Friday, 4 April 2025

प्रश्न_5_ भागिक_ पालन के सिद्धांत की विवेचना कीजिए तथा निर्णीत वादों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर _
भागिक पालन का सिद्धांत (Doctrine of Part Performance)

    भागिक पालन का सिद्धांत संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 53A में निहित एक महत्वपूर्ण इक्विटी सिद्धांत है। यह सिद्धांत उन स्थितियों में राहत प्रदान करता है जहाँ एक व्यक्ति ने अचल संपत्ति के हस्तांतरण के लिए एक अनुबंध किया है, और अनुबंध के अनुसार अपने दायित्वों का कुछ हिस्सा पूरा कर दिया है, लेकिन हस्तांतरण औपचारिक रूप से पूरा नहीं हुआ है (जैसे कि पंजीकरण के अभाव में)।

सिद्धांत की विवेचना: धारा 53A के अनुसार, यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं, तो हस्तांतरणकर्ता या उसके अधीन दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति, हस्तांतरिती और उसके अधीन दावा करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध संपत्ति के संबंध में किसी भी अधिकार को लागू करने से वंचित रहेगा, सिवाय अनुबंध में स्पष्ट रूप से प्रदान किए गए अधिकार के:

हस्तांतरण के लिए अनुबंध: अचल संपत्ति के हस्तांतरण के लिए प्रतिफल के साथ एक अनुबंध होना चाहिए।

लिखित और हस्ताक्षरित अनुबंध: अनुबंध लिखित रूप में होना चाहिए और हस्तांतरणकर्ता या उसकी ओर से विधिवत अधिकृत व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए।

निश्चित शर्तें: अनुबंध की शर्तें इतनी निश्चित होनी चाहिए कि हस्तांतरण को उचित निश्चितता के साथ निर्धारित किया जा सके।

    भागिक पालन: हस्तांतरिती ने अनुबंध के भागिक पालन में संपत्ति का कब्जा ले लिया हो या, यदि वह पहले से ही कब्जे में है, तो अनुबंध के भागिक पालन में कब्जा जारी रखा हो और अनुबंध को आगे बढ़ाने के लिए कुछ कार्य किया हो।

पालन की इच्छा: हस्तांतरिती ने अपने अनुबंध का हिस्सा पूरा कर दिया हो या उसे पूरा करने के लिए तैयार और इच्छुक हो।

सिद्धांत का उद्देश्य: इस सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य हस्तांतरणकर्ता को धोखाधड़ी करने या अपने वादे से मुकरने से रोकना है, जब हस्तांतरिती ने अनुबंध पर भरोसा करते हुए कुछ कार्य किया हो और संपत्ति का कब्जा ले लिया हो या उसमें सुधार किया हो। यह इक्विटी के सिद्धांत पर आधारित है कि कानून औपचारिकताओं पर सार को प्राथमिकता देता है।

महत्वपूर्ण पहलू: 
  • यह सिद्धांत केवल बचाव के रूप में उपलब्ध है, न कि हमले के रूप में। इसका मतलब है कि हस्तांतरिती इस धारा के तहत संपत्ति में स्वामित्व का दावा करने के लिए मुकदमा दायर नहीं कर सकता है, लेकिन यदि हस्तांतरणकर्ता उसके कब्जे को चुनौती देता है तो वह इस धारा को बचाव के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।
  • यह सिद्धांत तभी लागू होता है जब हस्तांतरण के लिए वैध अनुबंध हो। यदि अनुबंध शून्य या अवैध है, तो इस धारा का कोई लाभ नहीं मिलेगा।
  • हस्तांतरिती का कब्जा अनुबंध के भागिक पालन में होना चाहिए। यदि कब्जा किसी अन्य कारण से है, तो यह धारा लागू नहीं होगी।
  • हस्तांतरिती को अपने अनुबंध का हिस्सा पूरा करने के लिए तैयार और इच्छुक होना चाहिए। यदि वह अपने दायित्वों को पूरा करने में विफल रहता है, तो वह इस धारा का लाभ नहीं उठा सकता है।

