कानूनी मामलों में समय-सीमा का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, और भारतीय कानून में इसे परिसीमा अधिनियम, १९६५ द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह अधिनियम किसी वाद या कार्यवाही को शुरू करने के लिए एक निश्चित समय-सीमा निर्धारित करता है। इस समय-सीमा के भीतर कार्रवाई न करने पर व्यक्ति अपना अधिकार खो सकता है। हालांकि, कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जहां परिसीमा की अवधि को प्रभावित किया जा सकता है, और ऐसी ही एक महत्वपूर्ण अवधारणा है "परिसीमा पर लिखित अभिस्वीकृति"।
**परिसीमा पर लिखित अभिस्वीकृति का प्रभाव**
परिसीमा अधिनियम, १९६५ की धारा १८ "परिसीमा पर लिखित अभिस्वीकृति का प्रभाव" से संबंधित है। सरल शब्दों में, जब कोई व्यक्ति किसी ऋण, दायित्व या अधिकार को लिखित रूप में स्वीकार करता है, तो यह उस ऋण या दायित्व के संबंध में परिसीमा अवधि की गणना को फिर से शुरू कर देता है। इसका मतलब है कि अभिस्वीकृति की तारीख से एक नई परिसीमा अवधि शुरू होती है, और लेनदार या अधिकार धारक के पास अपने दावे को लागू करने के लिए एक और अवसर होता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी ऋण की वसूली के लिए परिसीमा अवधि तीन वर्ष है, और ऋणी तीन साल पूरे होने से पहले लिखित रूप में ऋण को स्वीकार करता है, तो उस अभिस्वीकृति की तारीख से तीन साल की एक नई परिसीमा अवधि शुरू हो जाएगी। यह ऋणी के पक्ष में एक महत्वपूर्ण राहत प्रदान करता है और लेनदार को अपने अधिकार को लागू करने का अतिरिक्त समय देता है।
**वैध अभिस्वीकृति की शर्तें**
धारा १८ के तहत एक लिखित अभिस्वीकृति को वैध मानने के लिए कुछ विशिष्ट शर्तें पूरी होनी चाहिए। इन शर्तों को समझना महत्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अभिस्वीकृति कानूनी रूप से प्रभावी है:
1. **लिखित रूप में:** अभिस्वीकृति अनिवार्य रूप से लिखित रूप में होनी चाहिए। मौखिक अभिस्वीकृति का परिसीमा अवधि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। यह लिखित रूप में किसी पत्र, ईमेल, समझौते, या किसी अन्य दस्तावेज में हो सकती है।
2. **दावा किए गए अधिकार या दायित्व से संबंधित:** अभिस्वीकृति सीधे उस अधिकार, ऋण या दायित्व से संबंधित होनी चाहिए जिसके लिए परिसीमा अवधि लागू हो रही है। किसी अन्य मामले की अभिस्वीकृति इस विशेष अधिकार या दायित्व की परिसीमा पर कोई प्रभाव नहीं डालेगी।
3. **उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित या उस व्यक्ति की ओर से हस्ताक्षरित:** अभिस्वीकृति या तो उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होनी चाहिए जिसके विरुद्ध अधिकार या दावा किया गया है, या उस व्यक्ति के विधिवत अधिकृत एजेंट द्वारा हस्ताक्षरित होनी चाहिए।
4. **परिसीमा अवधि समाप्त होने से पहले दी गई हो:** यह सबसे महत्वपूर्ण शर्त है। अभिस्वीकृति परिसीमा अवधि समाप्त होने से पहले दी जानी चाहिए। एक बार जब परिसीमा अवधि समाप्त हो जाती है, तो बाद में दी गई अभिस्वीकृति का परिसीमा अवधि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अधिकार समाप्त हो चुका होगा।
5. **स्पष्ट अभिस्वीकृति की आवश्यकता नहीं:** यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अभिस्वीकृति को स्पष्ट रूप से "अभिस्वीकृति" शब्द का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है। यदि लेखन से यह निहित होता है कि व्यक्ति किसी ऋण या दायित्व को स्वीकार कर रहा है, तो उसे एक वैध अभिस्वीकृति माना जा सकता है। उदाहरण के लिए, ऋण की वसूली के संबंध में किए गए भुगतान की रसीद या शेष राशि के संबंध में किया गया पत्राचार भी अभिस्वीकृति के रूप में माना जा सकता है।
6. **भुगतान या वितरण की आवश्यकता नहीं:** अभिस्वीकृति के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वास्तव में कोई भुगतान या वितरण किया गया हो। केवल ऋण या दायित्व का लिखित रूप में स्वीकार करना ही पर्याप्त है।
**निष्कर्ष**
परिसीमा अधिनियम, १९६५ के तहत परिसीमा पर लिखित अभिस्वीकृति एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो कुछ परिस्थितियों में परिसीमा अवधि को प्रभावित कर सकता है। यह लेनदारों और अधिकार धारकों को अपने अधिकारों को लागू करने का अतिरिक्त समय प्रदान करता है, बशर्ते कि अभिस्वीकृति वैध हो और उपर्युक्त शर्तों को पूरा करती हो। कानूनी मामलों में शामिल किसी भी व्यक्ति को परिसीमा अधिनियम के प्रावधानों और लिखित अभिस्वीकृति के प्रभाव के बारे में जागरूक रहना चाहिए। किसी भी विशिष्ट मामले में कानूनी सलाह के लिए हमेशा एक योग्य पेशेवर से संपर्क करना उचित होता है।
Monday, 12 May 2025
परिसीमा अधिनियम के अंतर्गत "परिसीमा पर लिखित अभिस्वीकृति" का प्रभाव और वैधता की शर्तें
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