वन्य जीवों का संरक्षण हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, १९७२ इस संरक्षण का आधार है। यह अधिनियम वन्य जीवों के शिकार, उनके आवासों की रक्षा और वन्य जीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना को नियंत्रित करता है।
यह अधिनियम स्पष्ट रूप से वन्य जीवों के शिकार को प्रतिबंधित करता है। हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में, अधिनियम मुख्य वन्य जीव अधीक्षक (Chief Wildlife Warden) को वन्य जीवों के शिकार की अनुमति देने का अधिकार प्रदान करता है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि यह अनुमति एक सामान्य छूट नहीं है, बल्कि केवल विशिष्ट और दुर्लभ मामलों में ही दी जा सकती है।
अधिनियम की धारा ११ में उन परिस्थितियों का विस्तार से उल्लेख किया गया है जिनके तहत मुख्य वन्य जीव अधीक्षक शिकार की अनुमति दे सकते हैं। इन परिस्थितियों में शामिल हैं:
* **मानव जीवन के लिए खतरा:** यदि कोई वन्य जीव मानव जीवन के लिए वास्तविक और आसन्न खतरा पैदा कर रहा है, तो मुख्य वन्य जीव अधीक्षक उस वन्य जीव को मारने या फंसाने की अनुमति दे सकते हैं। यह निर्णय वैज्ञानिक और व्यावहारिक मूल्यांकन के बाद लिया जाता है।
* **संपत्ति को व्यापक नुकसान:** यदि कोई वन्य जीव कृषि फसलों, पशुधन या अन्य संपत्ति को गंभीर और व्यापक नुकसान पहुंचा रहा है, और अन्य निवारक उपाय विफल हो गए हैं, तो भी अनुमति दी जा सकती है।
* **बीमारी या चोट:** यदि कोई वन्य जीव लाइलाज बीमारी या गंभीर चोट से पीड़ित है जिसके कारण उसे पीड़ा हो रही है और जिसका इलाज संभव नहीं है, तो मानवीय आधार पर उसे मारने की अनुमति दी जा सकती है।
* **वैज्ञानिक अनुसंधान या प्रबंधन:** दुर्लभ मामलों में, वैज्ञानिक अनुसंधान या वन्य जीव प्रबंधन के विशिष्ट उद्देश्यों के लिए भी सीमित संख्या में वन्य जीवों को पकड़ने या स्थानांतरित करने की अनुमति दी जा सकती है।
यह ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि मुख्य वन्य जीव अधीक्षक द्वारा दी गई कोई भी अनुमति सख्ती से विनियमित होती है। यह अनुमति हमेशा लिखित में होनी चाहिए और इसमें शिकार किए जाने वाले वन्य जीव की प्रजाति, संख्या, स्थान और समय-सीमा का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। इसके अलावा, शिकार के तरीकों और शिकार के बाद के निपटान के संबंध में भी दिशानिर्देश दिए जाते हैं।
मुख्य वन्य जीव अधीक्षक से अनुमति प्राप्त करने की प्रक्रिया जटिल और विस्तृत होती है। इसमें संबंधित अधिकारियों द्वारा गहन जांच और मूल्यांकन शामिल होता है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि अनुमति देने से पहले सभी संभावित वैकल्पिक उपाय अपनाए गए हैं और शिकार अंतिम उपाय है।
सारांश में, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, १९७२ का प्राथमिक उद्देश्य वन्य जीवों का संरक्षण है और यह शिकार को सख्ती से प्रतिबंधित करता है। हालांकि, अधिनियम मुख्य वन्य जीव अधीक्षक को कुछ विशिष्ट और असाधारण परिस्थितियों में, जैसे कि मानव जीवन की रक्षा, संपत्ति को गंभीर नुकसान, बीमारी या चोट, या वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए सीमित अनुमति देने का अधिकार देता है। यह अनुमति केवल अंतिम उपाय के रूप में दी जाती है और सख्त नियमों और शर्तों के अधीन होती है। यह दर्शाता है कि अधिनियम संतुलन बनाने का प्रयास करता है - वन्य जीवों के संरक्षण और मानव सुरक्षा और कल्याण के बीच।
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