Tuesday, 29 April 2025

खेजड़ली हत्याकांड

 

खेजड़ली हत्याकांड

खेजड़ली हत्याकांड भारत के पर्यावरण संरक्षण इतिहास में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक घटना है। यह 18वीं सदी में घटित हुआ था और इसने “चिपको आंदोलन” जैसे भविष्य के पर्यावरण आंदोलनों को प्रेरित किया। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:

घटना का नाम:

खेजड़ली हत्याकांड (Khejarli Massacre)

घटनास्थल:
खेजड़ली गाँव, जोधपुर ज़िला, राजस्थान

घटनाकाल:
10 सितंबर 1730

खेजड़ली हत्याकांड भारत के पर्यावरण संरक्षण इतिहास में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक घटना है। यह 18वीं सदी में घटित हुआ था और इसने “चिपको आंदोलन” जैसे भविष्य के पर्यावरण आंदोलनों को प्रेरित किया।

पृष्ठभूमि:

राजस्थान के बिश्नोई समुदाय द्वारा पेड़ों और प्रकृति की रक्षा को अत्यंत महत्त्व दिया जाता है।

खेजड़ी का पेड़ (Prosopis cineraria) इस क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण होता है — यह न केवल पर्यावरण को संतुलित करता है बल्कि बिश्नोई समाज की आस्था का प्रतीक भी है।

घटना का विवरण:

जोधपुर के तत्कालीन महाराजा ने अपने किले के निर्माण या चूने के भट्टों के ईंधन हेतु खेजड़ी के पेड़ों को काटने का आदेश दिया।

राजा के मंत्री गिरधारी भंडारी के नेतृत्व में एक दल खेजड़ली गाँव पहुंचा, जहाँ उन्होंने पेड़ काटने शुरू कर दिए।

अम्मृता देवी बिश्नोई नाम की एक महिला ने इसका विरोध किया और पेड़ों को बचाने के लिए खुद को एक पेड़ से लिपटा लिया।
उन्होंने ऐलान किया:

“सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण”
(यदि पेड़ बचाने के लिए सिर भी कट जाए तो भी सस्ता सौदा है।)

सैनिकों ने पहले अम्मृता देवी और फिर उनकी तीन बेटियों को पेड़ों सहित हत्या कर दी।

यह सुनकर आसपास के गांवों से बिश्नोई समुदाय के और लोग आए और वे भी पेड़ों से लिपटकर खड़े हो गए।

इस प्रकार 363 बिश्नोई पुरुषों और महिलाओं की जानें गईं, जिन्होंने खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए बलिदान दिया।

परिणाम और प्रभाव:

इस बलिदान से प्रभावित होकर महाराजा ने पेड़ों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया और बिश्नोई क्षेत्रों में पेड़ों और वन्यजीवों की सुरक्षा का आदेश दिया।
यह घटना भारत का प्रथम संगठित पर्यावरण आंदोलन मानी जाती है।
1970 के दशक में उत्तराखंड में हुए चिपको आंदोलन ने भी इस घटना से प्रेरणा ली।

वर्तमान में महत्त्व:
खेजड़ली गाँव में आज भी “शहीदों का स्मारक” बना है ।

हर वर्ष 10 सितंबर को वहां “खेजड़ली दिवस” मनाया जाता है।

यह घटना विश्व स्तर पर पर्यावरण संरक्षण और समुदाय की सहभागिता का प्रतीक मानी जाती है ।

चिपको आंदोलन

 

chipko andolan

चिपको आंदोलन: पेड़ों से लिपटकर पर्यावरण की रक्षा की अनूठी दास्तान

परिचय

  पर्यावरण संरक्षण आज विश्व के सबसे ज्वलंत मुद्दों में से एक है। वनों की कटाई, जैव विविधता का ह्रास और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ मानवता के भविष्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं। ऐसे में, सदियों पहले भारत के हिमालयी क्षेत्रों में जन्मा एक आंदोलन आज भी हमें प्रेरणा देता है – “चिपको आंदोलन”। यह आंदोलन न केवल पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक है, बल्कि यह दिखाता है कि आम लोग भी प्रकृति की रक्षा के लिए कितना कुछ कर सकते हैं। इसी प्रकार का एक प्रयास इतिहास में खेजड़ली हत्याकांड  के नाम से जाना जाता है जो भारत के पर्यावरण संरक्षण इतिहास में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक घटना है। यह ब्लॉग पोस्ट चिपको आंदोलन की गहराई में जाकर इसके उद्भव, प्रमुख घटनाओं, नायकों और इसके स्थायी प्रभाव पर प्रकाश डालता है।

