Wednesday, 16 April 2025

BNSS में प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम के प्रावधान

    भारतीय न्याय संहिता (BNSS) न केवल अपराधों और दंडों को पुनर्गठित करती है, बल्कि प्रतिकारात्मक न्याय (Restorative Justice) और पीड़ित प्रतिकार स्कीम (Victim Compensation Scheme) पर भी विशेष ध्यान केंद्रित करती है। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है जो अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के साथ-साथ पीड़ितों के अधिकारों और जरूरतों को प्राथमिकता देता है। 

**प्रतिकारात्मक न्याय: एक नया दृष्टिकोण**

    प्रतिकारात्मक न्याय पारंपरिक दंडनीय दृष्टिकोण से हटकर एक ऐसा दर्शन है जो अपराध के कारण हुए नुकसान को सुधारने पर केंद्रित है। यह पीड़ित, अपराधी और समुदाय को एक साथ लाता है ताकि अपराध के परिणामों को समझा जा सके और उसे ठीक करने के लिए एक समझौता किया जा सके। BNSS में प्रतिकारात्मक न्याय को स्पष्ट रूप से परिभाषित तो नहीं किया गया है, लेकिन कुछ ऐसे प्रावधान जरूर शामिल किए गए हैं जो इसके सिद्धांतों के अनुरूप हैं।

**समझौते के माध्यम से समाधान:** BNSS कुछ मामलों में समझौते के माध्यम से समाधान की अनुमति देती है। यह समझौता तब हो सकता है जब पीड़ित और अपराधी अपराध के नतीजों को स्वीकार करते हैं और क्षतिपूर्ति या अन्य उपायों के माध्यम से नुकसान को कम करने पर सहमत होते हैं। इससे न्यायालय पर बोझ कम होता है और पीड़ित को त्वरित न्याय मिलने की संभावना बढ़ जाती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि समझौते के लिए अपराध की प्रकृति और गंभीरता पर विचार किया जाता है, और कुछ गंभीर अपराधों में यह संभव नहीं है।

**सजा में वैकल्पिक उपाय:** BNSS के तहत सजा सुनाते समय न्यायालय अपराधियों को सुधारात्मक उपाय (Corrective measures) जैसे सामुदायिक सेवा, परामर्श, और शिक्षा कार्यक्रम अपनाने के लिए कह सकते हैं। ये उपाय अपराधियों को उनके कार्यों के लिए जिम्मेदारी लेने और भविष्य में अपराधों को रोकने में मदद कर सकते हैं।

**पीड़ित की भूमिका पर बल:** BNSS में पीड़ितों को अधिक अधिकार दिए गए हैं, जिसमें सुनवाई के दौरान अपनी बात रखने का अधिकार भी शामिल है। यह प्रतिकारात्मक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है, जहां पीड़ितों को प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने और अपनी जरूरतों और चिंताओं को व्यक्त करने का अवसर मिलता है।

**पीड़ित प्रतिकार स्कीम: पीड़ितों को आर्थिक सहायता**


BNSS में पीड़ित प्रतिकार स्कीम से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं। यह योजना अपराध के पीड़ितों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का लक्ष्य रखती है, खासकर उन मामलों में जहां अपराधी को पहचाना नहीं जा सका है या उसके पास क्षतिपूर्ति देने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
**राज्य सरकार की भूमिका:** प्रत्येक राज्य सरकार को पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए एक पीड़ित प्रतिकार स्कीम स्थापित करने का आदेश दिया गया है। यह स्कीम उन पीड़ितों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है जिन्हें अपराध के कारण चोट लगी है, विकलांगता हुई है या जिनकी मृत्यु हो गई है।

**मुआवजे के लिए मानदंड:** मुआवजे की राशि अपराध की गंभीरता, पीड़ित की चोट की प्रकृति, चिकित्सा खर्चों और अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर निर्धारित की जाती है। स्कीम में मुआवजे के लिए पात्रता मानदंड और आवेदन प्रक्रिया भी निर्दिष्ट की गई है।

**मुआवजा प्राप्त करने की प्रक्रिया:** पीड़ितों को पुलिस स्टेशन या मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करना होगा, जिसमें अपराध की जानकारी और नुकसान का विवरण देना होगा। इसके बाद, पीड़ित प्रतिकार स्कीम प्राधिकरण द्वारा आवेदन की समीक्षा की जाती है और मुआवजे की राशि निर्धारित की जाती है।

**अतिरिक्त मुआवज़े का प्रावधान:** यदि अपराधी को दोषी ठहराया जाता है और वह मुआवजे का भुगतान करने में असमर्थ है, तो न्यायालय राज्य सरकार को पीड़ित प्रतिकार स्कीम से अतिरिक्त मुआवजा प्रदान करने का निर्देश दे सकता है।

**BNSS में पीड़ित प्रतिकार स्कीम के मुख्य लाभ:**


**पीड़ितों को वित्तीय सहायता:** यह योजना अपराध के पीड़ितों को चिकित्सा खर्चों, पुनर्वास लागत और आजीविका के नुकसान सहित विभिन्न प्रकार के खर्चों को कवर करने में मदद करती है।
**न्याय तक पहुंच में सुधार:** यह योजना उन पीड़ितों के लिए न्याय तक पहुंच को आसान बनाती है जिनके पास कानूनी सहायता लेने या अपराधी से मुआवजा वसूलने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
**पीड़ितों के अधिकारों को बढ़ावा देना:** यह योजना पीड़ितों के अधिकारों को मान्यता देती है और उन्हें अपराध न्याय प्रणाली में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
**सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना:** यह योजना समाज में कमजोर और वंचित लोगों की सुरक्षा को मजबूत करती है और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देती है।