निर्णीत वाद (Decided Cases):

भागिक पालन के सिद्धांत पर कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए गए हैं। उनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:

श्रीकलाकुलम सुब्रह्मण्यम बनाम कुरा सुब्बा राव (AIR 1948 PC 95): इस मामले में प्रिवी काउंसिल ने धारा 53A की आवश्यकताओं और दायरे को स्पष्ट किया। न्यायालय ने कहा कि इस धारा का लाभ उठाने के लिए सभी निर्दिष्ट शर्तों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।

नाथुलाल बनाम फूलचंद (AIR 1970 SC 129): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भागिक पालन के सिद्धांत को लागू करते हुए हस्तांतरिती के कब्जे की रक्षा की, जिसने बिक्री समझौते के तहत आंशिक भुगतान किया था और संपत्ति का कब्जा ले लिया था, भले ही औपचारिक बिक्री विलेख निष्पादित नहीं किया गया था।

सरदार गोविन्दराव महादिक एवं अन्य बनाम देवी सहाय एवं अन्य (AIR 1982 SC 989): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भागिक पालन के तहत सुरक्षा का दावा करने वाले हस्तांतरिती को यह साबित करना होगा कि उसके कार्य स्पष्ट रूप से अनुबंध के संदर्भ में किए गए थे और वह अपने हिस्से का पालन करने के लिए तैयार और इच्छुक था।

श्रीमंत शामराव सूर्यवंशी एवं अन्य बनाम प्रल्हाद भैरोबा सूर्यवंशी (मृत) द्वारा वारिसान एवं अन्य (AIR 2002 SC 1377): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि धारा 53A एक बचाव प्रदान करती है ताकि हस्तांतरणकर्ता को अपंजीकृत दस्तावेज़ के आधार पर बेदखल करने से रोका जा सके, यदि हस्तांतरिती ने अपने हिस्से का पालन किया है या करने को तैयार है।

फ़ातिमा बीबी बनाम अटर्नी जनरल (AIR 2014 SC 3119): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 53A के दायरे और सीमा पर फिर से जोर दिया और कहा कि यह सिद्धांत केवल उन मामलों में लागू होता है जहाँ एक वैध लिखित अनुबंध मौजूद है।

    यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक मामले के तथ्य और परिस्थितियाँ अलग-अलग होती हैं, और न्यायालय विशिष्ट तथ्यों के आधार पर भागिक पालन के सिद्धांत को लागू करने या न करने का निर्णय लेता है।

    संक्षेप में, भागिक पालन का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण इक्विटी सिद्धांत है जो अपंजीकृत हस्तांतरण के मामलों में हस्तांतरिती के हितों की रक्षा करता है, जब उसने अनुबंध के अनुसार अपने दायित्वों का कुछ हिस्सा पूरा कर दिया हो और शेष भाग को पूरा करने के लिए तैयार और इच्छुक हो। यह सिद्धांत हस्तांतरणकर्ता को अपने वादे से मुकरने और धोखाधड़ी करने से रोकता है।

प्रश्न_4_ दृश्यमान स्वामी से आप क्या समझते हैं? संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 41 के अंतर्गत उस स्वामी को क्या संरक्षण प्राप्त है जिसको एक दृश्यमान स्वामी द्वारा स्थावर संपत्ति अंतरित की गई है?

