Wednesday, 16 April 2025

BNSS: अभियोजन वापस लेना

**अभियोजन वापस लेने का तात्पर्य:**

    अभियोजन वापस लेने का अर्थ है सरकार या अभियोजन पक्ष द्वारा किसी आपराधिक मामले को आगे न बढ़ाने का निर्णय लेना। यह निर्णय किसी मामले की शुरुआत के बाद किसी भी स्तर पर लिया जा सकता है, लेकिन निर्णय सुनाए जाने से पहले।


**BNSS और अभियोजन वापस लेना:**


    BNSS में अभियोजन वापस लेने की प्रक्रिया को दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure - CrPC) की मौजूदा प्रावधानों के अनुरूप ही रखा गया है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण पहलू ध्यान देने योग्य हैं:


*   **सार्वजनिक हित:** अभियोजन वापस लेने का मुख्य आधार हमेशा सार्वजनिक हित (Public Interest) होना चाहिए। इसका अर्थ है कि मामला वापस लेने से समाज का कल्याण होना चाहिए और न्याय का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
*   **न्यायालय की भूमिका:** CrPC की धारा 321 के तहत, अभियोजन पक्ष को किसी मामले को वापस लेने के लिए न्यायालय की अनुमति लेनी होती है। न्यायालय को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि अभियोजन वापस लेना उचित है और सार्वजनिक हित में है। BNSS भी इसी प्रक्रिया का पालन करती है।
*   **कारण बताना आवश्यक:** अभियोजन पक्ष को अभियोजन वापस लेने के कारणों को स्पष्ट रूप से बताना होता है। ये कारण कानूनी और तथ्यात्मक होने चाहिए और न्यायालय को संतुष्ट करने वाले होने चाहिए।

**अभियोजन वापस लेने के कारण:**


    अभियोजन पक्ष विभिन्न कारणों से किसी मामले को वापस लेने का निर्णय ले सकता है, जिनमें शामिल हैं:

*   **अपर्याप्त सबूत:** यदि अभियोजन पक्ष के पास आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं, तो वे मामला वापस लेने का निर्णय ले सकते हैं।
*   **साक्षी अनुपलब्ध:** यदि महत्वपूर्ण साक्षी अनुपलब्ध हैं या गवाही देने को तैयार नहीं हैं, तो मामला वापस लिया जा सकता है।
*   **जनहित:** कुछ मामलों में, सामाजिक सद्भाव बनाए रखने या अन्य जनहित कारणों से मामला वापस लेना उचित हो सकता है।
*   **राजनीतिक सुलह:** कभी-कभी, राजनीतिक सुलह को बढ़ावा देने के लिए भी अभियोजन वापस लिया जा सकता है।

**निहितार्थ:**

    अभियोजन वापस लेने की प्रक्रिया का समाज और न्याय प्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। यदि इस प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जाता है, तो यह न्याय को कमजोर कर सकता है और अपराधियों को दंड से बचने में मदद कर सकता है। इसलिए, न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियोजन वापस लेने का निर्णय केवल सार्वजनिक हित में लिया जाए और कानूनी सिद्धांतों का पालन करते हुए लिया जाए।

बीएनएसएस की धारा 360 द्वारा जोड़ी गई नई विशेषताएं क्या हैं? 

  • बीएनएसएस की धारा 360 में प्रावधान में परिवर्तन किया गया है, जो उन मामलों में लागू होगा जहां अभियोजन वापस लेने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक है। 
    • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (सीआरपीसी की धारा 321 के तहत) द्वारा जांच किए गए अपराधों के बजाय, नया प्रावधान किसी भी केंद्रीय अधिनियम के तहत जांच किए गए अपराध का प्रावधान करता है। 
  • इसके अलावा, इस धारा में एक नया प्रावधान भी जोड़ा गया है जो पहले नहीं था। 
    • नये प्रावधान में यह प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय मामले में पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना ऐसी वापसी की अनुमति नहीं देगा। 
    • इस प्रकार, इससे पीड़ित के हित को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि अभियोजन से हटने से पहले उन्हें सुनवाई का अवसर दिया जाता है। 
  • शेष सभी प्रावधान सीआरपीसी की धारा 321 के समान हैं।   

बीएनएसएस की धारा 360 और सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजन से वापसी की तुलनात्मक तालिका?  