**चुनौतियां और आगे की राह:**

हालांकि BNSS में प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन इन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने में कुछ चुनौतियां भी हैं:

**जागरूकता की कमी:** पीड़ितों, पुलिस अधिकारियों और न्यायपालिका के बीच इन योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।
**प्रक्रियात्मक बाधाएं:** मुआवजे के लिए आवेदन प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाना महत्वपूर्ण है।
**पर्याप्त संसाधन:** राज्य सरकारों को पीड़ित प्रतिकार स्कीम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए पर्याप्त वित्तीय और मानव संसाधन आवंटित करने की आवश्यकता है।
**प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण:** पुलिस अधिकारियों, न्यायाधीशों और अन्य हितधारकों को प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम के सिद्धांतों और प्रक्रियाओं पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।

**निष्कर्ष:**

    भारतीय न्याय संहिता (BNSS) में प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम के प्रावधान एक सकारात्मक बदलाव हैं जो अपराध न्याय प्रणाली को अधिक पीड़ित-केंद्रित और मानवीय बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।  इन योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने से न केवल पीड़ितों को न्याय मिलेगा, बल्कि अपराधियों को सुधरने और समाज में फिर से शामिल होने का अवसर भी मिलेगा।  हालांकि, इन योजनाओं की सफलता के लिए सरकार, न्यायपालिका, पुलिस और नागरिक समाज सहित सभी हितधारकों के बीच सक्रिय सहयोग और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि इन प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए ताकि पीड़ितों को वास्तविक लाभ मिल सके और समाज में न्याय और समानता को बढ़ावा मिले।

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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"एक आरोपी को दोषमुक्त या दोषसिद्ध होने पर उसी अपराध के लिए दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता" (दोहरे खतरे का सिद्धांत)

    एक आरोपी को उसी अपराध के लिए दोबारा मुकदमा चलाने से बचाता है, जिसके लिए उसे पहले ही दोषमुक्त या दोषसिद्ध किया जा चुका है। यह सिद्धांत **'दोहरे खतरे (Double Jeopardy)'** के विरुद्ध सुरक्षा के रूप में जाना जाता है और यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार अदालत के चक्कर न काटने पड़ें।

**दोहरे खतरे का सिद्धांत क्या है?**


    दोहरे खतरे का सिद्धांत एक मौलिक कानूनी सिद्धांत है जो यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह सिद्धांत मानता है कि एक व्यक्ति को पहले ही कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा है और उसे फिर से उसी प्रक्रिया से गुजारना अनुचित होगा। यह राज्य की शक्ति के दुरुपयोग को रोकने और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति मनमाने अभियोजन से सुरक्षित हैं।

**धारा 300 (भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 - CrPC की धारा 300 के समान):** यह धारा स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा एक बार दोषी ठहराया या बरी कर दिया जाता है, तो उसे उसी अपराध के लिए फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति को पहले ही कानूनी प्रक्रिया का सामना करने के बाद फिर से उसी मुकदमे का सामना न करना पड़े।

**अनुच्छेद 20(2) (भारतीय संविधान):** यह अनुच्छेद दोहरे खतरे के सिद्धांत को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करता है। यह कहता है कि किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार कानूनी प्रक्रिया से न गुजरना पड़े।

**दोहरे खतरे के सिद्धांत की आवश्यकता**

दोहरे खतरे के सिद्धांत की आवश्यकता कई कारणों से है:

**अधिकारों की सुरक्षा:** यह व्यक्तियों को राज्य की मनमानी शक्ति से बचाता है।
**न्याय सुनिश्चित करना:** यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को अनिश्चित काल तक मुकदमेबाजी से न गुजरना पड़े।
**संसाधनों का कुशल उपयोग:** यह अदालतों और अभियोजन एजेंसियों के संसाधनों को बचाने में मदद करता है।
***अंतिम निर्णय:** यह कानूनी मामलों में निश्चितता और अंतिम निर्णय सुनिश्चित करता है।

**दोहरे खतरे के सिद्धांत की सीमाएं**

हालांकि दोहरे खतरे का सिद्धांत व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं:

**अलग-अलग अपराध:** यदि व्यक्ति पर अलग-अलग अपराधों के लिए आरोप लगाए जाते हैं, भले ही वे एक ही घटना से संबंधित हों, तो दोहरे खतरे का सिद्धांत लागू नहीं होगा।
**अलग-अलग न्यायालय:** यदि व्यक्ति को एक न्यायालय द्वारा बरी कर दिया जाता है, लेकिन दूसरे न्यायालय में मुकदमा चलाया जाता है, तो दोहरे खतरे का सिद्धांत लागू नहीं होगा। (हालांकि, ऐसे मामलों में कानूनी जटिलताएं और अपवाद लागू हो सकते हैं।)
**धोखाधड़ी या मिलीभगत:** यदि बरी करने या दोषसिद्धि में धोखाधड़ी या मिलीभगत शामिल है, तो दोहरे खतरे का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता है।
**अपील:** दोषमुक्ति के खिलाफ राज्य द्वारा उच्च न्यायालय में अपील दायर करने पर दोबारा मुकदमा चलाने के बराबर नहीं माना जाता। यह कानूनी प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है।