उत्तर _  
    दृश्यमान स्वामी (Ostensible Owner) वह व्यक्ति होता है जो किसी स्थावर संपत्ति का वास्तविक स्वामी नहीं होता है, लेकिन उस संपत्ति के संबंध में स्वामित्व के सभी बाहरी लक्षण रखता है। ऐसा व्यक्ति वास्तविक स्वामी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहमति से संपत्ति का स्वामी प्रतीत होता है। दूसरे शब्दों में, दृश्यमान स्वामी वह व्यक्ति है जिसका नाम संपत्ति के दस्तावेजों में दर्ज होता है या जो सार्वजनिक रूप से संपत्ति का स्वामी प्रतीत होता है, भले ही वास्तविक स्वामित्व किसी और के पास हो।

संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 41 के अंतर्गत दृश्यमान स्वामी द्वारा अंतरित संपत्ति के संबंध में अंतरिती को संरक्षण:

    संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 41 "दृश्यमान स्वामी द्वारा अंतरण" से संबंधित है। यह धारा उस स्थिति में अंतरिती (transferee) को संरक्षण प्रदान करती है जब उसे एक दृश्यमान स्वामी द्वारा स्थावर संपत्ति अंतरित की जाती है। इस धारा के अनुसार, यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं, तो अंतरण इस आधार पर निरस्त नहीं किया जाएगा कि अंतरणकर्ता (transferor) को इसे करने का अधिकार नहीं था:

अंतरणकर्ता दृश्यमान स्वामी हो: संपत्ति का अंतरण करने वाला व्यक्ति उस संपत्ति का दृश्यमान स्वामी होना चाहिए। इसका अर्थ है कि वह बाहरी रूप से संपत्ति का स्वामी प्रतीत होना चाहिए, भले ही वह वास्तविक स्वामी न हो।

वास्तविक स्वामी की सहमति: दृश्यमान स्वामी वास्तविक स्वामी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहमति से संपत्ति का स्वामी बना हो। यह सहमति किसी भी रूप में हो सकती है, जैसे कि वास्तविक स्वामी ने जानबूझकर या लापरवाही से अंतरणकर्ता को खुद को संपत्ति का स्वामी बताने की अनुमति दी हो।

प्रतिफल के लिए अंतरण: दृश्यमान स्वामी द्वारा संपत्ति का अंतरण प्रतिफल (consideration) के बदले में किया गया हो। दान या उपहार के रूप में किए गए अंतरण इस धारा के अंतर्गत संरक्षित नहीं हैं।


अंतरिती द्वारा उचित सावधानी और सद्भावना: अंतरिती ने अंतरणकर्ता के पास अंतरण करने का अधिकार है या नहीं, यह पता लगाने के लिए उचित सावधानी बरती हो और उसने सद्भावना (good faith) में कार्य किया हो। इसका मतलब है कि अंतरिती को यह विश्वास होना चाहिए कि अंतरणकर्ता संपत्ति का वास्तविक स्वामी है या उसे अंतरण करने का अधिकार है, और इस विश्वास के लिए उसके पास पर्याप्त कारण होने चाहिए। यदि अंतरिती को वास्तविक स्वामित्व के बारे में पता था या उसे संदेह करने का कारण था, लेकिन उसने उचित जांच नहीं की, तो उसे इस धारा का संरक्षण नहीं मिलेगा।

अंतरिती को प्राप्त संरक्षण:

    यदि उपरोक्त सभी शर्तें पूरी होती हैं, तो संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 41 के तहत अंतरिती को निम्नलिखित संरक्षण प्राप्त होता है:

अंतरण का निरस्त न होना: वास्तविक स्वामी बाद में इस आधार पर अंतरण को चुनौती नहीं दे सकता है कि दृश्यमान स्वामी को संपत्ति अंतरित करने का अधिकार नहीं था। कानून ऐसे अंतरण को वैध मानता है।

विबंध का सिद्धांत (Doctrine of Estoppel): यह धारा वास्तविक स्वामी के विरुद्ध विबंध का सिद्धांत लागू करती है। यदि वास्तविक स्वामी ने अपनी सहमति से किसी अन्य व्यक्ति को संपत्ति का दृश्यमान स्वामी बनने दिया और उस व्यक्ति ने संपत्ति को प्रतिफल के लिए अंतरित कर दिया, तो वास्तविक स्वामी को बाद में अंतरण की वैधता पर सवाल उठाने से रोक दिया जाएगा।

