सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) न्याय प्रशासन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक नागरिक को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण प्रक्रिया का अधिकार मिले। इस संहिता के तहत विभिन्न प्रावधान हैं जो त्रुटियों को सुधारने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए ऊपरी अदालतों को शक्तियां प्रदान करते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण अवधारणा "पुनरीक्षण" (Revision) है।
**पुनरीक्षण क्या है?**
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 115 के तहत, उच्च न्यायालय को अधीनस्थ अदालतों द्वारा पारित किसी भी आदेश या डिक्री के संबंध में **पुनरीक्षण** की शक्ति प्राप्त है। यह शक्ति उच्च न्यायालय को अधीनस्थ अदालतों के न्यायिक निर्णयों की **वैधता और प्रक्रियात्मक शुद्धता** की जांच करने की अनुमति देती है, लेकिन यह अपीलीय शक्ति से अलग है।
पुनरीक्षण का मुख्य उद्देश्य अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा अधिकार क्षेत्र के दुरुपयोग, अधिकार क्षेत्र से परे जाने, या अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने में विफल रहने के मामलों में हस्तक्षेप करना है, जिसके परिणामस्वरूप अन्याय हो सकता है। यह शक्ति तब प्रयोग की जाती है जब **कोई अपील उपलब्ध नहीं होती** या जब कोई आदेश या डिक्री **अपीलीय नहीं** होती है।
संक्षेप में, पुनरीक्षण का अर्थ है:
* अधीनस्थ न्यायालय के रिकॉर्ड की जांच करना।
* यह देखना कि क्या अधीनस्थ न्यायालय ने अपने **अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction)** का सही ढंग से प्रयोग किया है।
* यह जांचना कि क्या अधीनस्थ न्यायालय ने अधिकार क्षेत्र का **अतिक्रमण (Excess of Jurisdiction)** किया है।
* यह देखना कि क्या अधीनस्थ न्यायालय ने अपने **अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से इनकार (Refusal to Exercise Jurisdiction)** किया है।
* यदि इनमें से कोई भी स्थिति मौजूद है और इससे अन्याय हुआ है, तो उच्च न्यायालय उस आदेश या डिक्री को **रद्द, परिवर्तित या अन्य उपयुक्त आदेश पारित** कर सकता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पुनरीक्षण की शक्ति **तथ्यों की पुनः जांच (Re-examination of facts)** करने की शक्ति नहीं है। उच्च न्यायालय केवल कानून के प्रश्न या अधिकार क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर ही हस्तक्षेप कर सकता है।
सिविल प्रक्रिया संहिता में पुनरीक्षण के अलावा, "पुनर्विलोकन" (Review) और "निर्देश" (Reference) की अवधारणाएं भी हैं, जो त्रुटियों को सुधारने और न्याय सुनिश्चित करने के विभिन्न तरीके प्रदान करती हैं। इन तीनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं:
**पुनर्विलोकन (Review):**
पुनर्विलोकन वह प्रक्रिया है जिसके तहत **वही न्यायालय जिसने कोई डिक्री या आदेश पारित किया है**, उस डिक्री या आदेश पर **पुनः विचार (Reconsider)** कर सकता है। यह आमतौर पर निम्नलिखित कारणों से किया जाता है:
* **रिकॉर्ड पर कोई स्पष्ट त्रुटि या गलती** जो निर्णय को प्रभावित करती है।
* **कोई नया और महत्वपूर्ण साक्ष्य** जो उचित परिश्रम के बावजूद पहले प्रस्तुत नहीं किया जा सका था।
* **कोई अन्य पर्याप्त कारण (Any other sufficient reason)**।
पुनर्विलोकन का उद्देश्य किसी निर्णय को पूरी तरह से उलट देना नहीं है, बल्कि रिकॉर्ड पर मौजूद स्पष्ट त्रुटियों को सुधारना है।
**निर्देश (Reference):**
निर्देश वह प्रक्रिया है जिसके तहत एक **अधीनस्थ न्यायालय** किसी मामले में **विधि के किसी महत्वपूर्ण प्रश्न** के संबंध में **उच्च न्यायालय की राय** प्राप्त करने के लिए उस प्रश्न को उच्च न्यायालय को **निर्देशित (Refer)** करता है। यह तब किया जाता है जब अधीनस्थ न्यायालय को किसी विशेष विधि प्रश्न के संबंध में संदेह होता है और वह उस पर उच्च न्यायालय का मार्गदर्शन चाहता है। निर्देश का उद्देश्य न्यायपालिका में विधि की एकरूपता सुनिश्चित करना है।
**निष्कर्ष:**
पुनरीक्षण, पुनर्विलोकन और निर्देश तीनों ही सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं हैं जो न्याय प्रणाली को त्रुटिहीन बनाने और न्याय सुनिश्चित करने में मदद करती हैं। जबकि पुनरीक्षण उच्च न्यायालय की पर्यवेक्षी शक्ति है जो अधीनस्थ अदालतों के अधिकार क्षेत्र से संबंधित अनियमितताओं को ठीक करती है, पुनर्विलोकन उसी न्यायालय द्वारा रिकॉर्ड पर स्पष्ट त्रुटियों को सुधारने की प्रक्रिया है, और निर्देश अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा विधि के अनिश्चित प्रश्नों पर उच्च न्यायालय की राय प्राप्त करने की प्रक्रिया है। इन तीनों अवधारणाओं के बीच के अंतर को समझना सिविल प्रक्रिया संहिता के उचित अनुप्रयोग और न्याय प्रशासन के लिए आवश्यक है।
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