चिपको आंदोलन का उद्भव और पृष्ठभूमि

चिपको आंदोलन का जन्म 1970 के दशक की शुरुआत में तत्कालीन उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) के चमोली जिले के रैणी गांव में हुआ था। यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता और हरे-भरे जंगलों के लिए जाना जाता था, जो स्थानीय लोगों के जीवन और आजीविका का आधार थे। हालांकि, विकास के नाम पर सरकार द्वारा लकड़ी कंपनियों को पेड़ों की कटाई के लिए लाइसेंस दिए जा रहे थे। इससे स्थानीय लोगों की चिंता बढ़ रही थी, क्योंकि वे पेड़ों पर अपनी निर्भरता को अच्छी तरह समझते थे।

इस क्षेत्र के लोगों के लिए जंगल केवल लकड़ी का स्रोत नहीं थे, बल्कि ये उनकी संस्कृति, परंपराओं और जीवनशैली का अभिन्न अंग थे। जंगल उन्हें भोजन, जलावन, चारा, औषधीय पौधे और पानी उपलब्ध कराते थे। इसके अलावा, जंगल मिट्टी के कटाव को रोकने और बाढ़ को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। जब लकड़ी कंपनियां व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई करने लगीं, तो स्थानीय लोगों को अपनी जीवनरेखा खतरे में पड़ती दिखी।

1960 के दशक के अंत में, इस क्षेत्र में पर्यावरणीय चेतना धीरे-धीरे बढ़ रही थी। अनुभवी गांधीवादी कार्यकर्ता, चंडी प्रसाद भट्ट, जिन्होंने दशोली ग्राम स्वराज्य संघ (डीजीएसएस) की स्थापना की थी, स्थानीय लोगों को उनके अधिकारों और पर्यावरण के महत्व के बारे में शिक्षित कर रहे थे। वे समुदाय आधारित विकास और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में विश्वास रखते थे।

आंदोलन की शुरुआत: रैणी गांव का प्रतिरोध

आंदोलन की चिंगारी 1973 में तब भड़की जब रैणी गांव के पास के एक जंगल को खेल उपकरण बनाने वाली कंपनी साइमंड्स कंपनी को दे दिया गया। स्थानीय महिलाओं ने इसका कड़ा विरोध किया। 26 मार्च 1974 को, जब कंपनी के मजदूर पेड़ काटने पहुंचे, तो गांव की महिलाएं गौरा देवी के नेतृत्व में पेड़ों से लिपट गईं। उन्होंने घोषणा की कि यदि पेड़ काटे गए, तो उन्हें पहले काटना होगा।

यह एक अभूतपूर्व और साहसिक कदम था। लकड़ी काटने वाले मजदूर महिलाओं के दृढ़ संकल्प के आगे झुक गए और उन्हें बिना पेड़ काटे वापस लौटना पड़ा। यह घटना चिपको आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। रैणी गांव की महिलाओं के प्रतिरोध ने अन्य गांवों को भी प्रेरित किया।

आंदोलन का प्रसार और प्रमुख घटनाएं

रैणी गांव की सफलता की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। चिपको आंदोलन जल्द ही गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों के अन्य हिस्सों में फैल गया। हर जगह, स्थानीय लोग, खासकर महिलाएं, लकड़ी कंपनियों के खिलाफ एकजुट हो गईं और पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गईं।

इस आंदोलन में कई प्रमुख घटनाएं हुईं:

  • अदल-बदल की मांग: आंदोलनकारियों ने सरकार से मांग की कि लकड़ी कंपनियों को जो जंगल दिए गए हैं, उन्हें बदल दिया जाए और उन जंगलों को स्थानीय समुदायों के उपयोग के लिए संरक्षित किया जाए।
  • जन जागरूकता अभियान: आंदोलनकारियों ने नुक्कड़ नाटकों, गीतों और सभाओं के माध्यम से लोगों को पेड़ों के महत्व और वनों की कटाई के विनाशकारी परिणामों के बारे में जागरूक किया।
  • वैज्ञानिक समर्थन: आंदोलन को कुछ वैज्ञानिकों का भी समर्थन मिला, जिन्होंने दिखाया कि इस क्षेत्र में वनों की कटाई भूस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ा रही है।
  • सुंदरलाल बहुगुणा का योगदान: सुंदरलाल बहुगुणा इस आंदोलन के एक प्रमुख नेता बनकर उभरे। उन्होंने इस आंदोलन को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने ‘इकोलॉजी इज परमानेंट इकोनॉमी’ (पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है) का नारा दिया और हिमालयी क्षेत्रों में वनों की कटाई के खिलाफ लंबी पदयात्राएं कीं। उनकी यात्राओं और भाषणों ने आंदोलन को एक व्यापक जन आंदोलन बना दिया।
  • सत्येंद्र प्रसाद मैठानी और धूमा देवी का योगदान: चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा के साथ-साथ कई अन्य स्थानीय नेताओं, जैसे सत्येंद्र प्रसाद मैठानी और धूमा देवी, ने भी आंदोलन को संगठित करने और लोगों को लामबंद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

