Thursday, 17 April 2025

पूर्व में बरी एवं पूर्व में दोषी का सिद्धांत और निष्पक्ष विचारण

**पूर्व में बरी और पूर्व में दोषी: सिद्धांत**

    ये दोनों सिद्धांत **दोहरे खतरे (Double Jeopardy)** के सिद्धांत से जुड़े हैं। दोहरे खतरे का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार अभियोजित और दंडित नहीं किया जा सकता।

**पूर्व में बरी (Former Acquittal):** यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए पहले ही बरी कर दिया गया है (अर्थात न्यायालय ने उसे निर्दोष पाया है), तो उसे उसी अपराध के लिए दोबारा अभियोजित नहीं किया जा सकता। इसका मतलब यह है कि राज्य (State) को एक ही व्यक्ति को बार-बार एक ही अपराध के लिए अदालती कार्यवाही में नहीं घसीटना चाहिए, क्योंकि इससे व्यक्ति को अनावश्यक मानसिक और वित्तीय पीड़ा होगी।

**पूर्व में दोषी (Former Conviction):** यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है (अर्थात न्यायालय ने उसे दोषी पाया है), तो उसे उसी अपराध के लिए दोबारा अभियोजित नहीं किया जा सकता। यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति को उसके अपराध के लिए एक बार दंडित होने के बाद, उसे उसी अपराध के लिए बार-बार दंडित न किया जाए।


**निष्पक्ष विचारण को सुनिश्चित करने में भूमिका**


    ये दोनों सिद्धांत एक निष्पक्ष विचारण सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:

**मनमानी से सुरक्षा:** ये सिद्धांत राज्य को मनमाने ढंग से किसी व्यक्ति को बार-बार अभियोजित करने से रोकते हैं। यदि ऐसा न होता, तो राज्य किसी व्यक्ति को तब तक अभियोजित करता रहता जब तक कि उसे दोषी न ठहरा लिया जाए, जो कि न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।

**संसाधनों का कुशल उपयोग:** ये सिद्धांत अदालत के समय और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करते हैं। बार-बार एक ही मामले की सुनवाई करने से बचने पर, अदालतें अन्य लंबित मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं।

**मनोवैज्ञानिक सुरक्षा:** ये सिद्धांत व्यक्ति को इस भय से मुक्ति दिलाते हैं कि उसे उसी अपराध के लिए बार-बार अभियोजित किया जा सकता है। यह व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य और शांति को बनाए रखने में मदद करता है।

**न्याय पर विश्वास:**
जब लोगों को यह विश्वास होता है कि न्याय प्रणाली उन्हें दोहरे खतरे से बचाती है, तो न्याय प्रणाली में उनका विश्वास बढ़ता है।

**निष्कर्ष**

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में "पूर्व में बरी" और "पूर्व में दोषी" के सिद्धांत न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर आधारित हैं। ये सिद्धांत दोहरे खतरे से सुरक्षा प्रदान करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को एक निष्पक्ष विचारण का अधिकार है।

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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