Wednesday, 16 April 2025

"एक आरोपी को दोषमुक्त या दोषसिद्ध होने पर उसी अपराध के लिए दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता" (दोहरे खतरे का सिद्धांत)

    एक आरोपी को उसी अपराध के लिए दोबारा मुकदमा चलाने से बचाता है, जिसके लिए उसे पहले ही दोषमुक्त या दोषसिद्ध किया जा चुका है। यह सिद्धांत **'दोहरे खतरे (Double Jeopardy)'** के विरुद्ध सुरक्षा के रूप में जाना जाता है और यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार अदालत के चक्कर न काटने पड़ें।

**दोहरे खतरे का सिद्धांत क्या है?**


    दोहरे खतरे का सिद्धांत एक मौलिक कानूनी सिद्धांत है जो यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह सिद्धांत मानता है कि एक व्यक्ति को पहले ही कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा है और उसे फिर से उसी प्रक्रिया से गुजारना अनुचित होगा। यह राज्य की शक्ति के दुरुपयोग को रोकने और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति मनमाने अभियोजन से सुरक्षित हैं।

**धारा 300 (भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 - CrPC की धारा 300 के समान):** यह धारा स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा एक बार दोषी ठहराया या बरी कर दिया जाता है, तो उसे उसी अपराध के लिए फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति को पहले ही कानूनी प्रक्रिया का सामना करने के बाद फिर से उसी मुकदमे का सामना न करना पड़े।

**अनुच्छेद 20(2) (भारतीय संविधान):** यह अनुच्छेद दोहरे खतरे के सिद्धांत को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करता है। यह कहता है कि किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार कानूनी प्रक्रिया से न गुजरना पड़े।

**दोहरे खतरे के सिद्धांत की आवश्यकता**

दोहरे खतरे के सिद्धांत की आवश्यकता कई कारणों से है:

**अधिकारों की सुरक्षा:** यह व्यक्तियों को राज्य की मनमानी शक्ति से बचाता है।
**न्याय सुनिश्चित करना:** यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को अनिश्चित काल तक मुकदमेबाजी से न गुजरना पड़े।
**संसाधनों का कुशल उपयोग:** यह अदालतों और अभियोजन एजेंसियों के संसाधनों को बचाने में मदद करता है।
***अंतिम निर्णय:** यह कानूनी मामलों में निश्चितता और अंतिम निर्णय सुनिश्चित करता है।

**दोहरे खतरे के सिद्धांत की सीमाएं**

हालांकि दोहरे खतरे का सिद्धांत व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं:

**अलग-अलग अपराध:** यदि व्यक्ति पर अलग-अलग अपराधों के लिए आरोप लगाए जाते हैं, भले ही वे एक ही घटना से संबंधित हों, तो दोहरे खतरे का सिद्धांत लागू नहीं होगा।
**अलग-अलग न्यायालय:** यदि व्यक्ति को एक न्यायालय द्वारा बरी कर दिया जाता है, लेकिन दूसरे न्यायालय में मुकदमा चलाया जाता है, तो दोहरे खतरे का सिद्धांत लागू नहीं होगा। (हालांकि, ऐसे मामलों में कानूनी जटिलताएं और अपवाद लागू हो सकते हैं।)
**धोखाधड़ी या मिलीभगत:** यदि बरी करने या दोषसिद्धि में धोखाधड़ी या मिलीभगत शामिल है, तो दोहरे खतरे का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता है।
**अपील:** दोषमुक्ति के खिलाफ राज्य द्वारा उच्च न्यायालय में अपील दायर करने पर दोबारा मुकदमा चलाने के बराबर नहीं माना जाता। यह कानूनी प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है।

**उदाहरण के साथ स्पष्टीकरण**

    मान लीजिए कि 'राम' पर चोरी करने का आरोप लगाया गया है और अदालत ने उसे बरी कर दिया है। अब, उसी चोरी के लिए, राम पर दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह दोहरे खतरे के सिद्धांत का एक स्पष्ट उदाहरण है।

    लेकिन, अगर राम पर उसी चोरी के साथ-साथ किसी को नुकसान पहुंचाने का भी आरोप लगता है, और उसे चोरी के आरोप से बरी कर दिया जाता है, तो उसे नुकसान पहुंचाने के आरोप के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है, क्योंकि यह एक अलग अपराध है।

**निष्कर्ष**

    BNSS में 'दोहरे खतरे' के खिलाफ सुरक्षा एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है जो व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है और न्याय सुनिश्चित करता है। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार मुकदमा न चलाया जाए, जिससे राज्य की मनमानी शक्ति पर अंकुश लगता है और कानूनी मामलों में स्थिरता आती है। यह BNSS में शामिल किए गए कई प्रगतिशील उपायों में से एक है, जिसका उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक निष्पक्ष और कुशल बनाना है।    

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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