंढक को उससे लेकर जा सकता हूँ।
अगले दिन गंगदत्त एक दुश्मन मेंढक को अपने साथ लेकर आगे बढ़ा और योजना अनुसार सांप के बिल में ले गया।
प्रियदर्शन तो तैयार था ही, उसने फ़ौरन उस मेंढक को अपना निवाला बना लिया।
अगले कई दिनों तक यह कार्यक्रम चलता रहा और वो दिन भी आ गया जब गंगदत्त का आखिरी दुश्मन प्रियदर्शन के मुख का निवाला बन गया।
गंगदत्त का बदला पूरा हो चुका था। उसने चैन की सांस ली और प्रियदर्शन को धन्यवाद देते हुए बोला, “सर्पराज, आपके सहयोग से आज मेरे सारे शत्रु ख़त्म हो गए हैं, मैं आपका यह उपकार जीवन भर याद रखूँगा, कृपया अब अपने घर वापस लौट जाएं।”
प्रियदर्शन ने कुटिलता भरी वाणी में कहा, “कौन-सा घर मित्र? प्राणी जिस घर में रहने लगता है, वही उसका घर होता है। अब मैं वहाँ कैसे जा सकता हूं? अब तक तो किसी और ने उस पर अपना अधिकार कर लिया होगा। मैं तो यही रहूंगा।”
“पर… आपने तो वचन दिया था।”, गंगदत्त गिड़गिड़ाया।
“वचन? कैसा वचन? अपने ही कुटुम्बियों की हत्या करवाने वाला नीच आज मुझसे मेरे वचन का हिसाब मांगता है! हा हा हा!” प्रियदर्शन ठहाका मारकर हंसने लगा।
और देखते ही देखते गंगदत्त को अपने जबड़े में जकड़ लिया।”
आज गंगदत्त को अपनी गलती का एहसास हो रहा था, बदले की आग में सिर्फ उसके दुश्मन ही नहीं जले… आज वो खुद भी जल रहा था।
मित्रों, क्षमा करने को हमेशा बदला लेने से श्रेयस्कर बताया गया है।
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मिट्टी_का_खिलौना
एक
गांव में एक कुम्हार रहता था, वो मिट्टी के बर्तन व खिलौने बनाया करता था,
और उसे शहर जाकर बेचा करता था। जैसे तैसे उसका गुजारा चल रहा था, एक दिन
उसकी बीवी बोली कि अब यह मिट्टी के खिलोने और बर्तन बनाना बंद करो और शहर
जाकर कोई नौकरी ही कर लो, क्यूँकी इसे बनाने से हमारा गुजारा नही होता, काम
करोगे तो महीने के अंत में कुछ धन तो आएगा। कुम्हार को भी अब ऐसा ही लगने
लगा था, पर उसको मिट्टी के खिलोने बनाने का बहुत शौक था, लेकिन हालात से
मजबूर था, और वो शहर जाकर नौकरी करने लगा, नौकरी करता जरूर था पर उसका मन
अब भी, अपने चाक और मिट्टी के खिलोनों मे ही रहता था।
समय बितता
गया, एक दिन शहर मे जहाँ वो काम करता था,उस मालिक के घर पर उसके बच्चे का
जन्मदिन था। सब महंगे महंगे तोहफे लेकर आये, कुम्हार ने सोचा क्यूँ न मै
मिट्टी का खिलौना बनाऊ और बच्चे के लिए ले जाऊ, वैसे भी हम गरीबों का तोहफा
कौन देखता है। यह सोचकर वो मिट्टी का खिलौना ले गया. जब दावत खत्म हुई तो
उस मालिक के बेटे को और जो भी बच्चे वहा आए थे सबको वो खिलोना पंसद आया और
सब जिद करने लगे कि उनको वैसा ही खिलौना चाहिए। सब एक दूसरे से पूछने लगे
की यह शानदार तोहफा लाया कौन, तब किसी ने कहा की यह तौहफा आपका नौकर लेकर
आया.