महिलाओं की भूमिका

चिपको आंदोलन में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने न केवल पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली, बल्कि वे आंदोलन की रीढ़ थीं। वे अपने घरों और समुदायों के लिए वनों के महत्व को सबसे अच्छी तरह समझती थीं। उन्होंने दिखाया कि पर्यावरण संरक्षण केवल पुरुषों का काम नहीं है, बल्कि यह सभी की जिम्मेदारी है। महिलाओं के सक्रिय भागीदारी ने आंदोलन को एक मानवीय और भावनात्मक आयाम दिया।

आंदोलन की सफलता और प्रभाव

चिपको आंदोलन अंततः सफल रहा। 1980 में, तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने हिमालयी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई पर 15 साल का प्रतिबंध लगा दिया। यह चिपको आंदोलन की एक बड़ी जीत थी और इसने दिखाया कि लोगों की सामूहिक शक्ति सरकार को भी झुकने पर मजबूर कर सकती है।

चिपको आंदोलन का प्रभाव केवल वनों की कटाई को रोकने तक सीमित नहीं था। इसके दूरगामी प्रभाव हुए:

  • पर्यावरणीय चेतना का उदय: चिपको आंदोलन ने भारत में पर्यावरणीय चेतना को बढ़ाया। इसने लोगों को प्रकृति के साथ अपने संबंधों और इसके संरक्षण की आवश्यकता के बारे में सोचने पर मजबूर किया।
  • सामुदायिक वनीकरण: आंदोलन ने समुदाय आधारित वनीकरण कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया। लोगों ने खाली पड़ी भूमि पर पेड़ लगाना शुरू किया और अपने जंगलों की रक्षा करने लगे।
  • महिला सशक्तिकरण: इस आंदोलन ने महिलाओं को आवाज दी और उन्हें पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर नेतृत्व करने के लिए सशक्त बनाया।
  • अन्य पर्यावरणीय आंदोलनों के लिए प्रेरणा: चिपको आंदोलन ने भारत और दुनिया भर में अन्य पर्यावरणीय आंदोलनों के लिए प्रेरणा का काम किया। यह दिखाता है कि ग्रास-रूट स्तर पर आंदोलन कितना शक्तिशाली हो सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय पहचान: चिपको आंदोलन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली और इसे पर्यावरण संरक्षण के एक मॉडल के रूप में सराहा गया। चंडी प्रसाद भट्ट को 1982 में सामुदायिक वनीकरण और पर्यावरण संरक्षण के लिए रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

चिपको आंदोलन की विरासत

चिपको आंदोलन की विरासत आज भी जीवित है। यह हमें याद दिलाता है कि प्रकृति के साथ हमारा गहरा संबंध है और हमें इसकी रक्षा करनी चाहिए। यह दिखाता है कि आम लोग, जब एकजुट होते हैं, तो बदलाव ला सकते हैं।

आज, जब दुनिया जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान जैसी गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रही है, चिपको आंदोलन का संदेश और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना चाहिए और उन्हें भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना चाहिए।

चिपको आंदोलन केवल पेड़ों को बचाने का आंदोलन नहीं था, बल्कि यह एक संस्कृति को बचाने का आंदोलन था। यह एक जीवनशैली को बचाने का आंदोलन था जो प्रकृति के साथ सद्भाव में रहती थी। यह दिखाता है कि पर्यावरण संरक्षण कोई अलग मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा से जुड़ा हुआ है।

निष्कर्ष

चिपको आंदोलन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह अहिंसक प्रतिरोध और पर्यावरणीय चेतना की एक प्रेरक कहानी है। यह दिखाता है कि कैसे साधारण लोग, जब अपने अधिकारों और अपने पर्यावरण के लिए खड़े होते हैं, तो वे असाधारण परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। आज भी, चिपको आंदोलन हमें प्रेरणा देता है और हमें याद दिलाता है कि प्रकृति की रक्षा करना हमारा सामूहिक कर्तव्य है। हमें चिपको आंदोलन के नायकों के बलिदान और दृढ़ संकल्प को कभी नहीं भूलना चाहिए और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना ही स्थायी भविष्य की कुंजी है।

Saturday, 19 April 2025

छपाक

Hindi Story on Making An Impact
अपना प्रभाव छोड़ने पर प्रेरणादायक कहानी

    MBA करने के बाद समीर की प्लेसमेंट एक मल्टीनेशनल कम्पनी में हो गयी. Managerial positions में काम करने वाले employees में समीर सबसे young था. कम्पनी के directors के सामने वह खुद को साबित करना चाहता था, पर तमाम कोशिशों के बावजूद वो कुछ ऐसा नहीं कर पा रहा था जिसका एक बड़ा impact पड़े और लोग उसे notice करें.

अपनी इस परेशानी को discuss करने के लिए एक दिन उसने अपने college के professor, प्रो० कृष्णन को कॉल किया.


Busy होने के कारण प्रोफेसर ने समीर की मिल कर बात करने को कहा और उसे अगले Sunday को college में बुलाया.

समीर समय से पहुँच गया और दोनों campus में घूम-घूम कर बात करने लगे.

