Monday, 12 May 2025

परिसीमा विधि: विधिक निर्योग्यता समय के प्रवाह को कैसे रोक देती है?

 न्यायिक प्रक्रिया में समय एक महत्वपूर्ण कारक है। मुकदमे दायर करने और कानूनी राहत प्राप्त करने के लिए अक्सर समय-सीमाएं निर्धारित की जाती हैं। ये समय-सीमाएं, जिन्हें परिसीमा काल कहा जाता है, कानूनी निश्चितता सुनिश्चित करने और लंबे समय से चले आ रहे दावों को रोकने के लिए बनाई गई हैं। हालाँकि, कुछ विशेष परिस्थितियाँ हैं जहाँ ये समय-सीमाएं लचीली हो जाती हैं, और ऐसा ही एक महत्वपूर्ण अपवाद "विधिक निर्योग्यता" का सिद्धांत है।

**परिसीमा विधि और इसका महत्व**

परिसीमा विधि मूल रूप से किसी कानूनी कार्रवाई को शुरू करने के लिए अधिकतम समय अवधि निर्धारित करती है। यह कानून को निश्चितता प्रदान करती है, पक्षों को अनिश्चितता से बचाती है, और पुराने और बासी दावों को रोकने में मदद करती है जहाँ साक्ष्य कम या खो गए हो सकते हैं। इस विधि के बिना, लोग दशकों बाद भी किसी भी समय मुकदमे दायर कर सकते थे, जिससे कानूनी प्रणाली में अराजकता और अनुचितता आ सकती थी।

**विधिक निर्योग्यता: एक महत्वपूर्ण अपवाद**

"विधिक निर्योग्यता" (Legal Disability) से तात्पर्य उन स्थितियों से है जहाँ कोई व्यक्ति कानूनी रूप से अपने अधिकारों का प्रयोग करने या मुकदमा दायर करने में अक्षम होता है। भारतीय परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 6 विशेष रूप से ऐसे मामलों से संबंधित है। यह धारा निर्धारित करती है कि कुछ विशेष प्रकार की निर्योग्यता वाले व्यक्तियों के लिए परिसीमा काल की गणना अलग तरीके से की जाती है।

**विधिक निर्योग्यता समय के प्रवाह को कैसे रोकती है?**

धारा 6 के अनुसार, यदि परिसीमा काल के प्रारंभ होने के समय कोई व्यक्ति निम्नलिखित में से किसी भी निर्योग्यता से ग्रसित है, तो उस निर्योग्यता के समाप्त होने तक परिसीमा काल का समय नहीं गिना जाएगा:

1.  **नाबालिग होना (Minority):** जो व्यक्ति 18 वर्ष से कम आयु का है।
2.  **विक्षिप्त होना (Insanity):** जो मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण अपने हितों की रक्षा करने में अक्षम है।
3.  **जड़ बुद्धि होना (Idiocy):** जो जन्म से या किसी अन्य कारण से गंभीर रूप से मानसिक रूप से अक्षम है।

इसका सीधा अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति को मुकदमा दायर करने का अधिकार प्राप्त होता है, लेकिन वह उपरोक्त में से किसी एक निर्योग्यता से ग्रसित है, तो परिसीमा काल तब तक 'स्थगित' (suspended) रहेगा जब तक कि वह निर्योग्यता समाप्त नहीं हो जाती। एक बार जब व्यक्ति की निर्योग्यता समाप्त हो जाती है (उदाहरण के लिए, नाबालिग बालिग हो जाता है या विक्षिप्त व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है), तो परिसीमा काल की गणना उस समय से शुरू होगी।

**उदाहरण:**

मान लीजिए किसी व्यक्ति के पक्ष में कोई कानूनी अधिकार 15 वर्ष की आयु में उत्पन्न होता है और उस अधिकार के लिए मुकदमा दायर करने की परिसीमा काल 3 वर्ष है। सामान्य परिस्थितियों में, 3 वर्ष की अवधि 18 वर्ष की आयु तक समाप्त हो जाएगी। हालांकि, क्योंकि वह व्यक्ति 15 वर्ष की आयु में नाबालिग था, परिसीमा काल की गणना तब तक शुरू नहीं होगी जब तक वह 18 वर्ष का नहीं हो जाता। 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद, उसके पास मुकदमा दायर करने के लिए 3 वर्ष का पूरा समय होगा, जो 21 वर्ष की आयु तक समाप्त होगा।

**विधिक निर्योग्यता का औचित्य**

विधिक निर्योग्यता का सिद्धांत न्याय और निष्पक्षता पर आधारित है। यह मान्यता है कि उपरोक्त निर्योग्यता वाले व्यक्ति अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूक नहीं हो सकते हैं या उन अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। यदि परिसीमा विधि को ऐसे मामलों में बिना किसी अपवाद के सख्ती से लागू किया जाए, तो वे अपने कानूनी अधिकारों से वंचित हो सकते हैं, जो न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध होगा। यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि इन कमजोर व्यक्तियों को अपने अधिकारों की रक्षा करने का उचित अवसर मिले।

**महत्वपूर्ण बिंदु:**

*   यदि किसी व्यक्ति को एक ही समय में कई निर्योग्यताओं से ग्रसित है, तो परिसीमा काल तब तक शुरू नहीं होगा जब तक कि अंतिम निर्योग्यता समाप्त नहीं हो जाती।
*   यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु निर्योग्यता की अवधि के दौरान हो जाती है, तो उसके कानूनी प्रतिनिधियों को निर्योग्यता समाप्त होने के बाद परिसीमा काल के भीतर मुकदमा दायर करने का अधिकार होगा।

**निष्कर्ष:**

परिसीमा विधि न्यायिक प्रणाली में संतुलन बनाए रखने के लिए एक आवश्यक उपकरण है, लेकिन विधिक निर्योग्यता का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण और न्यायसंगत अपवाद प्रदान करता है। यह स्वीकार करता है कि कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपने अधिकारों का प्रयोग करने में अक्षम होते हैं और उन्हें कानूनी राहत प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा की आवश्यकता होती है। "विधिक निर्योग्यता समय के प्रवाह को रोक देती है" का सिद्धांत इस आवश्यकता को पूरा करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि न्याय का मार्ग उन लोगों के लिए भी खुला रहे जो अन्यथा समय की कठोरता के कारण इससे वंचित हो सकते हैं। यह कानूनी सिद्धांतों का एक परिष्कृत उदाहरण है जो निश्चितता को व्यक्तिगत परिस्थितियों की संवेदनशीलता के साथ संतुलित करता है।

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