**उदाहरण के साथ स्पष्टीकरण**

    मान लीजिए कि 'राम' पर चोरी करने का आरोप लगाया गया है और अदालत ने उसे बरी कर दिया है। अब, उसी चोरी के लिए, राम पर दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह दोहरे खतरे के सिद्धांत का एक स्पष्ट उदाहरण है।

    लेकिन, अगर राम पर उसी चोरी के साथ-साथ किसी को नुकसान पहुंचाने का भी आरोप लगता है, और उसे चोरी के आरोप से बरी कर दिया जाता है, तो उसे नुकसान पहुंचाने के आरोप के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है, क्योंकि यह एक अलग अपराध है।

**निष्कर्ष**

    BNSS में 'दोहरे खतरे' के खिलाफ सुरक्षा एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है जो व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है और न्याय सुनिश्चित करता है। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार मुकदमा न चलाया जाए, जिससे राज्य की मनमानी शक्ति पर अंकुश लगता है और कानूनी मामलों में स्थिरता आती है। यह BNSS में शामिल किए गए कई प्रगतिशील उपायों में से एक है, जिसका उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक निष्पक्ष और कुशल बनाना है।    

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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BNSS: सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ देने का आदेश

    'सदाचरण की परिवीक्षा' पर अभियुक्त को छोड़ देना, जिसका अर्थ है उसे जेल भेजने के बजाय अच्छे आचरण की शर्त पर रिहा कर देना। 

**सदाचरण की परिवीक्षा: मूल अवधारणा**

    सदाचरण की परिवीक्षा, जैसा कि BNSS में परिकल्पित है, अभियुक्त को सुधार का अवसर प्रदान करती है। इसका उद्देश्य विशेष रूप से युवा अपराधियों और पहली बार अपराध करने वालों को जेल के कठोर वातावरण से बचाना है, जहां वे और अधिक आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने की संभावना रखते हैं। इस व्यवस्था के तहत, अभियुक्त को कुछ शर्तों के साथ रिहा किया जाता है, जैसे:

*   नियमित रूप से परिवीक्षा अधिकारी से मिलना।
*   कानून का पालन करना।
*   शराब या नशीले पदार्थों का सेवन न करना।
*   समुदाय सेवा में भाग लेना (कुछ मामलों में)।

**BNSS में सदाचरण की परिवीक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान**

BNSS में सदाचरण की परिवीक्षा से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्रावधान हैं जिन पर ध्यान देना आवश्यक है:

**अपराधों की प्रकृति:** यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी प्रकार के अपराधों के लिए सदाचरण की परिवीक्षा उपलब्ध नहीं है। गंभीर अपराधों, जैसे हत्या और बलात्कार, के लिए यह विकल्प उपलब्ध नहीं हो सकता है।
**आयु और पृष्ठभूमि:** न्यायालय अभियुक्त की आयु, पृष्ठभूमि और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों पर विचार करेगा। युवा अपराधियों और पहली बार अपराध करने वालों को वरीयता दी जा सकती है।
**पीड़ित का दृष्टिकोण:** न्यायालय पीड़ित की राय को भी ध्यान में रख सकता है, खासकर यदि अपराध पीड़ित को गंभीर नुकसान पहुंचाता है।
**परिवीक्षा अधिकारी की भूमिका:** परिवीक्षा अधिकारी यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि अभियुक्त शर्तों का पालन कर रहा है। वे अभियुक्त को पुनर्वास में भी मदद करते हैं।

**सदाचरण की परिवीक्षा के लाभ**

**जेल की भीड़ कम करना:** यह सजा का एक किफायती विकल्प है जो जेल की भीड़ को कम करने में मदद कर सकता है।
**अपराधियों का पुनर्वास:** यह अपराधियों को समाज में फिर से एकीकृत होने का अवसर प्रदान करता है।
**अपराध दर में कमी:** अध्ययनों से पता चला है कि सदाचरण की परिवीक्षा अपराध दर को कम करने में प्रभावी हो सकती है।

**चुनौतियाँ और संभावित कमियाँ**

**कार्यान्वयन की निगरानी:** यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि परिवीक्षा की शर्तों का ठीक से पालन किया जा रहा है।
**परिवीक्षा अधिकारियों पर बोझ:** परिवीक्षा अधिकारियों पर अत्यधिक बोझ हो सकता है, जिससे वे सभी मामलों पर प्रभावी ढंग से निगरानी करने में असमर्थ हो सकते हैं।
**सार्वजनिक सुरक्षा:** यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि सदाचरण की परिवीक्षा के तहत रिहा किए गए अभियुक्त सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा न बनें।

**निष्कर्ष**

    सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ देने का आदेश एक प्रगतिशील कदम है जो अपराधियों को सुधार का अवसर प्रदान करता है। हालाँकि, इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त संसाधनों, अच्छी तरह से प्रशिक्षित परिवीक्षा अधिकारियों और सार्वजनिक सुरक्षा पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसमें निस्संदेह भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार लाने की क्षमता है।