प्रोफेसर समीर की परेशानी समझ गए और बोले, “चलो जरा swimming pool का चक्कर लगा कर आते हैं.”


“क्या सर! मैं आपसे इतनी बड़ी problem discuss कर रहा हूँ और आप स्विमिंग पूल जाने की बात कर रहे हैं…”, समीर कुछ झुंझलाते हुए बोला.

“अरे आओ तो सही!”, प्रोफ़ेसर जबरदस्ती उसे अपने साथ ले गए.

दोपहर का समय था, पूल बिलकुल खाली था.

प्रोफ़ेसर बोले, “चलो एक गेम खेलते हैं… करना ये है कि हमें इस पूल में हलचल पैदा करनी है. देखते हैं कौन अधिक हलचल पैदा कर लेता है.”

समीर को लगा कि यहाँ आकर उसने अपना समय बर्बाद कर दिया है…पर वो प्रोफ़ेसर कृष्णन की बात टाल भी नहीं सकता था.


“सबसे पहले तुम प्रयास करो.”, प्रोफ़ेसर बोले.

समीर ने इधर-उधर देखा और पास ही पड़ी एक swimming pool tube उठा कर पानी में फेंक दी.

“हा-हा-हा”, प्रोफ़ेसर हँसते हुए बोले, “ इससे तो बस थोड़े से ही ripples बने हैं….क्या अपने प्रयासों से तुम बस इतनी सी ही हलचल पैदा कर सकते हो?”

यह सुनकर समीर थोड़ा गुस्से में आ गया, और झट से side में पड़ी एक चेयर उठाई और पानी में फेंक दी.

प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, “अच्छा है! ये प्रयास पहले वाले से बेहतर है…देखो इस बार का impact पहले से ज्यादा है और इसकी लहरें भी दूर तक गयी हैं.”

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“ठीक है सर, तो क्या अब हम यहाँ से चलें?”, समीर बोला.

प्रोफ़ेसर ने फ़ौरन जवाब दिया, “नहीं! अभी खेल ख़त्म नहीं हुआ है!

क्या तुम एक और प्रयास करना चाहोगे?”

समीर जो भी हो रहा था उससे खुश नहीं था, वह खीजते हुए बोला, “ नहीं सर, अब यहाँ और कुछ नहीं पड़ा है जो मैं इस पूल में फेंकूं…. क्यों नहीं आप ही कोई प्रयास करके देख लेते हैं?”

अगले ही पल प्रोफ़ेसर अपने कपड़े उतारने लगे और दौड़ कर पानी में एक छलांग लगा दी!


“छपाक….”

पूल में हलचल ही हलचल मच गयी .

समीर भौंचक्का था. उसे ऐसा कुछ होने की उम्मीद नहीं थी.


    “कुछ समझे समीर…”, प्रोफ़ेसर पानी से निकलते हुए बोले जा रहे थे, “ ये swimming pool दरअसल हमारे area of work को दर्शाता है…और अगर हमें इसमें maximum impact डालना है… अपने काम से पूरे ecosystem में ripples create करनी हैं तो हमें उस काम में डूबना होगा…हमें उसमे अपना सबकुछ लगा देना होगा…अधमने और छोटे-छोटे प्रयास तो हर कोई कर लेता है…हमें जी-जान से अपने काम को अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा और तब ये दुनिया हमें notice किये बिना नहीं रह पाएगी!”

समीर प्रोफ़ेसर की बात अच्छी तरह से समझ चुका था. अब वह एक नए जोश के साथ शहर की ओर वापस लौट रहा था…उसे पता था कि अब उसे क्या करना है!

 
    दोस्तों, हमे चाहे जिस field से हों…अगर हमें अपनी field में नाम कमाना है…अपना प्रभाव छोड़ना है तो हमें ordinary से ऊपर उठना होगा. और ऐसा करने के लिए हमें extra-ordinary efforts करने होंगे…वरना हमारा काम तो होगा….लेकिन नाम नहीं होगा!
 
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Friday, 18 April 2025

Current Affairs (17-04-2025)

  • हाल ही में विश्व आवाज दिवस कब मनाया गया _16 अप्रैल
  • हाल ही में प्रवीण परदेसी को किस राज्य के मुख्यमंत्री का मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया है_ महाराष्ट्र
  • हाल ही में किस आईआईटी ने सेमीकंडक्टर रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए माइक्रों टेक्नोलॉजी के साथ साझेदारी की है _आईआईटी दिल्ली।
  • हाल ही में रक्षा साहित्य महोत्सव कलम और कवच 2.0 का आयोजन कहां किया गया है _नई दिल्ली।             16-04-2025 की करेंट अफेयर्स
  • हाल ही में किसने 15वीं हॉकी इंडिया सीनियर पुरुष राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती है_ पंजाब।
  • हाल ही में किस टीसीएस का नया कार्यकारी निदेशक अध्यक्ष और मुख्य परिचालन अधिकारी नियुक्त किया गया है_ आरती सुब्रह्मण्य।
  • हाल ही में किसे भारत का 52 वा मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है _ ज. बी आर गवई।
  • हाल ही में वित्त वर्ष 2024 -25 में भारत के निर्यात में कितने प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है _ 5.5%।
  • हाल ही में किस राज्य के मुख्यमंत्री ने ई-सेहत अप का शुभारंभ किया है_ जम्मू कश्मीर।
  • हाल ही में किसे IWLF एथलीट आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है _मीराबाई चानू।
  • हाल ही में किस लीजेंड्स आफ एंडोस्कोपी पुरस्कार मिला है _ डी नागेश्वर रेड्डी।
  • हाल ही में जारी नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल निर्माता कौन बना _ भारत।
  • हाल ही में किस राज्य सरकार ने हीट वेव को राज्य विशिष्ट आपदा घोषित किया है_ तेलंगाना।
  • हाल ही में किस देश की जनसंख्या में लगातार 14 वे साल गिरावट देखी है_ जापान।