सब हैरान पर बच्चों के जिद के लिए, मालिक ने उस कुम्हार को
बुलाया और पूछा कि तुम ये खिलौना कहाँ से लेकर आये हो, इतना मंहगा तोहफा
तूम कैसे लाए? कुम्हार यह बाते सुनकर हंसने लगा और बोला माफ कीजिए मालिक,
यह कोई मंहगा तोहफा नही है, यह मैने खुद बनाया है, गांव मे यही बनाकर मै
गुजारा करता था, लेकिन उससे घर नही चलता था इसलिए आपके यहाँ नौकरी करने आया
हूं। मालिक सुनकर हैरान हो गया और बोला की तुम क्या अभी यह खिलोने और बना
सकते हो, बाकी बच्चों के लिए? कुम्हार खुश होकर बोला हाँ मालिक, और उसने
सभी के लिए शानदार रंग बिरंगे खिलौने बनाकर दिए।
यह देख मालिक ने
सोचा क्यूँ ना मै, इन खिलौने का ही व्यापार करू और शहर मे बेचू। यह सोचकर
उसने कुम्हार को खिलौने बनाने के काम पर ही लगा दिया और बदले मे हर महीने
अचछी तनख्वाह और रहने का घर भी दिया। यह सब पाकर कुम्हार और उसका परिवार भी
बहुत खुश हो गया और कुम्हार को उसके पंसद का काम भी मिल गया.
इस
कहानी का मूल अर्थ यह है की हुनर हो तो इंसान कभी भी किसी भी परिस्थिति मे
उस हुनर से अपना जीवन सुख से जी सकता है और जग मे नाम करता है।
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गार्बेज_ट्रक
एक
दिन एक आदमी टैक्सी से एअरपोर्ट जा रहा था, टैक्सी वाला कुछ
गुनगुनाते हुए बड़े इत्मीनान से गाड़ी चला रहा था कि अचानक एक
दूसरी कार पार्किंग से निकल कर रोड पर आ गयी , टैक्सी वाले ने
तेजी से ब्रेक लगायी , गाड़ी स्किड करने लगी और बस एक -आध इंच
से सामने वाली कार से लड़ते -लड़ते बची।
आदमी
ने सोचा कि टैक्सी वाला कार वाले को भला -बुरा कहेगा …लेकिन इसके
उलट सामने वाला ही पीछे मुड़ कर उसे गलियां देने लगा . इसपर
टैक्सी वाला नाराज़ होने की बजाये उसकी तरफ हाथ हिलाते हुए
मुस्कुराने लगा , और धीरे -धीरे आगे बढ़ गया।
आदमी
ने आश्चर्य से पूछा “ तुमने ऐसा क्यों किया ? गलती तो उस आदमी
की थी ,उसकी वजह से तुम्हारी गाडी लड़ सकती थी और हम होस्पिटलाइज
भी हो सकते थे .!”
“सर
जी ”, टैक्सी वाला बोला , “ बहुत से लोग गार्बेज ट्रक की तरह
होते हैं . वे बहुत सार गार्बेज उठाये हुए चलते हैं ,फ्रस्ट्रेटेड,
हर किसी से नाराज़ और निराशा से भरे …जब गार्बेज बहुत ज्यादा हो
जाता है तो वे अपना बोझ हल्का करने के लिए इसे दूसरों पर
फेंकने का मौका खोजने लगते हैं , पर जब ऐसा कोई आदमी मुझे अपना
शिकार बनाने की कोशिश करता हैं तो मैं बस यूँही मुस्कुरा के हाथ
हिल कर उनसे दूरी बना लेता हूँ …किसी को भी उनका गार्बेज नहीं
लेना चाहिए , अगर ले लिया तो शायद हम भी उन्ही की तरह उसे
इधर उधर फेंकने में लग जायेंगे …घर में ,ऑफिस में सड़कों पर …और
माहौल गन्दा कर देंगे , हमें इन गार्बेज ट्रक्स को अपना दिन खराब
नहीं करने देना चाहिए . ज़िन्दगी बहुत छोटी है कि हम सुबह किसी
अफ़सोस के साथ उठें , इसलिए … उनसे प्यार करो जो तुम्हारे साथ अच्छा
व्यवहार करते हैं और जो नहीं करते उन्हें माफ़ कर दो .”