महत्वपूर्ण बातें:
  • अंतरिती को यह साबित करना होगा कि उसने उचित सावधानी बरती और सद्भावना में कार्य किया।
  • यह धारा केवल स्थावर संपत्ति (immovable property) के अंतरण पर लागू होती है, जंगम संपत्ति (movable property) पर नहीं।
    यह धारा सामान्य नियम "नेमो डेट क्वॉड नॉन हैबेट" (nemo dat quod non habet) - कोई भी व्यक्ति वह अधिकार नहीं दे सकता जो उसके पास स्वयं नहीं है) का अपवाद है। इसका उद्देश्य उन ईमानदार खरीदारों के हितों की रक्षा करना है जो संपत्ति के दृश्यमान स्वामित्व पर भरोसा करते हैं।

    संक्षेप में, दृश्यमान स्वामी वह व्यक्ति है जो संपत्ति का वास्तविक स्वामी न होते हुए भी स्वामी प्रतीत होता है, और यदि वह वास्तविक स्वामी की सहमति से प्रतिफल के लिए संपत्ति अंतरित करता है, और अंतरिती उचित सावधानी बरतते हुए सद्भावना में कार्य करता है, तो अंतरण वैध माना जाएगा और वास्तविक स्वामी उसे चुनौती नहीं दे सकता।

प्रश्न_3_ निहित हित और समाश्रित हित की व्याख्या कीजिये और दोनों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिये।

उत्तर _

निहित हित (Vested Interest)

     निहित हित का अर्थ है संपत्ति में वर्तमान अधिकार प्राप्त होना। संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 19 के अनुसार, जहां किसी संपत्ति के अंतरण से किसी व्यक्ति के पक्ष में उस संपत्ति में कोई हित सृजित किया जाता है, बिना यह निर्दिष्ट किए कि वह कब प्रभावी होगा, या यह निर्दिष्ट करते हुए कि वह तत्काल प्रभावी होगा या किसी ऐसी घटना के घटित होने पर, जो अवश्य घटित होगी, तो ऐसा हित निहित होता है, जब तक कि अंतरण के निबंधनों से विपरीत आशय प्रकट न हो।

    सरल शब्दों में, निहित हित का मतलब है कि अंतरिती को संपत्ति में तुरंत अधिकार मिल जाता है, भले ही उसे संपत्ति का कब्जा या उपभोग भविष्य में मिले। यह अधिकार किसी अनिश्चित घटना पर निर्भर नहीं होता है, बल्कि एक निश्चित घटना (जैसे मृत्यु) या समय बीतने पर प्रभावी होता है। निहित हित अंतरिती की मृत्यु पर समाप्त नहीं होता है, बल्कि उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित हो जाता है।

उदाहरण:

१. 'अ' अपनी संपत्ति 'ब' को दान करता है और कहता है कि 'ब' की मृत्यु के बाद यह 'स' की हो जाएगी। इस मामले में, 'ब' और 'स' दोनों का संपत्ति में निहित हित है। 'ब' को वर्तमान में उपभोग का अधिकार है, जबकि 'स' को भविष्य में 'ब' की मृत्यु के बाद उपभोग का अधिकार मिलेगा।

२. 'अ' अपनी संपत्ति अपने पुत्र 'ब' को इस शर्त पर देता है कि जब वह 25 वर्ष का हो जाएगा तो उसे कब्जा मिलेगा। यहां 'ब' का हित निहित है क्योंकि 25 वर्ष की आयु प्राप्त करना एक निश्चित घटना है। उसे वर्तमान में संपत्ति में अधिकार मिल गया है, केवल उपभोग का अधिकार स्थगित है।

समाश्रित हित (Contingent Interest)