आज का ज्ञान (18-04-2025)

  • भारतीय संविधान में न्यायिक पुनरीक्षण की प्रक्रिया अमेरिका के संविधान से लिया गया है ।
  • संसद का सदस्य नहीं होने के बाद भी महान्यायवादी संसद की कार्यवाही में भाग ले सकता है ।
  • महान्यायवादी भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी होता है ।
  • इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन विश्व बैंक की आसान ऋण प्रदाता संस्था है।
  • इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन को विश्व बैंक की उदार ऋण खिड़की भी कहते हैं।
  • मानव यकृत हार्मोन का निर्माण नहीं करते हैं ।
  • पौधों में श्वसन से पौधों का प्रकाश संश्लेषण क्रिया अधिक तेजी से होती है।
  • प्रकाश संश्लेषण की दर लाल रंग में सबसे अधिक होती है ।
  • लज्जा नामक पुस्तक की लेखिका तस्लीमा नसरीन है।
  • मुगल काल में फारसी भाषा को राजकीय संरक्षण दिया गया।
  • कलीमुल्लाह बहमनी राज्य का अंतिम शासक था।
  • बंगाल में पाल वंश की स्थापना गोपाल ने की थी ।
  • कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर स्थित है ।
  • कर्नाटक कॉफी का और आंध्र प्रदेश तंबाकू का सर्वाधिक उत्पादन करता है।
  • हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन माना जाता है ।
  • उद्योगों में प्रयुक्त रसायनों का प्रचुर स्रोत कोलतार है।
  • जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकी से सबसे पहले ट्रांसजेनिक बैक्टीरिया को बनाया गया है।
  • प्रकाश संश्लेषण में जल का अवशोषण होता है ।मनुष्य जब सांस लेता है तो 0.5 डेसीबल शोर होता है ।
  • पारिस्थितिकी विज्ञान की वह शाखा है जो जीवन और वातावरण के बीच के संबंध को बताता है ।
  • मधुशाला हरिवंश राय बच्चन की रचना है।
  • भारत का फिल्म प्रशिक्षण संस्थान पुणे में स्थित है।
  • जॉर्ज सिटी फिजी के विद्रोह के लिए जिम्मेदार थे।हड़प्पा कांस्य युगीन सभ्यता है ।
  • हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेंनसॉन्ग भारत आया था।
  • ह्वेंनसॉन्ग को यात्रियों का राजकुमार भी कहा जाता है।
  • बाल गंगाधर तिलक ने गृह शासन आंदोलन चलाया था ।
  • गीता रहस्य बाल गंगाधर की रचना है।
  • धातुए चालन प्रक्रिया द्वारा गर्म होती हैं ।
  • अश्व यदि एकाएक चलना प्रारंभ कर दे तो आश्वारोही के गिरने का कारण विराम का जड़त्व है।
  • जल पृष्ठ पर लोहे के टुकड़े नहीं तैरते क्योंकि लोहे द्वारा विस्थापित जल का भार लोहे के भर से कम होता है ।
  • वायु मिश्रण है तथा पीतल मिश्र धातु है ।
  • पहाड़ों पर पानी 100 डिग्री सेंटीग्रेड से कम तापमान पर उबलने लगता है ।
  • द्रव की बूंद की आकृति गोलाकार पृष्ठ तनाव के कारण होती है ।
  • सूखा बालू चमकीला परावर्तन के कारण दिखाई देता है ।
  • जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य ग्रहण होता है
  • वायल नियम नियत तापमान की स्थिति में लागू होता है ।
  • एंटीजन एक पदार्थ है जो प्रतिरक्षक तंत्र को चालू करता है ।
  • हैजा रोग जीवाणु के कारण होता है ।
  • मानव शरीर में रक्तचाप एड्रेनल ग्लैंड द्वारा नियंत्रित होता है।
  • 16-04-2025 का GK पढ़े

ईमानदारी_का_फल

    बहुत समय पहले की बात है, प्रतापगढ़ के राजा को कोई संतान नहीं थी. राजा ने फैसला किया कि वह अपने राज्य के किसी बच्चे को ही अपना उत्तराधिकारी चुनेगा. इसी इरादे से एक दिन सभी बच्चों को बुलाया गया. राजा ने घोषणा की कि वह वह वहां मौजूद बच्चों में से ही किसी को अपना उत्तराधिकारी चुनेगा.

