Monday, 12 May 2025

सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पुनर्विलोकन: एक विस्तृत विवेचन

न्याय व्यवस्था में यह एक मूलभूत सिद्धांत है कि प्रत्येक व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए और किसी भी त्रुटि या गलती को सुधारा जा सके। इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए भारतीय कानून में, विशेष रूप से सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) में, पुनर्विलोकन (Review) का प्रावधान किया गया है। यह एक महत्वपूर्ण कानूनी उपाय है जो किसी पक्षकार को न्यायालय द्वारा पारित निर्णय या आदेश की समीक्षा का अनुरोध करने की अनुमति देता है।

**पुनर्विलोकन से आपका क्या तात्पर्य है?**

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 114 और आदेश XLVII (47) पुनर्विलोकन से संबंधित हैं। संक्षेप में, पुनर्विलोकन का अर्थ है कि न्यायालय द्वारा पहले से पारित किसी निर्णय या आदेश पर उसी न्यायालय द्वारा पुनर्विचार किया जाना। यह किसी भी अपीलीय न्यायालय द्वारा नहीं, बल्कि उसी न्यायालय द्वारा किया जाता है जिसने मूल निर्णय या आदेश पारित किया था। पुनर्विलोकन का उद्देश्य किसी ऐसे त्रुटि को सुधारना है जो निर्णय या आदेश में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है और जिसने न्याय के पहिये को प्रभावित किया हो।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि पुनर्विलोकन अपील से अलग है। अपील में, उच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालय के निर्णय की समीक्षा की जाती है और कानून या तथ्य के किसी भी प्रश्न पर पुनर्विचार किया जा सकता है। जबकि, पुनर्विलोकन में, उसी न्यायालय द्वारा एक सीमित दायरे में त्रुटियों को सुधारा जाता है।

**कब पुनर्विलोकन याचिका दाखिल की जाती है?**

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XLVII नियम 1 के तहत, पुनर्विलोकन याचिका निम्नलिखित आधारों पर दाखिल की जा सकती है:

1.  **किसी ऐसे नए और महत्वपूर्ण मामले या साक्ष्य की खोज जो उचित परिश्रम के बावजूद पहले उपलब्ध नहीं था:** यदि कोई पक्षकार यह साबित कर सके कि निर्णय के समय कोई ऐसा महत्वपूर्ण तथ्य या साक्ष्य मौजूद था जिसे वह पर्याप्त सावधानी बरतने के बावजूद प्रस्तुत नहीं कर सका था, तो वह पुनर्विलोकन याचिका दाखिल कर सकता है।
2.  **अभिलेख के मुख पर स्पष्ट त्रुटि या गलती:** यदि निर्णय या आदेश में कोई ऐसी त्रुटि या गलती है जो रिकॉर्ड से स्पष्ट रूप से दिखाई देती है और जिसके लिए किसी विस्तृत जांच या बहस की आवश्यकता नहीं है, तो उस आधार पर पुनर्विलोकन मांगा जा सकता है। यह त्रुटि कानून या तथ्य से संबंधित हो सकती है, लेकिन यह इतनी स्पष्ट होनी चाहिए कि उसे सुधारने के लिए जटिल तर्क की आवश्यकता न हो।
3.  **कोई अन्य पर्याप्त कारण:** यह आधार काफी व्यापक है और इसमें वे सभी कारण शामिल हो सकते हैं जहां न्याय के हित में पुनर्विलोकन आवश्यक हो। हालांकि, इस आधार का प्रयोग सावधानी से किया जाना चाहिए और इसके तहत याचिका दाखिल करने के लिए ठोस और पर्याप्त कारण होने चाहिए।

पुनर्विलोकन याचिका आमतौर पर निर्णय या आदेश पारित होने के 30 दिनों के भीतर दाखिल की जानी चाहिए, जब तक कि विलंब के लिए पर्याप्त कारण न हो।

**क्या द्वितीय पुनर्विलोकन की कोई प्रक्रिया है?**

नहीं, सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत, सामान्यतः **द्वितीय पुनर्विलोकन की कोई प्रक्रिया नहीं है।** आदेश XLVII नियम 9 स्पष्ट रूप से कहता है कि किसी पुनर्विलोकन के आदेश के विरुद्ध कोई पुनर्विलोकन याचिका दाखिल नहीं की जाएगी।

इसका अर्थ है कि यदि किसी पुनर्विलोकन याचिका पर न्यायालय द्वारा निर्णय लिया गया है (चाहे वह स्वीकार की गई हो या खारिज), तो उस निर्णय के विरुद्ध एक और पुनर्विलोकन याचिका दाखिल नहीं की जा सकती। यह सिद्धांत "रेस ज्यूडिकाटा" (Res Judicata) के अनुरूप है, जिसका अर्थ है कि एक बार जब किसी मामले का अंतिम रूप से निपटारा हो जाता है, तो उसे फिर से उसी न्यायालय में नहीं उठाया जा सकता।

**किन दशाओ में द्वितीय पुनर्विलोकन संभव हो सकता है?**

यद्यपि सामान्यतः द्वितीय पुनर्विलोकन की कोई प्रक्रिया नहीं है, लेकिन कुछ अपवादात्मक परिस्थितियाँ हो सकती हैं जहाँ उच्च न्यायालय (विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय) अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। हालांकि, ये स्थितियाँ अत्यंत दुर्लभ होती हैं और वे सामान्य कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं हैं। ऐसे मामलों में, यह सामान्यतः निम्नलिखित परिस्थितियों में हो सकता है:

*   **असाधारण परिस्थितियाँ या धोखाधड़ी:** यदि यह साबित हो जाए कि पुनर्विलोकन आदेश धोखाधड़ी या किसी अन्य असाधारण परिस्थिति के कारण प्राप्त किया गया था, तो उच्च न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।
*   **न्याय का गंभीर उल्लंघन:** यदि पुनर्विलोकन आदेश से न्याय का गंभीर उल्लंघन हुआ हो और कोई अन्य कानूनी उपाय उपलब्ध न हो, तो उच्च न्यायालय अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये अपवाद हैं और इन्हें सामान्य नियम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। सामान्य सिद्धांत यह है कि पुनर्विलोकन के आदेश के विरुद्ध कोई द्वितीय पुनर्विलोकन याचिका स्वीकार्य नहीं है।

**निष्कर्ष:**

सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पुनर्विलोकन एक महत्वपूर्ण कानूनी उपाय है जो निर्णयों और आदेशों में स्पष्ट त्रुटियों को सुधारने का अवसर प्रदान करता है। यह न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है। हालांकि, इस प्रक्रिया का एक सीमित दायरा है और यह अपील का विकल्प नहीं है। साथ ही, यह भी स्पष्ट है कि सामान्य परिस्थितियों में, किसी पुनर्विलोकन आदेश के विरुद्ध द्वितीय पुनर्विलोकन की कोई प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है, सिवाय अत्यंत दुर्लभ और असाधारण मामलों के। न्याय व्यवस्था में विश्वास बनाए रखने के लिए इन सिद्धांतों का पालन महत्वपूर्ण है।

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