Monday, 19 May 2025

BNSS : जमानत: अधिकार या दया?

भारतीय न्याय व्यवस्था में जमानत (Bail) एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो किसी आरोपी व्यक्ति की स्वतंत्रता और न्याय प्रक्रिया के बीच संतुलन स्थापित करती है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 - BNSS) के अंतर्गत जमानत से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके माध्यम से किसी आरोपी व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध किसी अपराध का आरोप है, कुछ शर्तों के अधीन जेल से रिहा किया जाता है, ताकि वह सुनवाई के दौरान उपस्थित रह सके।

**जमानत के प्रकार:**

बीएनएसएस के तहत, जमानत को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

1. **जमानतीय अपराध (Bailable Offences):** वे अपराध जो पहली अनुसूची में जमानतीय के रूप में सूचीबद्ध हैं, या जिन्हें किसी अन्य कानून द्वारा जमानतीय बनाया गया है। ऐसे मामलों में, गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत पर रिहा होने का अधिकार है। पुलिस अधिकारी या न्यायालय द्वारा निर्धारित उचित प्रतिभूति (surety) प्रस्तुत करने पर उसे जमानत दी जाएगी।

2. **गैर-जमानतीय अपराध (Non-Bailable Offences):** वे अपराध जो पहली अनुसूची में गैर-जमानतीय के रूप में सूचीबद्ध हैं। इन अपराधों की गंभीरता अधिक होती है। गैर-जमानतीय अपराधों में जमानत देना न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।

**गैर-जमानतीय अपराधों में जमानत: अधिकार या दया?**

गैर-जमानतीय अपराधों में जमानत का मुद्दा अक्सर चर्चा का विषय रहता है। क्या गैर-जमानतीय अपराधों में अभियुक्त को जमानत का अधिकार है, या यह केवल न्यायालय की दया पर निर्भर करता है?

बीएनएसएस की धाराएं, जो पहले आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) में थीं, इस संबंध में न्यायालय को व्यापक विवेकाधिकार प्रदान करती हैं। यह स्पष्ट रूप से **अधिकार नहीं** है कि गैर-जमानतीय अपराधों में अभियुक्त को जमानत दी ही जाए। हालांकि, इसका अर्थ यह नहीं है कि यह पूरी तरह से न्यायालय की मनमानी है। न्यायालय अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते समय कई कारकों पर विचार करता है।

**न्यायालय द्वारा विचार किए जाने वाले प्रमुख कारक:**

* **अपराध की प्रकृति और गंभीरता:** क्या अपराध गंभीर है? क्या इसमें हिंसा शामिल है?
* **सबूतों की प्रकृति:** क्या अभियुक्त के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मजबूत मामला बनता है?
* **अभियुक्त का पिछला रिकॉर्ड:** क्या अभियुक्त पहले भी किसी अपराध में शामिल रहा है?
* **सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना:** क्या अभियुक्त सबूतों को नष्ट करने या गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास कर सकता है?
* **न्याय से भागने की संभावना:** क्या अभियुक्त सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने से बच सकता है?
* **पीड़ित और समाज पर प्रभाव:** क्या अभियुक्त की रिहाई से पीड़ित या समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा?
* **जांच की स्थिति:** क्या अभियुक्त की हिरासत जांच के लिए आवश्यक है?
* **महिलाओं और बच्चों के मामले:** कुछ परिस्थितियों में, महिलाओं और बच्चों के प्रति नरमी बरती जा सकती है।

**निर्णित केसों के साथ वर्णन:**

भारतीय न्यायपालिका ने गैर-जमानतीय अपराधों में जमानत के संबंध में कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र में मार्गदर्शक सिद्धांत स्थापित किए हैं। कुछ उल्लेखनीय मामले इस प्रकार हैं:

* **गुडीकांती नरसिम्हुलु बनाम सार्वजनिक अभियोजक, आंध्र प्रदेश (Gudikanti Narasimhulu vs Public Prosecutor, Andhra Pradesh, AIR 1978 SC 429):** इस मामले में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत के सिद्धांत पर जोर देते हुए कहा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है। न्यायालय ने कहा कि व्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्व दिया जाना चाहिए जब तक कि उसकी हिरासत आवश्यक न हो। यह निर्णय गैर-जमानतीय अपराधों में भी जमानत के पक्ष में एक मजबूत तर्क प्रस्तुत करता है, हालांकि यह अभी भी विवेकाधिकार पर आधारित है।

* **निरंजन सिंह और अन्य बनाम प्रभाकर राजाराम खैरे और अन्य (Niranjan Singh and Anr. vs Prabhakar Rajaram Kharote and Ors., AIR 1980 SC 785):** इस मामले में, न्यायालय ने जमानत देते समय अभियुक्त की उपस्थिति के महत्व पर प्रकाश डाला। न्यायालय ने कहा कि जमानत का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अभियुक्त सुनवाई के दौरान उपलब्ध रहे।

* **राज्य बनाम कैप्टन जगदीश राम (State vs Captain Jagjit Singh, AIR 1962 SC 253):** इस मामले में, न्यायालय ने गैर-जमानतीय अपराधों में जमानत देते समय विवेक के प्रयोग के सिद्धांतों को स्थापित किया। न्यायालय ने कहा कि जमानत देना एक गंभीर मामला है और इसे सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद ही दिया जाना चाहिए।

इन निर्णयों से यह स्पष्ट होता है कि गैर-जमानतीय अपराधों में जमानत का अधिकार नहीं है, लेकिन न्यायालय का विवेकाधिकार मनमाना नहीं है। यह उपरोक्त जैसे विभिन्न कारकों पर आधारित होता है। न्यायालय को सावधानीपूर्वक संतुलन बनाना होता है: एक ओर अभियुक्त की स्वतंत्रता और निर्दोष साबित होने तक निर्दोष माने जाने का सिद्धांत, और दूसरी ओर समाज की सुरक्षा और न्याय के प्रशासन का हित।

**निष्कर्ष:**

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत गैर-जमानतीय अपराधों में जमानत अभियुक्त का अधिकार नहीं है, बल्कि यह न्यायालय के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है। हालांकि, यह विवेकाधिकार पूरी तरह से मनमाना नहीं है और इसे स्थापित कानूनी सिद्धांतों और विभिन्न कारकों पर विचार करने के बाद ही प्रयोग किया जाना चाहिए। माननीय सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के निर्णयों ने इस विवेकाधिकार के प्रयोग के लिए महत्वपूर्ण दिशानिर्देश प्रदान किए हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायपूर्ण और संतुलित तरीके से कार्य किया जाए। जमानत का उद्देश्य अभियुक्त की स्वतंत्रता और न्याय के प्रशासन के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना है।

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