उसके बाद उसने सभी बच्चों के बीच एक छोटी सी थैली बंटवा दी…. और बोला,


“प्यारे बच्चों, आप सभी को जो थैली दी गयी है उसमे अलग-अलग पौधों के बीज हैं. हर बच्चे को सिर्फ एक ही बीज दिया गया है…आपको इसे अपने घर ले जाकर एक गमले में लगाना है. 6 महीने बाद हम फिर यहाँ इकठ्ठा होंगे और उस समय मैं फैसला करूँगा कि मेरे बाद प्रतापगढ़ का अगला शाषक कौन होगा?

    उन्ही लड़कों में ध्रुव नाम का भी एक लड़का था. बाकी बच्चों की तरह वह भी बीज लेकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर वापस पहुँच गया.

माँ की मदद से उसने एक गमला चुना और उसमे और अच्छे से उसकी देखभाल करता.

दिन बीतने लगे, पर हफ्ते-दो हफ्ते बाद भी ध्रुव के गमले में पौधे का कोई नामोनिशान नहीं था.


वहीँ अब आस-पास के कुछ बच्चों के गमलों में उपज दिखने लगी थी.

ध्रुव ने सोचा कि हो सकता है उसका बीज कुछ अलग हो… और कुछ दिनों बाद उसमे से कुछ निकले.

और ऐसा सोच कर वह पूरी लगन से गमले की देखभाल करता रहा. पर तीन महीने बीत जाने पर भी उसका गमला खाली था.


वहीं दूसरी ओर बाकी बच्चों के गमलों में अच्छे-खासे पौधे उग गए थे. कुछ में तो फल-फूल भी दिखाई देने लगे थे.

ध्रुव का खाली गमला देख सभी उसका मजाक बनाते…और उस पर हँसते… यहाँ तक की कुछ बड़े बुजुर्ग भी उसे बेकार में मेहनत करने से मना करते.

पर बावजूद इसेक ध्रुव ने हार नहीं मानी, और लगातार गमले की देखभाल करता रहा.


देखते-देखते 6 महीने भी बीत गए और राजा के सामने अपना गमला ले जाने का दिन आ गया.

ध्रुव चिंतित था क्योंकि अभी भी उसे गमले में कुछ नहीं निकला था. वह मन ही मन सोचने लगा-

अगर मैं ऐसे ही राजा के सामने चला गया तो सब लोग मुझ पर कितना हँसेंगे… और कहीं राजा भी मुझसे नाराज हो गया और सजा देदी तो…किसी को यकीन नहीं होगा कि मैं बीज में रोज पानी डालता था…सब मुझे कितना आलसी समझेंगे!


माँ ध्रुव की परेशानी समझ रही थी, उसने ध्रुव की आँखों में आँखें डाल कर कहा-

“नतीजा जो कुछ भी हो, तुम्हे राजा को उसका दिया हुआ बीज लौटाना ही चाहिए!”
 
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तय दिन सभी बच्चे राजमहल के मैदान में इकठ्ठा हो गए. वहां एक से बढ़कर एक पौधों का अम्बार लगा था…रंग-बिरंगे फूलों की खुशबु से पूरा महल सुगन्धित हो गया था.

ध्रुव का खाली गमला देख बाकी बच्चे उसका मजाक उड़ा रहे थे कि तभी राजा के आने की घोषणा हुई.

सभी बच्चे शांति से अपनी जगह खड़े हो गए…सब के अन्दर बस एक ही प्रश्न चल रहा था…कि

कौन बनेगा राजा ?
राजा बच्चों के बीच से हो कर आगे बढ़ने लगे…वह जहाँ से भी गुजरते बच्चे तन कर खड़े हो जाते और अपने आप को योग्य उत्तराधिकारी साबित करने की कोशिश करते.

तमाम खूबसूरत पौधों को देखने के बाद राजा की नज़र ध्रुव पर पड़ी.

“क्या हुआ? तुम्हारा गमला खाली क्यों है?”, राजा ने पूछा.

“जी मैं रोज इसमें पानी डालता था…धूप दिखाता था… 6 महीने तक मैंने इसकी पूरी देख-भाल की पर फिर भी इसमें से पौधा नहीं निकला..”, ध्रुव कुछ हिचकिचाहट के साथ बोला.

राजा बाकी गमलों को देखने के लिए आगे बढ़ गया और जब सभी गमले देखने के बाद उसने बच्चों को संबोधित किया-


“आप लोगों ने खुद को साबित करने के लिए कड़ी कड़ी मेहनत की… ज्यादातर लोग किसी भी कीमत पर राजा बनना चाहते हैं, लेकिन एक लड़का है जो यहाँ खाली हाथ ही चला आया…. ध्रुव, तुम यहाँ मेरे पास आओ…”

सबके सामने इस तरह बुलाया जाना ध्रुव को कुछ अजीब लगा.

वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा.

जैसे ही राजा ने उसका गमला उठाकर बाकी बच्चों को दिखाया…सभी हंसने लगे.

“शांत हो जाइए!”, राजा ने ऊँची आवाज़ में कहा, “



6 महीने पहले मैंने आपको बीज दिए थे और अपने-अपने पौधों के साथ आने को कहा था. मैंने आपको जो बीज दिए थे वो बंजर थे… आप चाहे उसकी जितनी भी देख-भाल करते उसमे से कुछ नहीं निकलता… लेकिन अफ़सोस है कि आप सबके बीच में बस एक ध्रुव ही है जो खाली हाथ यहाँ उपस्थित हुआ है.

आप सबको उससे सीखना चाहिए…पहले तो उसने ईमानदारी दिखाई कि और लोगों की तरह बीज में से कुछ ना निकले पर दूसरा बीज नहीं लगाया…और उसके बाद खाली गमले के साथ यहाँ आने का सहस दिखाया…ये जानते हुए भी कि लोग उस पर कितना हँसेंगे…उसे कितना अपमानित होना पड़ेगा!
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Thursday, 17 April 2025

चलते रहने की ज़िद

Hindi Story on Perseverance
दृढ़ रहने पर प्रेरणादायक कहानी

    अजय पिछले चार-पांच सालों से अपने शहर में होने वाली मैराथन में हिस्सा लेता था…लेकिन कभी भी उसने रेस पूरी नहीं की थी.

    पर इस बार वह बहुत एक्साइटेड था. क्योंकि पिछले कई महीनों से वह रोज सुबह उठकर दौड़ने की प्रैक्टिस कर रहा था और उसे पूरा भरोसा था कि वह इस साल की मैराथन रेस ज़रूर पूरी कर लेगा.


    देखते-देखते मैराथन का दिन भी आ गया और धायं की आवाज़ के साथ रेस शुरू हुई. बाकी धावकों की तरह अजय ने भी दौड़ना शुरू किया.

    वह जोश से भरा हुआ था, और बड़े अच्छे ढंग से दौड़ रहा था. लेकिन आधी रेस पूरी करने के बाद अजय बिलकुल थक गया और उसके जी में आया कि बस अब वहीं बैठ जाए…

    वह ऐसा सोच ही रहा था कि तभी उसने खुद को ललकारा…

    रुको मत अजय! आगे बढ़ते रहो…अगर तुम दौड़ नहीं सकते, तो कम से कम जॉग करते हुए तो आगे बढ़ सकते हो…आगे बढ़ो…

    और अजय पहले की अपेक्षा धीमी गति से आगे बढ़ने लगा.

    कुछ किलो मीटर इसी तरह दौड़ने के बाद अजय को लगा कि उसके पैर अब और आगे नहीं बढ़ सकते…वह लड़खड़ाने लगा. अजय के अन्दर विचार आया….अब बस…और नहीं बढ़ सकता!

    लेकिन एक बार फिर अजय ने खुद को समझाया…

    रुको मत अजय …अगर तुम जॉग नहीं कर सकते तो क्या… कम से कम तुम चल तो सकते हो….चलते रहो.

    अजय अब जॉग करने की बजाय धीरे-धीरे लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा.

    बहुत से धावक अजय से आगे निकल चुके थे और जो पीछे थे वे भी अब आसानी से उसे पार कर रहे थे…अजय उन्हें आगे जाने देने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था. चलते-चलते अजय को फिनिशिंग पॉइंट दिखने लगा…लेकिन तभी वह अचानक से लड़खड़ा कर गिर पड़ा… उसके बाएँ पैर की नसें खिंच गयी थीं.

    “अब कुछ भी हो जाए मैं आगे नहीं बढ़ सकता…”, जमीन पर पड़े-पड़े अजय के मन में ख़याल आया.

    लेकिन अगले पल ही वो जोर से चीखा….

    नहीं! आज चाहे जो हो जाए मैं ये रेस पूरी करके रहूँगा…ये मेरी ज़िद है…माना मैं चल नहीं सकता लेकिन लड़खड़ाते-लड़खड़ाते ही सही इस रेस को पूरा ज़रूर करूँगा….

अजय ने साहस दिखाया और एक बार फिर असहनीय पीड़ा सहते हुए आगे बढ़ने लगा….और इस बार वह तब तक बढ़ता रहा….तब तक बढ़ता रहा…जब तक उसने फिनिशिंग लाइन पार नहीं कर ली!


    और लाइन पार करते ही वह जमीन पर लेट गया…उसके आँखों से आंसू बह रह थे.