BNSS: सह अपराधी की क्षमा की निविदान

    भारतीय न्याय प्रणाली में अपराधों की जाँच और सुनवाई एक जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में, कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी मामले में शामिल कई आरोपियों में से कोई एक, जिसे 'सह-अपराधी' (Co-accused) कहा जाता है, क्षमा या माफी के लिए निवेदन करता है। इस तरह के निवेदन पर विचार करते समय, अदालत को विशेष सावधानी बरतनी होती है क्योंकि इसका असर पूरे मामले और न्याय की प्रक्रिया पर पड़ सकता है।

**सह-अपराधी की क्षमा निविदान क्या है?**

    एक सह-अपराधी, अपराध में शामिल अन्य आरोपियों के खिलाफ गवाही देने के बदले में, सजा से छूट पाने या कम सजा की मांग कर सकता है। यह आमतौर पर तब होता है जब सह-अपराधी जांच एजेंसियों को अपराध के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है, जो मामले को सुलझाने में मदद कर सकती है। इस प्रक्रिया को 'राजसाक्षी बनना' (Becoming an Approver) भी कहा जाता है।

   आम तौर पर, अदालत सह-अपराधी के क्षमा निविदान पर विचार करते समय निम्नलिखित कारकों पर ध्यान देती है:
 

**जानकारी की सच्चाई और प्रासंगिकता:** सह-अपराधी द्वारा दी गई जानकारी कितनी सटीक और मामले के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। क्या इससे अपराध की गुत्थी सुलझ सकती है और अन्य आरोपियों को दोषी ठहराने में मदद मिल सकती है?

**सहयोग की मात्रा:** सह-अपराधी ने जाँच एजेंसियों के साथ कितना सहयोग किया है। क्या उसने बिना किसी दबाव के स्वेच्छा से जानकारी दी है?
**सह-अपराधी की भूमिका:** अपराध में सह-अपराधी की भूमिका कितनी सक्रिय थी। क्या वह सिर्फ एक दर्शक था या उसने अपराध में सक्रिय रूप से भाग लिया?
**न्याय के हित:** क्या सह-अपराधी को क्षमा करना न्याय के हित में होगा? क्या इससे अन्य आरोपियों को दोषी ठहराने और अपराध को रोकने में मदद मिलेगी?

**अदालत की जिम्मेदारी:**


    सह-अपराधी को क्षमा करने का निर्णय अदालत का होता है और यह एक विवेकाधीन शक्ति है। अदालत को इस निर्णय को बहुत सावधानी से लेना होता है, क्योंकि इससे मामले में शामिल अन्य आरोपियों के अधिकारों पर असर पड़ सकता है। अदालत को यह सुनिश्चित करना होता है कि सह-अपराधी की क्षमा से न्याय का उल्लंघन न हो और पीड़ित के साथ अन्याय न हो।

**निष्कर्ष:**

    सह-अपराधी की क्षमा निविदान एक जटिल कानूनी मुद्दा है। अदालत को यह सुनिश्चित करना होता है कि सह-अपराधी को क्षमा करने का निर्णय न्याय के सिद्धांतों और पीड़ित के अधिकारों के अनुरूप हो। इस तरह के निर्णयों में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बनाए रखना, भारतीय न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता के लिए आवश्यक है।

 

(यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और कानूनी सलाह नहीं है।)

BNSS: अभियोजन वापस लेना

**अभियोजन वापस लेने का तात्पर्य:**

    अभियोजन वापस लेने का अर्थ है सरकार या अभियोजन पक्ष द्वारा किसी आपराधिक मामले को आगे न बढ़ाने का निर्णय लेना। यह निर्णय किसी मामले की शुरुआत के बाद किसी भी स्तर पर लिया जा सकता है, लेकिन निर्णय सुनाए जाने से पहले।


**BNSS और अभियोजन वापस लेना:**


    BNSS में अभियोजन वापस लेने की प्रक्रिया को दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure - CrPC) की मौजूदा प्रावधानों के अनुरूप ही रखा गया है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण पहलू ध्यान देने योग्य हैं:


*   **सार्वजनिक हित:** अभियोजन वापस लेने का मुख्य आधार हमेशा सार्वजनिक हित (Public Interest) होना चाहिए। इसका अर्थ है कि मामला वापस लेने से समाज का कल्याण होना चाहिए और न्याय का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
*   **न्यायालय की भूमिका:** CrPC की धारा 321 के तहत, अभियोजन पक्ष को किसी मामले को वापस लेने के लिए न्यायालय की अनुमति लेनी होती है। न्यायालय को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि अभियोजन वापस लेना उचित है और सार्वजनिक हित में है। BNSS भी इसी प्रक्रिया का पालन करती है।
*   **कारण बताना आवश्यक:** अभियोजन पक्ष को अभियोजन वापस लेने के कारणों को स्पष्ट रूप से बताना होता है। ये कारण कानूनी और तथ्यात्मक होने चाहिए और न्यायालय को संतुष्ट करने वाले होने चाहिए।

**अभियोजन वापस लेने के कारण:**


    अभियोजन पक्ष विभिन्न कारणों से किसी मामले को वापस लेने का निर्णय ले सकता है, जिनमें शामिल हैं:

*   **अपर्याप्त सबूत:** यदि अभियोजन पक्ष के पास आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं, तो वे मामला वापस लेने का निर्णय ले सकते हैं।
*   **साक्षी अनुपलब्ध:** यदि महत्वपूर्ण साक्षी अनुपलब्ध हैं या गवाही देने को तैयार नहीं हैं, तो मामला वापस लिया जा सकता है।
*   **जनहित:** कुछ मामलों में, सामाजिक सद्भाव बनाए रखने या अन्य जनहित कारणों से मामला वापस लेना उचित हो सकता है।
*   **राजनीतिक सुलह:** कभी-कभी, राजनीतिक सुलह को बढ़ावा देने के लिए भी अभियोजन वापस लिया जा सकता है।

**निहितार्थ:**

    अभियोजन वापस लेने की प्रक्रिया का समाज और न्याय प्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। यदि इस प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जाता है, तो यह न्याय को कमजोर कर सकता है और अपराधियों को दंड से बचने में मदद कर सकता है। इसलिए, न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियोजन वापस लेने का निर्णय केवल सार्वजनिक हित में लिया जाए और कानूनी सिद्धांतों का पालन करते हुए लिया जाए।

बीएनएसएस की धारा 360 द्वारा जोड़ी गई नई विशेषताएं क्या हैं? 

  • बीएनएसएस की धारा 360 में प्रावधान में परिवर्तन किया गया है, जो उन मामलों में लागू होगा जहां अभियोजन वापस लेने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक है। 
    • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (सीआरपीसी की धारा 321 के तहत) द्वारा जांच किए गए अपराधों के बजाय, नया प्रावधान किसी भी केंद्रीय अधिनियम के तहत जांच किए गए अपराध का प्रावधान करता है। 
  • इसके अलावा, इस धारा में एक नया प्रावधान भी जोड़ा गया है जो पहले नहीं था। 
    • नये प्रावधान में यह प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय मामले में पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना ऐसी वापसी की अनुमति नहीं देगा। 
    • इस प्रकार, इससे पीड़ित के हित को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि अभियोजन से हटने से पहले उन्हें सुनवाई का अवसर दिया जाता है। 
  • शेष सभी प्रावधान सीआरपीसी की धारा 321 के समान हैं।   

बीएनएसएस की धारा 360 और सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजन से वापसी की तुलनात्मक तालिका?  

धारा 321 सीआरपीसी  बीएनएसएस की धारा 360 

किसी मामले का भारसाधक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक न्यायालय की सहमति से निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी भी समय किसी व्यक्ति के अभियोजन से सामान्यतः या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के संबंध में, जिनके लिए उसका विचारण किया जा रहा है, हट सकता है; और ऐसे हटने पर - 

(क) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पूर्व किया गया है, तो अभियुक्त को ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में उन्मोचित कर दिया जाएगा;  

(ख) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पश्चात किया गया है, या जब इस संहिता के अधीन कोई आरोप अपेक्षित नहीं है, तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में दोषमुक्त कर दिया जाएगा। 

 

बशर्ते कि जहां ऐसा अपराध-  

(i) किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी कानून के विरुद्ध था जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है, या 

(ii) दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अधीन दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन द्वारा जांच की गई थी, या 

(iii) जिसमें केन्द्रीय सरकार की किसी संपत्ति का दुरुपयोग, विनाश या क्षति शामिल है, या (iv) केन्द्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते समय किया गया हो, 

और मामले का प्रभारी अभियोजक केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह, जब तक कि उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसा करने की अनुमति न दी गई हो, अभियोजन से हटने के लिए न्यायालय से उसकी सहमति के लिए आवेदन नहीं करेगा और न्यायालय, सहमति देने से पहले, अभियोजक को निर्देश देगा कि वह अभियोजन से हटने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुमति को उसके समक्ष प्रस्तुत करे। 

किसी मामले का भारसाधक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक न्यायालय की सहमति से निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी भी समय किसी व्यक्ति के अभियोजन से सामान्यतः या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के संबंध में, जिनके लिए उसका विचारण किया जा रहा है, हट सकता है; और ऐसे हटने पर, - 

(क) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पूर्व किया गया है, तो अभियुक्त को ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में उन्मोचित कर दिया जाएगा; 

(ख) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पश्चात किया गया है, या जब इस संहिता के अधीन कोई आरोप अपेक्षित नहीं है, तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में दोषमुक्त कर दिया जाएगा: 

 

बशर्ते कि जहां ऐसा अपराध-  

(i) किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध था जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है; या  

(ii) किसी केन्द्रीय अधिनियम के अंतर्गत जांच की गई हो; या  

(iii) केन्द्रीय सरकार की किसी संपत्ति का दुर्विनियोजन, विनाश या क्षति शामिल थी; या (iv) केन्द्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते समय किया गया था, 

और मामले का भारसाधक अभियोजक केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह, जब तक कि उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसा करने की अनुमति न दी गई हो, अभियोजन से हटने के लिए न्यायालय से उसकी सहमति के लिए आवेदन नहीं करेगा और न्यायालय, सहमति देने से पूर्व, अभियोजक को निर्देश देगा कि वह अभियोजन से हटने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुमति को अपने समक्ष प्रस्तुत करे: 

आगे यह भी प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय मामले में पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना ऐसी वापसी की अनुमति नहीं देगा। 

 

महत्वपूर्ण मामले कानून क्या हैं? 

