भारतीय न्याय संहिता (BNSS) न केवल अपराधों और दंडों को पुनर्गठित करती है, बल्कि प्रतिकारात्मक न्याय (Restorative Justice) और पीड़ित प्रतिकार स्कीम (Victim Compensation Scheme) पर भी विशेष ध्यान केंद्रित करती है। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है जो अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के साथ-साथ पीड़ितों के अधिकारों और जरूरतों को प्राथमिकता देता है।
**प्रतिकारात्मक न्याय: एक नया दृष्टिकोण**
प्रतिकारात्मक न्याय पारंपरिक दंडनीय दृष्टिकोण से हटकर एक ऐसा दर्शन है जो अपराध के कारण हुए नुकसान को सुधारने पर केंद्रित है। यह पीड़ित, अपराधी और समुदाय को एक साथ लाता है ताकि अपराध के परिणामों को समझा जा सके और उसे ठीक करने के लिए एक समझौता किया जा सके। BNSS में प्रतिकारात्मक न्याय को स्पष्ट रूप से परिभाषित तो नहीं किया गया है, लेकिन कुछ ऐसे प्रावधान जरूर शामिल किए गए हैं जो इसके सिद्धांतों के अनुरूप हैं।
**समझौते के माध्यम से समाधान:** BNSS कुछ मामलों में समझौते के माध्यम से समाधान की अनुमति देती है। यह समझौता तब हो सकता है जब पीड़ित और अपराधी अपराध के नतीजों को स्वीकार करते हैं और क्षतिपूर्ति या अन्य उपायों के माध्यम से नुकसान को कम करने पर सहमत होते हैं। इससे न्यायालय पर बोझ कम होता है और पीड़ित को त्वरित न्याय मिलने की संभावना बढ़ जाती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि समझौते के लिए अपराध की प्रकृति और गंभीरता पर विचार किया जाता है, और कुछ गंभीर अपराधों में यह संभव नहीं है।
**सजा में वैकल्पिक उपाय:** BNSS के तहत सजा सुनाते समय न्यायालय अपराधियों को सुधारात्मक उपाय (Corrective measures) जैसे सामुदायिक सेवा, परामर्श, और शिक्षा कार्यक्रम अपनाने के लिए कह सकते हैं। ये उपाय अपराधियों को उनके कार्यों के लिए जिम्मेदारी लेने और भविष्य में अपराधों को रोकने में मदद कर सकते हैं।
**पीड़ित की भूमिका पर बल:** BNSS में पीड़ितों को अधिक अधिकार दिए गए हैं, जिसमें सुनवाई के दौरान अपनी बात रखने का अधिकार भी शामिल है। यह प्रतिकारात्मक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है, जहां पीड़ितों को प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने और अपनी जरूरतों और चिंताओं को व्यक्त करने का अवसर मिलता है।
**पीड़ित प्रतिकार स्कीम: पीड़ितों को आर्थिक सहायता**
BNSS में पीड़ित प्रतिकार स्कीम से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं। यह योजना अपराध के पीड़ितों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का लक्ष्य रखती है, खासकर उन मामलों में जहां अपराधी को पहचाना नहीं जा सका है या उसके पास क्षतिपूर्ति देने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
**राज्य सरकार की भूमिका:** प्रत्येक राज्य सरकार को पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए एक पीड़ित प्रतिकार स्कीम स्थापित करने का आदेश दिया गया है। यह स्कीम उन पीड़ितों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है जिन्हें अपराध के कारण चोट लगी है, विकलांगता हुई है या जिनकी मृत्यु हो गई है।
**मुआवजे के लिए मानदंड:** मुआवजे की राशि अपराध की गंभीरता, पीड़ित की चोट की प्रकृति, चिकित्सा खर्चों और अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर निर्धारित की जाती है। स्कीम में मुआवजे के लिए पात्रता मानदंड और आवेदन प्रक्रिया भी निर्दिष्ट की गई है।
**मुआवजा प्राप्त करने की प्रक्रिया:** पीड़ितों को पुलिस स्टेशन या मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करना होगा, जिसमें अपराध की जानकारी और नुकसान का विवरण देना होगा। इसके बाद, पीड़ित प्रतिकार स्कीम प्राधिकरण द्वारा आवेदन की समीक्षा की जाती है और मुआवजे की राशि निर्धारित की जाती है।
**अतिरिक्त मुआवज़े का प्रावधान:** यदि अपराधी को दोषी ठहराया जाता है और वह मुआवजे का भुगतान करने में असमर्थ है, तो न्यायालय राज्य सरकार को पीड़ित प्रतिकार स्कीम से अतिरिक्त मुआवजा प्रदान करने का निर्देश दे सकता है।
**BNSS में पीड़ित प्रतिकार स्कीम के मुख्य लाभ:**
**पीड़ितों को वित्तीय सहायता:** यह योजना अपराध के पीड़ितों को चिकित्सा खर्चों, पुनर्वास लागत और आजीविका के नुकसान सहित विभिन्न प्रकार के खर्चों को कवर करने में मदद करती है।
**न्याय तक पहुंच में सुधार:** यह योजना उन पीड़ितों के लिए न्याय तक पहुंच को आसान बनाती है जिनके पास कानूनी सहायता लेने या अपराधी से मुआवजा वसूलने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
**पीड़ितों के अधिकारों को बढ़ावा देना:** यह योजना पीड़ितों के अधिकारों को मान्यता देती है और उन्हें अपराध न्याय प्रणाली में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
**सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना:** यह योजना समाज में कमजोर और वंचित लोगों की सुरक्षा को मजबूत करती है और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देती है।
**चुनौतियां और आगे की राह:**
हालांकि BNSS में प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन इन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने में कुछ चुनौतियां भी हैं:
**जागरूकता की कमी:** पीड़ितों, पुलिस अधिकारियों और न्यायपालिका के बीच इन योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।
**प्रक्रियात्मक बाधाएं:** मुआवजे के लिए आवेदन प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाना महत्वपूर्ण है।
**पर्याप्त संसाधन:** राज्य सरकारों को पीड़ित प्रतिकार स्कीम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए पर्याप्त वित्तीय और मानव संसाधन आवंटित करने की आवश्यकता है।
**प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण:** पुलिस अधिकारियों, न्यायाधीशों और अन्य हितधारकों को प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम के सिद्धांतों और प्रक्रियाओं पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
**निष्कर्ष:**
भारतीय न्याय संहिता (BNSS) में प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम के प्रावधान एक सकारात्मक बदलाव हैं जो अपराध न्याय प्रणाली को अधिक पीड़ित-केंद्रित और मानवीय बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इन योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने से न केवल पीड़ितों को न्याय मिलेगा, बल्कि अपराधियों को सुधरने और समाज में फिर से शामिल होने का अवसर भी मिलेगा। हालांकि, इन योजनाओं की सफलता के लिए सरकार, न्यायपालिका, पुलिस और नागरिक समाज सहित सभी हितधारकों के बीच सक्रिय सहयोग और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि इन प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए ताकि पीड़ितों को वास्तविक लाभ मिल सके और समाज में न्याय और समानता को बढ़ावा मिले।
(**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)
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