Friends,
सोचने की बात है कि क्या हम intentionally garbage trucks को
avoid करते हैं , या उससे भी बड़ी बात कि कहीं हम खुद गार्बेज
ट्रक तो नहीं बन रहे ??? चलिए इस कहानी से सीख लेते हुए हम खुद
गुस्सा करने से बचें और frustrated लोगों से उलझने की बजाये
उन्हें माफ़ करना सीखें।
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चलते रहने की ज़िद
दृढ़ रहने पर प्रेरणादायक कहानी
पर इस बार वह बहुत एक्साइटेड था. क्योंकि पिछले कई महीनों से वह रोज सुबह उठकर दौड़ने की प्रैक्टिस कर रहा था और उसे पूरा भरोसा था कि वह इस साल की मैराथन रेस ज़रूर पूरी कर लेगा.
देखते-देखते मैराथन का दिन भी आ गया और धायं की आवाज़ के साथ रेस शुरू हुई. बाकी धावकों की तरह अजय ने भी दौड़ना शुरू किया.
वह जोश से भरा हुआ था, और बड़े अच्छे ढंग से दौड़ रहा था. लेकिन आधी रेस पूरी करने के बाद अजय बिलकुल थक गया और उसके जी में आया कि बस अब वहीं बैठ जाए…
वह ऐसा सोच ही रहा था कि तभी उसने खुद को ललकारा…
रुको मत अजय! आगे बढ़ते रहो…अगर तुम दौड़ नहीं सकते, तो कम से कम जॉग करते हुए तो आगे बढ़ सकते हो…आगे बढ़ो…
और अजय पहले की अपेक्षा धीमी गति से आगे बढ़ने लगा.
कुछ किलो मीटर इसी तरह दौड़ने के बाद अजय को लगा कि उसके पैर अब और आगे नहीं बढ़ सकते…वह लड़खड़ाने लगा. अजय के अन्दर विचार आया….अब बस…और नहीं बढ़ सकता!
लेकिन एक बार फिर अजय ने खुद को समझाया…
रुको मत अजय …अगर तुम जॉग नहीं कर सकते तो क्या… कम से कम तुम चल तो सकते हो….चलते रहो.
अजय अब जॉग करने की बजाय धीरे-धीरे लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा.
बहुत से धावक अजय से आगे निकल चुके थे और जो पीछे थे वे भी अब आसानी से उसे पार कर रहे थे…अजय उन्हें आगे जाने देने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था. चलते-चलते अजय को फिनिशिंग पॉइंट दिखने लगा…लेकिन तभी वह अचानक से लड़खड़ा कर गिर पड़ा… उसके बाएँ पैर की नसें खिंच गयी थीं.
“अब कुछ भी हो जाए मैं आगे नहीं बढ़ सकता…”, जमीन पर पड़े-पड़े अजय के मन में ख़याल आया.
लेकिन अगले पल ही वो जोर से चीखा….
नहीं! आज चाहे जो हो जाए मैं ये रेस पूरी करके रहूँगा…ये मेरी ज़िद है…माना मैं चल नहीं सकता लेकिन लड़खड़ाते-लड़खड़ाते ही सही इस रेस को पूरा ज़रूर करूँगा….
अजय ने साहस दिखाया और एक बार फिर असहनीय पीड़ा सहते हुए आगे बढ़ने लगा….और इस बार वह तब तक बढ़ता रहा….तब तक बढ़ता रहा…जब तक उसने फिनिशिंग लाइन पार नहीं कर ली!
और लाइन पार करते ही वह जमीन पर लेट गया…उसके आँखों से आंसू बह रह थे.
अजय ने रेस पूरी कर ली थी…उसके चेहरे पर इतनी ख़ुशी और मन में इतनी संतुष्टि कभी नहीं आई थी…आज अजय ने अपने चलते रहने की ज़िदके कारण न सिर्फ एक रेस पूरी की थी बल्कि ज़िन्दगी की बाकी रेसों के लिए भी खुद को तैयार कर लिया था.