  • वीएस अच्युतानंदन बनाम आर. बालकृष्णन पिल्लई (1995) 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने एक मंत्री के खिलाफ अभियोजन वापसी के आवेदन का विरोध करने में विपक्षी नेता की अधिकारिता को स्वीकार कर लिया, क्योंकि कोई अन्य व्यक्ति ऐसे आवेदन का विरोध नहीं कर रहा था।
    •  एम. बालकृष्ण रेड्डी बनाम सरकार के प्रधान सचिव, गृह विभाग (1999) 
    • आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि: 
      • अपराध का शिकार न होने वाले व्यक्ति को भी अभियोजन से वापसी के आवेदन का विरोध करने का उतना ही अधिकार है जितना कि अपराध के पीड़ित को। 
      अदालत ने आगे कहा कि तीसरा व्यक्ति उस समुदाय का हिस्सा है जिसके विरुद्ध अपराध किया गया है , इसलिए उसे वापसी का विरोध करने का अधिकार है. 

     

    **निष्कर्ष:**

        भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में अभियोजन वापस लेने की प्रक्रिया में कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं किया गया है। यह प्रक्रिया अभी भी CrPC के प्रावधानों के अनुरूप ही है। हालांकि, इस प्रक्रिया का सही ढंग से पालन करना और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि यह केवल जनहित में किया जाए। इससे न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता बनी रहेगी और समाज में कानून का शासन कायम रहेगा।


    (यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और कानूनी सलाह नहीं है।)

    Current Affairs (16-04-2025)

    • हाल ही में किस राज्य ने अपना 78 वा स्थापना दिवस मनाया है_ हिमाचल प्रदेश।

    • हाल ही में किस मकाऊ कॉमेडी फेस्टिवल 2025 में सम्मानित किया गया है_ आमिर खान ।

    • हाल ही में किस मार्च 2025 के लिए आईसीसी प्लेयर ऑफ द मंथ चुना गया है_ श्रेयस अय्यर और जार्जिया वोल।

    • हाल ही में किसने आधार वेरिफिकेशन में बेहतरीन काम के लिए UIDAI से दो पुरस्कार जीते हैं _मेघालय।

    • हाल ही में किस राज्य ने छतो पर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सौर मिशन शुरू किया है _नागालैंड।

    • हाल ही में किस लैंबॉर्गिनी इंडिया का प्रमुख नियुक्त किया गया है निधि कैस्था।

    • हाल ही में नववर्ष की शुरुआत के रूप में कहां महाविषुबा संक्रांति और पना संक्रांति मनाई गई है _उड़ीसा।

    • हाल ही में 15वीं BRICS कृषि मंत्रियों की बैठक कहां होगी_ ब्राज़ील ।

    • हाल ही में निर्मला जैन का निधन हुआ वह कौन थी _लेखिका ।

    • हाल ही में कौन खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 की मेजबानी करेगा_ बिहार ।

    • हाल ही में किसने इक्वाडोर के राष्ट्रपति चुनाव में निर्णायक जीत दर्ज की है _डेनियल नोबोवा।

    • हाल ही में पश्चिम बंगाल में कालीघाट स्काईवॉक का उद्घाटन किसने किया है_ ममता बनर्जी।

    • हाल ही में क्रिसिल ने FY26 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर कितने प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है _6.5% ।

    • हाल ही में किस राज्य सरकार ने अपने जीरो पॉवर्टी मिशन का नाम डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नाम पर रखने की घोषणा की है _उत्तर प्रदेश ।

    • हाल ही में कौन यूजीसी के चेयरपर्सन बने हैं _ विनीत जोशी।

    • हाल ही में खबरों में रही मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान -2 योजना किस राज्य से संबंधित है _ राजस्थान। 

    • हाल ही में खबरों में रही पीएम किसान निधि योजना का प्राथमिक उद्देश्य क्या है _भूमि धारक किसान परिवारों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करना ।

    • पक्के टाइगर रिजर्व किस राज्य में स्थित है _अरुणाचल प्रदेश।

    • हाल ही में खबरों में रही कयासनूर वन रोग किस प्रकार की बीमारी है_ वायरल रक्त स्रावी रोग ।

    • बिहार की राजधानी पटना में जय भीम पदयात्रा का नेतृत्व किसने किया है_ डॉक्टर मनसुख मांडवीया।

    • हाल ही में समाचारों में रही नियाद नेल्लनार योजना किस राज्य से संबंधित है_ छत्तीसगढ़।

    • हाल ही में समाचारों में रही सौभाग्य योजना का प्राथमिक उद्देश्य क्या है_ सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण प्राप्त करना।

    • खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 के शुभंकर का नाम क्या है _गज सिंह।

    बाज_और_पेंगुइन

    An Inspirational Story on Using Your Strengths


        समुद्र के किनारे खड़े एक पेंगुइन ने जब ऊँचे आसमान में उड़ते बाज को देखा तो सोचने लगा-

        “बाज भी क्या पक्षी है…कितने शान से खुले आकाश में घूमता है…और एक मैं हूँ जो चाहे जितना भी पंख फड़-फड़ा लूँ ज़मीन से एक इंच ऊपर भी नहीं उठ पाता…”

     
    और ऐसा सोच कर वह कुछ उदास हो गया.

        ठीक इसी पल बाज ने भी पेंगुइन को नीचे समुद्र में तैरते हुए देखा…और सोचने लगा, “ये पेंगुइन भी क्या कमाल का पक्षी है… जो धरती की सैर भी करता है और समुद्र की गहराइयों में गोता भी लगाता है… और यहाँ मैं…बस यूँही इधर-उधर उड़ता फिरता हूँ!”

