सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Civil Procedure Code, 1908) भारत में सिविल मुकदमों के संचालन और न्याय वितरण के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अदालतों में कार्यवाही के विभिन्न चरणों को विनियमित करता है, जिसमें अपीलों का अधिकार भी शामिल है। इसी संदर्भ में, "विधि का सारवान प्रश्न" (Substantial Question of Law) और इसके आधार पर उच्च न्यायालय में द्वितीय अपील (Second Appeal) का प्रावधान सिविल न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
यहाँ हम सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत "विधि के सारवान प्रश्न" की अवधारणा को समझने का प्रयास करेंगे और यह जानेंगे कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 100 के तहत किन आधारों पर उच्च न्यायालय में द्वितीय अपील की जा सकती है।
**विधि का सारवान प्रश्न क्या है?**
"विधि का सारवान प्रश्न" एक ऐसी कानूनी समस्या या व्याख्या है जो किसी मामले के निर्णय के लिए आवश्यक है और जिसमें कानून की सही समझ या उसके अनुप्रयोग पर गंभीर बहस हो सकती है। यह केवल तथ्यों के प्रश्न या कानून की सामान्य व्याख्या से अलग होता है।
उच्चतम न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने समय-समय पर "विधि के सारवान प्रश्न" को परिभाषित करने का प्रयास किया है। कुछ प्रमुख विशेषताएँ जो इसे परिभाषित करने में मदद करती हैं, वे इस प्रकार हैं:
* **विवादास्पद प्रकृति:** प्रश्न ऐसा होना चाहिए जिस पर विभिन्न कानूनी दृष्टिकोण संभव हों और जिस पर न्यायविदों के बीच मतभेद हो सकता है।
* **निर्णायक महत्व:** प्रश्न का उत्तर मामले के अंतिम निर्णय पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालना चाहिए। यदि प्रश्न का उत्तर कुछ भी हो, और उससे मामले के परिणाम में कोई अंतर न आए, तो वह विधि का सारवान प्रश्न नहीं है।
* **अदालतों के लिए मार्गदर्शन:** प्रश्न का उत्तर न केवल उस विशेष मामले के लिए महत्वपूर्ण होना चाहिए, बल्कि यह निचली अदालतों के लिए भविष्य में समान मामलों में मार्गदर्शन भी प्रदान कर सके।
* **स्पष्ट कानून की कमी:** यदि प्रश्न का उत्तर किसी स्पष्ट और निर्विवाद कानून या पहले से स्थापित मिसाल (Precedent) में आसानी से उपलब्ध नहीं है।
संक्षेप में, विधि का सारवान प्रश्न कानून का एक ऐसा पहलू है जो अस्पष्ट, जटिल या विवादास्पद है और जिसके निर्धारण से न्याय के सिद्धांत और कानून के अनुप्रयोग पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
**धारा 100 के अधीन उच्च न्यायालय में द्वितीय अपील:**
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 100, विशिष्ट परिस्थितियों में, उच्च न्यायालय में द्वितीय अपील दायर करने का अधिकार प्रदान करती है। यह अधिकार असीमित नहीं है और केवल कुछ विशेष आधारों पर ही उपलब्ध है। धारा 100 के अनुसार, द्वितीय अपील केवल **विधि के सारवान प्रश्न** पर ही की जा सकती है।
इसका मतलब है कि यदि निचली अदालत (सामान्यतः प्रथम अपीलीय अदालत) ने किसी मामले में केवल तथ्यों का मूल्यांकन किया है और उन तथ्यों के आधार पर कानून का सही अनुप्रयोग किया है, तो उस निर्णय के खिलाफ द्वितीय अपील संभव नहीं है। द्वितीय अपील केवल तभी संभव है जब निचली अदालत ने:
* **किसी विधि के सारवान प्रश्न पर गलती की हो:** उदाहरण के लिए, कानून की गलत व्याख्या की हो, या किसी प्रासंगिक कानून को लागू करने में विफल रही हो।
* **किसी स्थापित विधि सिद्धांत के विपरीत निर्णय दिया हो:** यदि निर्णय किसी ऐसे कानून या सिद्धांत के विरुद्ध है जो पहले से ही उच्च न्यायालयों या उच्चतम न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया है।
* **साक्ष्य के मूल्यांकन में इस हद तक गलती की हो कि वह विधि का सारवान प्रश्न बन जाए:** हालांकि तथ्य के प्रश्न पर द्वितीय अपील नहीं होती, यदि साक्ष्य का मूल्यांकन इस तरह से किया गया हो कि वह कानून के सिद्धांतों के विपरीत हो, तो वह विधि का सारवान प्रश्न बन सकता है।
* **किसी ऐसे तथ्य पर आधारित निर्णय दिया हो जिसका कोई साक्ष्य नहीं है, या किसी ऐसे तथ्य को अनदेखा किया हो जिसका निर्णायक साक्ष्य है, जिससे विधि का सारवान प्रश्न उत्पन्न हो:** यह भी साक्ष्य के मूल्यांकन से संबंधित है, लेकिन इस प्रकार की गलतियाँ विधि के अनुप्रयोग में गंभीर त्रुटि मानी जा सकती हैं।
**निष्कर्ष:**
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 100 के तहत द्वितीय अपील का अधिकार एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है जो यह सुनिश्चित करता है कि उच्च न्यायालय विधि के सारवान प्रश्नों पर विचार कर सकें और कानून की सही व्याख्या और अनुप्रयोग को बनाए रख सकें। यह न्याय प्रणाली में एकरूपता और निश्चितता लाने में मदद करता है। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि इस अधिकार का दुरुपयोग न हो और द्वितीय अपीलें केवल वास्तविक विधि के सारवान प्रश्नों पर ही की जाएं, ताकि न्यायिक प्रणाली पर अनावश्यक बोझ न पड़े। विधि के सारवान प्रश्न का निर्धारण अक्सर जटिल होता है और यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
Monday, 12 May 2025
विधि के सारवान प्रश्न और द्वितीय अपील का महत्व
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