दोस्तों, चलते रहने की ज़िद हमें किसी भी मंजिल तक पहुंचा सकती है. बाधाओं के आने पर हार मत मानिए…
ना चाहते हुए भी कई बार conditions ऐसी हो जाती हैं कि आप बहुत कुछ नहीं कर सकते! पर ऐसी कंडीशन को “कुछ भी ना करने” का excuse मत बनाइए.
घर में मेहमान हैं आप 8 घंटे नहीं पढ़ सकते….कोई बात नहीं 2 घंटे तो पढ़िए…
बारिश हो रही है…आप 10 कस्टमर्स से नहीं मिल सकते…कम से कम 2-3 से तो मिलिए…
एकदम से रुकिए नहीं… थोड़ा-थोड़ा ही सही आगे तो बढ़िये.
और जब आप ऐसा करेंगे तो अजय की तरह आप भी अपने ज़िन्दगी की रेस ज़रूर पूरी कर पायेंगे और अपने अन्दर उस ख़ुशी उस संतुष्टि को महसूस कर पायेंगे जो सिर्फ चलते रहने की ज़िद से आती है!
बाज_और_पेंगुइन
An Inspirational Story on Using Your Strengths
समुद्र के किनारे खड़े एक पेंगुइन ने जब ऊँचे आसमान में उड़ते बाज को देखा तो सोचने लगा-
“बाज
भी क्या पक्षी है…कितने शान से खुले आकाश में घूमता है…और एक मैं हूँ जो
चाहे जितना भी पंख फड़-फड़ा लूँ ज़मीन से एक इंच ऊपर भी नहीं उठ पाता…”
और ऐसा सोच कर वह कुछ उदास हो गया.
ठीक
इसी पल बाज ने भी पेंगुइन को नीचे समुद्र में तैरते हुए देखा…और सोचने
लगा, “ये पेंगुइन भी क्या कमाल का पक्षी है… जो धरती की सैर भी करता है और
समुद्र की गहराइयों में गोता भी लगाता है… और यहाँ मैं…बस यूँही इधर-उधर उड़ता फिरता हूँ!”
जानते हैं इसके बाद क्या हुआ?
कुछ
नहीं… बाज आकाश की ऊँचाइयों में खो गया और पेंगुइन समद्र की गहराइयों में…
दोनों अपनी मन में आये नेगेटिव थॉट्स को भूल गए और बिना समय गँवाए भगवान
की दी हुई उस ताकत को… उस शक्ति को प्रयोग करने लगे जिसके साथ वो पैदा हुए
थे.
सोचिये अगर वो बाज और पेंगुइन बाज और पेंगुइन न होकर इंसान होते तो क्या होता?
बाज
यही सोच-सोच कर परेशान होता कि वो पानी के अन्दर तैर नहीं सकता और पेंगुइन
दिन-रात बस यही सोचता कि काश वो आकाश में उड़ पाता… और इस चक्कर में वे
दोनों ही अपनी-अपनी existing strengths या skills सही ढंग से use नहीं कर
पाते.
काश हम इंसान भी इन पक्षियों से सीख पाते
कि ईश्वर ने हर किसी के अन्दर अलग-अलग गुण दिए हैं… हर किसी ने अलग-अलग
क्षमताओं के साथ जन्म लिया है और हर इंसान किसी दुसरे इंसान से किसी ना
किसी रूप में बेहतर है. But unfortunately, बहुत से लोगों का ध्यान अपनी
competencies की बजाय दूसरों की achievements पर ही लगा रहता है, जिसे
देखकर वे जलते हैं और अपनी energy गलत जगह लगाते हैं.
आप क्या करते हैं?
क्या
आपको पता है कि आपके अन्दर सबसे अच्छी बात क्या है? क्या आपने कभी कोशिश
की है उस strength को जानने और निखारने की जिसके साथ ईश्वर ने आपको भेजा
है?
अगर
नहीं की है तो करिए, उस gifted skill… उस strength को समझिये…अपनी ताकत को
पहचानिए और उसे अपनी मेहनत से इतना निखारिये कि औरों की नज़र में आप एक
achiever बन पाएं या नहीं लेकिन अपनी और उस ऊपर वाले की नज़र में आप एक
champion ज़रूर बन जाएं!
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