धारा 321 सीआरपीसी  बीएनएसएस की धारा 360 

किसी मामले का भारसाधक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक न्यायालय की सहमति से निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी भी समय किसी व्यक्ति के अभियोजन से सामान्यतः या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के संबंध में, जिनके लिए उसका विचारण किया जा रहा है, हट सकता है; और ऐसे हटने पर - 

(क) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पूर्व किया गया है, तो अभियुक्त को ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में उन्मोचित कर दिया जाएगा;  

(ख) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पश्चात किया गया है, या जब इस संहिता के अधीन कोई आरोप अपेक्षित नहीं है, तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में दोषमुक्त कर दिया जाएगा। 

 

बशर्ते कि जहां ऐसा अपराध-  

(i) किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी कानून के विरुद्ध था जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है, या 

(ii) दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अधीन दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन द्वारा जांच की गई थी, या 

(iii) जिसमें केन्द्रीय सरकार की किसी संपत्ति का दुरुपयोग, विनाश या क्षति शामिल है, या (iv) केन्द्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते समय किया गया हो, 

और मामले का प्रभारी अभियोजक केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह, जब तक कि उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसा करने की अनुमति न दी गई हो, अभियोजन से हटने के लिए न्यायालय से उसकी सहमति के लिए आवेदन नहीं करेगा और न्यायालय, सहमति देने से पहले, अभियोजक को निर्देश देगा कि वह अभियोजन से हटने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुमति को उसके समक्ष प्रस्तुत करे। 

किसी मामले का भारसाधक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक न्यायालय की सहमति से निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी भी समय किसी व्यक्ति के अभियोजन से सामान्यतः या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के संबंध में, जिनके लिए उसका विचारण किया जा रहा है, हट सकता है; और ऐसे हटने पर, - 

(क) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पूर्व किया गया है, तो अभियुक्त को ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में उन्मोचित कर दिया जाएगा; 

(ख) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पश्चात किया गया है, या जब इस संहिता के अधीन कोई आरोप अपेक्षित नहीं है, तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में दोषमुक्त कर दिया जाएगा: 

 

बशर्ते कि जहां ऐसा अपराध-  

(i) किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध था जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है; या  

(ii) किसी केन्द्रीय अधिनियम के अंतर्गत जांच की गई हो; या  

(iii) केन्द्रीय सरकार की किसी संपत्ति का दुर्विनियोजन, विनाश या क्षति शामिल थी; या (iv) केन्द्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते समय किया गया था, 

और मामले का भारसाधक अभियोजक केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह, जब तक कि उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसा करने की अनुमति न दी गई हो, अभियोजन से हटने के लिए न्यायालय से उसकी सहमति के लिए आवेदन नहीं करेगा और न्यायालय, सहमति देने से पूर्व, अभियोजक को निर्देश देगा कि वह अभियोजन से हटने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुमति को अपने समक्ष प्रस्तुत करे: 

आगे यह भी प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय मामले में पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना ऐसी वापसी की अनुमति नहीं देगा। 

 

महत्वपूर्ण मामले कानून क्या हैं? 

  • वीएस अच्युतानंदन बनाम आर. बालकृष्णन पिल्लई (1995) 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने एक मंत्री के खिलाफ अभियोजन वापसी के आवेदन का विरोध करने में विपक्षी नेता की अधिकारिता को स्वीकार कर लिया, क्योंकि कोई अन्य व्यक्ति ऐसे आवेदन का विरोध नहीं कर रहा था।
    •  एम. बालकृष्ण रेड्डी बनाम सरकार के प्रधान सचिव, गृह विभाग (1999) 
    • आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि: 
      • अपराध का शिकार न होने वाले व्यक्ति को भी अभियोजन से वापसी के आवेदन का विरोध करने का उतना ही अधिकार है जितना कि अपराध के पीड़ित को। 
      अदालत ने आगे कहा कि तीसरा व्यक्ति उस समुदाय का हिस्सा है जिसके विरुद्ध अपराध किया गया है , इसलिए उसे वापसी का विरोध करने का अधिकार है. 

     

    **निष्कर्ष:**

        भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में अभियोजन वापस लेने की प्रक्रिया में कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं किया गया है। यह प्रक्रिया अभी भी CrPC के प्रावधानों के अनुरूप ही है। हालांकि, इस प्रक्रिया का सही ढंग से पालन करना और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि यह केवल जनहित में किया जाए। इससे न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता बनी रहेगी और समाज में कानून का शासन कायम रहेगा।


    (यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और कानूनी सलाह नहीं है।)

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