    समाश्रित हित का अर्थ है संपत्ति में भविष्य में अधिकार प्राप्त होने की संभावना, जो किसी अनिश्चित घटना के घटित होने या न होने पर निर्भर करती है। संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 21 के अनुसार, जहां कि संपत्ति अंतरण से उस संपत्ति में किसी व्यक्ति के पक्ष में हित किसी विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना के घटित होने पर ही अथवा किसी विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना के घटित न होने पर ही प्रभावी होने के लिए सृष्ट किया गया हो, वहां ऐसा व्यक्ति तद्द्वारा उस संपत्ति में समाश्रित हित अर्जित करता है।

    दूसरे शब्दों में, समाश्रित हित तब उत्पन्न होता है जब संपत्ति में अधिकार किसी ऐसी घटना पर निर्भर करता है जो घटित हो भी सकती है और नहीं भी। यदि वह अनिश्चित घटना घटित होती है, तो समाश्रित हित निहित हित में बदल जाता है। यदि वह घटना घटित नहीं होती है या असंभव हो जाती है, तो समाश्रित हित समाप्त हो जाता है। समाश्रित हित अंतरिती की मृत्यु पर समाप्त हो जाता है यदि घटना उसके जीवनकाल में घटित न हो।

उदाहरण:

१. 'अ' अपनी संपत्ति 'ब' को देता है यदि वह स्नातक की डिग्री प्राप्त करता है। यहां 'ब' का हित समाश्रित है क्योंकि स्नातक की डिग्री प्राप्त करना एक अनिश्चित घटना है। यदि 'ब' डिग्री प्राप्त करता है, तो उसका हित निहित हो जाएगा। यदि वह डिग्री प्राप्त नहीं करता है, तो उसका हित समाप्त हो जाएगा।


२. 'अ' अपनी संपत्ति 'ब' को देता है यदि 'स' मर जाता है। यहां 'ब' का हित समाश्रित है क्योंकि 'स' की मृत्यु एक अनिश्चित घटना है। यदि 'स' मर जाता है, तो 'ब' का हित निहित हो जाएगा। यदि 'स' जीवित रहता है, तो 'ब' का हित समाप्त हो जाएगा।

निहित हित और समाश्रित हित के बीच अंतर

आधार

निहित हित

समाश्रित हित

अधिकार का स्वरूप

संपत्ति में वर्तमान अधिकार प्रदान करता है।

संपत्ति में भविष्य में अधिकार प्राप्त होने की संभावना प्रदान करता है, जो अनिश्चित है।

प्रभावी होने का समय

तत्काल या किसी निश्चित घटना (जैसे मृत्यु) पर प्रभावी होता है।

किसी अनिश्चित घटना के घटित होने या न होने पर प्रभावी होता है।

घटना पर निर्भरता

किसी अनिश्चित घटना पर निर्भर नहीं करता है।

किसी अनिश्चित घटना पर निर्भर करता है।

अंतरिती की मृत्यु

अंतरिती की मृत्यु पर समाप्त नहीं होता है, उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित होता है।

अंतरिती की मृत्यु पर समाप्त हो जाता है यदि अनिश्चित घटना उसके जीवनकाल में घटित न हो।

हस्तांतरणीयता

हस्तांतरणीय और वंशानुगत होता है।

हस्तांतरणीय होता है, लेकिन वंशानुगत नहीं होता यदि घटना अंतरिती के जीवनकाल में न घटे।

उपभोग का अधिकार

उपभोग का अधिकार वर्तमान या भविष्य में निश्चित होता है।

उपभोग का अधिकार भविष्य में अनिश्चित घटना पर निर्भर करता है।

पूर्णता

पूर्ण हित होता है, भले ही उपभोग स्थगित हो।

अपूर्ण हित होता है जो अनिश्चित घटना के घटित होने पर पूर्ण होता है।


    संक्षेप में, निहित हित एक वर्तमान और निश्चित अधिकार है, जबकि समाश्रित हित एक भविष्य और अनिश्चित अधिकार है जो किसी घटना पर निर्भर करता है।

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