भारत में वन्यजीवों और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 एक महत्वपूर्ण कानूनी ढाँचा है। यह अधिनियम देश की समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित करने, लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करने और वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा व्यापार को रोकने के उद्देश्य से बनाया गया था। आइए इस अधिनियम की कुछ मुख्य विशेषताओं पर नज़र डालें:
**१. वन्यजीवों का वर्गीकरण और सुरक्षा:**
अधिनियम वन्यजीवों को अनुसूचियों में वर्गीकृत करता है। इन अनुसूचियों में शामिल जीवों की सुरक्षा का स्तर अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए, अनुसूची I और भाग II की अनुसूची II में सूचीबद्ध जीव पूर्ण सुरक्षा के दायरे में आते हैं और उनके शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध है। यह वर्गीकरण उन प्रजातियों को प्राथमिकता देने में मदद करता है जिन्हें तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है।
**२. संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना:**
अधिनियम राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों और संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना और प्रबंधन का प्रावधान करता है। ये क्षेत्र वन्यजीवों के लिए सुरक्षित आवास प्रदान करते हैं और मानव गतिविधियों को नियंत्रित करके उनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा करते हैं। राष्ट्रीय उद्यानों में मानव गतिविधियों पर अधिक प्रतिबंध होते हैं, जबकि अभयारण्यों में कुछ सीमित गतिविधियाँ, जैसे कि पर्यटन, की अनुमति दी जा सकती है।
**३. शिकार पर प्रतिबंध:**
अधिनियम वन्यजीवों के शिकार को विनियमित और प्रतिबंधित करता है। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों और अनुमति के अलावा, वन्यजीवों का शिकार एक गंभीर अपराध है और इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान है। यह अधिनियम अवैध शिकार पर प्रभावी रोक लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
**४. वन्यजीव उत्पादों का नियंत्रण:**
यह अधिनियम वन्यजीवों से प्राप्त उत्पादों, जैसे कि खाल, सींग, हाथी दांत आदि के व्यापार और कब्जे को भी नियंत्रित करता है। अवैध व्यापार को रोकने और वन्यजीवों के शोषण को कम करने के लिए इन उत्पादों के स्वामित्व और व्यापार के लिए विशेष अनुमतियों की आवश्यकता होती है।
**५. दंडात्मक प्रावधान:**
अधिनियम में वन्यजीवों और उनके आवासों को नुकसान पहुँचाने वाले या अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के लिए कठोर दंड का प्रावधान है। इन दंडों में भारी जुर्माना और कारावास शामिल हैं, जो उल्लंघन की गंभीरता पर निर्भर करते हैं। यह अपराधियों को हतोत्साहित करने में मदद करता है।
**६. केंद्र और राज्य सरकारों की भूमिका:**
यह अधिनियम वन्यजीव संरक्षण में केंद्र और राज्य सरकारों दोनों की भूमिका और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है। इसमें मुख्य वन्यजीव वार्डन और अन्य प्राधिकृत अधिकारियों की नियुक्ति का भी प्रावधान है, जो अधिनियम को लागू करने और वन्यजीव संरक्षण गतिविधियों का प्रबंधन करने के लिए जिम्मेदार हैं।
**निष्कर्ष:**
वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 भारत में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए एक मील का पत्थर है। इसने देश की समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालाँकि, वन्यजीव संरक्षण एक निरंतर चुनौती है और इस अधिनियम का प्रभावी कार्यान्वयन तथा समय-समय पर इसमें संशोधन करना हमारी भावी पीढ़ियों के लिए वन्यजीवों को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताओं को समझना प्रत्येक नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है ताकि हम सभी वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों में अपना योगदान दे सकें।
Saturday, 10 May 2025
वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम १९७२ की मुख्य विशेषताएं: एक सिंहावलोकन
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