    जानते हैं इसके बाद क्या हुआ?

        कुछ नहीं… बाज आकाश की ऊँचाइयों में खो गया और पेंगुइन समद्र की गहराइयों में… दोनों अपनी मन में आये नेगेटिव थॉट्स को भूल गए और बिना समय गँवाए भगवान की दी हुई उस ताकत को… उस शक्ति को प्रयोग करने लगे जिसके साथ वो पैदा हुए थे.

        सोचिये अगर वो बाज और पेंगुइन बाज और पेंगुइन न होकर इंसान होते तो क्या होता?

        बाज यही सोच-सोच कर परेशान होता कि वो पानी के अन्दर तैर नहीं सकता और पेंगुइन दिन-रात बस यही सोचता कि काश वो आकाश में उड़ पाता… और इस चक्कर में वे दोनों ही अपनी-अपनी existing strengths या skills सही ढंग से use नहीं कर पाते.

        काश हम इंसान भी इन पक्षियों से सीख पाते कि ईश्वर ने हर किसी के अन्दर अलग-अलग गुण दिए हैं… हर किसी ने अलग-अलग क्षमताओं के साथ जन्म लिया है और हर इंसान किसी दुसरे इंसान से किसी ना किसी रूप में बेहतर है. But unfortunately, बहुत से लोगों का ध्यान अपनी competencies की बजाय दूसरों की achievements पर ही लगा रहता है, जिसे देखकर वे जलते हैं और अपनी energy गलत जगह लगाते हैं.

    आप क्या करते हैं?

    क्या आपको पता है कि आपके अन्दर सबसे अच्छी बात क्या है? क्या आपने कभी कोशिश की है उस strength को जानने और निखारने की जिसके साथ ईश्वर ने आपको भेजा है?

        अगर नहीं की है तो करिए, उस gifted skill… उस strength को समझिये…अपनी ताकत को पहचानिए और उसे अपनी मेहनत से इतना निखारिये कि औरों की नज़र में आप एक achiever बन पाएं या नहीं लेकिन अपनी और उस ऊपर वाले की नज़र में आप एक champion ज़रूर बन जाएं!

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    ☆ राज्य एवं उनके प्रमुख लोक नृत्य ☆

    ❀ मध्य प्रदेश  
    ➭  पंडवानी, गणगौर नृत्य

    ❀ असम
    ➭ बिहू

    ❀ उत्तरप्रदेश
    ➭ नौटंकी

    ❀ गुजरात
    ➭ गरबा

    ❀ कर्नाटक
    ➭  यक्षगान

    ❀ पंजाब  
    ➭  भांगड़ा, गिद्दा

    ❀ राजस्थान
    ➭   कालबेलिया, घुमर, तेरहताली, भवाई नृत्य

    ❀ महाराष्ट्र
    ➭   तमाशा, लावणी

    ❀ उत्तराखंड
    ➭  कजरी, छौलिया

    ❀ जम्मू-कश्मीर

    ➭  कूद दंडीनाच, रुऊफ

    ❀ हिमाचल प्रदेश
    ➭   छपेली,दांगी, थाली

    ❀ बिहार 
    ➭ छऊ, विदेशिया, जाट- जतिन

    ❀ केरल
    ➭ कथकली, मोहिनीअट्टम

    ❀ नागालैंड 
    ➭ लीम, छोंग

    ❀ पश्चिमबंगाल
    ➭ जात्रा,ढाली, छाऊ

    ❀ गोवा
    ➭ मंदी, ढकनी

    ❀ आन्ध्रप्रदेश
    ➭   कुचीपुडी

    ❀ झारखंड
    ➭ विदेशिया, छऊ

    ❀ उड़ीसा
    ➭ ओडिसी, धुमरा

    ❀ छत्तीसगढ़
    ➭  पंथी नृत्य

    आज का ज्ञान (16-04-2025)

    *   न्यूयार्क में भूमध्य सागरीय जलवायु नहीं पाई जाती है.

    *   दक्षिण भारतीय समाज का वेलंगै (दक्षिण हस्त) एवं इडंगै (वाम हस्त) भेद सर्वप्रथम चोल काल में दृष्टिगोचर होता है.

     

    • दिन के समय पौधे कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं।

    • पिचर प्लांट का पौधा  कीट खाता है ।

    • एडीज मच्छर की वजह से डेंगू ज्वर होता है ।

    • सैमुअल कोहेन ने न्यूट्रॉन बम का आविष्कार किया था ।

    • लोटस टेंपल का संबंध वहाई धर्म से है ।

    • महाराजा रणजीत सिंह ने अपने राज्य की राजधानी लाहौर को बनाया था।

    • खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोविंद सिंह ने की थी ।

    • सिक्खो के पांचवे गुरु  अर्जुन देव ने आदि ग्रंथ की रचना की।

    • राज्यपाल अपने कृत्य के लिए राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदाई होता है।

    • अवतल लेंस का उपयोग सूर्य के प्रकाश को सकेंद्रित करने में किया जाता है।

    • निकट दृष्टि दोष के निवारण के लिए अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है ।

    • खान अब्दुल गफ्फार खान भारत रत्न से सम्मानित होने वाले प्रथम विदेशी नागरिक थे।

    • विश्व का अपरिवर्तनीय शहर रोम को कहा जाता है।

    • प्रशांत महासागर में स्थित मेरियाना ट्रेंच दुनिया की सबसे गहरी जगह है ।

    • सूर्य की पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी की रक्षा ओजोन परत करती है ।

    • ओजोन परत समताप मंडल में स्थित है ।

    • आयात तथा निर्यात के मध्य के अंतर को भुगतान संतुलन कहते हैं ।

    • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रमुख कार्य सदस्य देशों की भुगतान संबंधी समस्या को दूर करना है।

    • प्रौढ़ शिक्षा को भौतिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड चालू किया गया है। 
    • सभी जैविक वातावरण में प्रक्रियाएं विभिन्न जलवायु तथा मौसमी दिशाएं ट्रोपास्फेयर परत में उत्पन्न होती है ।

    • खाद्य संसाधन तथा संचय द्वारा विटामिन सी अधिकांश रूप में प्रभावित होता है।

    • विटामिन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सी फंक द्वारा किया गया ।

    • बहिष्कृत बच्चों के कल्याण से CRY नामक संगठन संबंधित है।

    • प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है ।

    • डाउन अंडर पद ऑस्ट्रेलिया से संबंध है ।

    • आदिमानव ने सर्वप्रथम आग जलाना सीखा था।

    • तुगलक वंश का पतन तैमूर लंग के आक्रमण के कारण हुआ था ।

    • तैमूर लंग का आक्रमण 1398 में हुआ था।

    • इंडिया हाउस ब्रिटेन में स्थित है इसकी स्थापना श्याम जी कृष्ण वर्मा ने की थी।

    • गोदावरी नदी को दक्षिण भारत की गंगा कहा जाता है ।

    • गोदावरी प्रायद्वीप की सबसे बड़ी नदी है।

     

    1.: - मांसपेशियों में किस अम्ल के एकत्रित होने से थकावट आती है ?
    Ans : - लैक्टिक अम्ल

    2.: - अंगूर में कौन-सा अम्ल पाया जाता है?
    Ans : - टार्टरिक अम्ल

    3.: - कैंसर सम्बन्धी रोगों का अध्ययन कहलाता है
    Ans : - -ऑरगेनोलॉजी

    4.: - मानव शरीर में सबसे लम्बी कोशिका कौन-सी होती है?
    Ans : - तंत्रिका कोशिका

    5.: - दाँत मुख्य रूप से किस पदार्थ के बने होते हैं?
    Ans : - डेंटाइन के

    6.: - किस जंतु की आकृति पैर की चप्पल के समान होती है?
    Ans : - पैरामीशियम

    7.: - केंचुए की कितनी आँखें होती हैं?
    Ans : - एक भी नहीं

    8.: - गाजर किस विटामिन का समृद्ध स्रोत है?
    Ans : - विटामिन A

    9.: - निम्न में से किस पदार्थ में प्रोटीन नहीं पाया जाता है?
    Ans : - चावल

    10.: - मानव का मस्तिष्क लगभग कितने ग्राम का होता है?
    Ans : - 1350

    11.: - रक्त में पायी जाने वाली धातु है
    Ans : - -लोहा

    12.: - किण्वन का उदाहरण है?
    Ans : - -दूध का खट्टा होना,खाने की ब्रेड का बनना,गीले आटे का खट्टा होना

    13.: - निम्न में से कौन-सा आहार मानव शरीर में नये ऊतकों की वृद्धि के लिए पोषक तत्व प्रदान करता है?
    Ans : - पनीर

    14.: - निम्न में से कौन एक उड़ने वाली छिपकली है?
    Ans : - ड्रेको

    15.: - घोंसला बनाने वाला एकमात्र साँप कौन-सा है?
    Ans : - किंग कोबरा

    16. गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन कब शुरू किया था ?
    Ans ➺ 1930 में

    17. एशिया विकास बैंक का मुख्यालय कहाँ स्थित है ?
    Ans ➺ मनीला

    18. कैंसर का उपचार के लिए कौन-सा रेडियो आइसोटोप होता है ?
    Ans ➺ Cobalt - 60

    19. पृथ्वी की सतह से सबसे नजदीक का परत कौन-सा है ?
    Ans ➺ क्षोभमंडल

    20. पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ था ?
    Ans ➺ 21 April 1526

    21. पानीपत का प्रथम युद्ध किसके बीच हुआ था ?
    Ans ➺ बाबर और इब्राहिम लोदी

    22. Vitamin C का रासायनिक नाम क्या है ?
    Ans ➺ एस्कॉर्बिक एसिड

    23. धोने वाला सोडा का रासायनिक नाम क्या है ?
    Ans ➺ सोडियम कार्बोनेट

    24. रक्त लाल रंग का क्यों दिखता है ?
    Ans ➺ हीमोग्लोबिन के कारण

    25. सर्वप्रथम अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय महिला का नाम क्या था ?
    Ans ➺ कल्पना चावला

    26. हैदराबाद का चारमीनार को किसने बनवाया था ?
    Ans ➺ मुहम्मद कुली कुतुबशाह

    27. प्रथम रेलवे लाइन किसके कार्यकाल के समय बिछाई गई थी ?
    Ans ➺ लार्ड डलहौज़ी

    28. प्रथम रेलवे लाइन कब बिछाई गई थी ?
    Ans ➺ 1853

    29. तम्बाकू में कौन-सा रसायन पाया जाता है ?
    Ans ➺ निकोटिन

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