    अजय ने रेस पूरी कर ली थी…उसके चेहरे पर इतनी ख़ुशी और मन में इतनी संतुष्टि कभी नहीं आई थी…आज अजय ने अपने चलते रहने की ज़िदके कारण न सिर्फ एक रेस पूरी की थी बल्कि ज़िन्दगी की बाकी रेसों के लिए भी खुद को तैयार कर लिया था.


    दोस्तों, चलते रहने की ज़िद हमें किसी भी मंजिल तक पहुंचा सकती है. बाधाओं के आने पर हार मत मानिए…

    ना चाहते हुए भी कई बार conditions ऐसी हो जाती हैं कि आप बहुत कुछ नहीं कर सकते! पर ऐसी कंडीशन को “कुछ भी ना करने” का excuse मत बनाइए.
घर में मेहमान हैं आप 8 घंटे नहीं पढ़ सकते….कोई बात नहीं 2 घंटे तो पढ़िए…

    बारिश हो रही है…आप 10 कस्टमर्स से नहीं मिल सकते…कम से कम 2-3 से तो मिलिए…

    एकदम से रुकिए नहीं… थोड़ा-थोड़ा ही सही आगे तो बढ़िये.

    और जब आप ऐसा करेंगे तो अजय की तरह आप भी अपने ज़िन्दगी की रेस ज़रूर पूरी कर पायेंगे और अपने अन्दर उस ख़ुशी उस संतुष्टि को महसूस कर पायेंगे जो सिर्फ चलते रहने की ज़िद से आती है!
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पूर्व में बरी एवं पूर्व में दोषी का सिद्धांत और निष्पक्ष विचारण

**पूर्व में बरी और पूर्व में दोषी: सिद्धांत**

    ये दोनों सिद्धांत **दोहरे खतरे (Double Jeopardy)** के सिद्धांत से जुड़े हैं। दोहरे खतरे का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार अभियोजित और दंडित नहीं किया जा सकता।

**पूर्व में बरी (Former Acquittal):** यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए पहले ही बरी कर दिया गया है (अर्थात न्यायालय ने उसे निर्दोष पाया है), तो उसे उसी अपराध के लिए दोबारा अभियोजित नहीं किया जा सकता। इसका मतलब यह है कि राज्य (State) को एक ही व्यक्ति को बार-बार एक ही अपराध के लिए अदालती कार्यवाही में नहीं घसीटना चाहिए, क्योंकि इससे व्यक्ति को अनावश्यक मानसिक और वित्तीय पीड़ा होगी।

**पूर्व में दोषी (Former Conviction):** यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है (अर्थात न्यायालय ने उसे दोषी पाया है), तो उसे उसी अपराध के लिए दोबारा अभियोजित नहीं किया जा सकता। यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति को उसके अपराध के लिए एक बार दंडित होने के बाद, उसे उसी अपराध के लिए बार-बार दंडित न किया जाए।


**निष्पक्ष विचारण को सुनिश्चित करने में भूमिका**


    ये दोनों सिद्धांत एक निष्पक्ष विचारण सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:

**मनमानी से सुरक्षा:** ये सिद्धांत राज्य को मनमाने ढंग से किसी व्यक्ति को बार-बार अभियोजित करने से रोकते हैं। यदि ऐसा न होता, तो राज्य किसी व्यक्ति को तब तक अभियोजित करता रहता जब तक कि उसे दोषी न ठहरा लिया जाए, जो कि न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।

**संसाधनों का कुशल उपयोग:** ये सिद्धांत अदालत के समय और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करते हैं। बार-बार एक ही मामले की सुनवाई करने से बचने पर, अदालतें अन्य लंबित मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं।

**मनोवैज्ञानिक सुरक्षा:** ये सिद्धांत व्यक्ति को इस भय से मुक्ति दिलाते हैं कि उसे उसी अपराध के लिए बार-बार अभियोजित किया जा सकता है। यह व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य और शांति को बनाए रखने में मदद करता है।

**न्याय पर विश्वास:**
जब लोगों को यह विश्वास होता है कि न्याय प्रणाली उन्हें दोहरे खतरे से बचाती है, तो न्याय प्रणाली में उनका विश्वास बढ़ता है।

**निष्कर्ष**

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में "पूर्व में बरी" और "पूर्व में दोषी" के सिद्धांत न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर आधारित हैं। ये सिद्धांत दोहरे खतरे से सुरक्षा प्रदान करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को एक निष्पक्ष विचारण का अधिकार है।

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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BNSS: आपराधिक न्यायालय के क्षेत्राधिकार

    किसी भी आपराधिक न्यायालय के लिए क्षेत्राधिकार यह परिभाषित करता है कि वह किन मामलों की सुनवाई कर सकता है। यह भौगोलिक क्षेत्र, अपराध की प्रकृति और न्यायालय के पदानुक्रम पर निर्भर करता है। क्षेत्राधिकार को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने से निम्न फायदे होते हैं:

*   **स्पष्टता और दक्षता:** यह सुनिश्चित करता है कि मामलों को सही न्यायालय में दायर किया जाए, जिससे देरी और भ्रम कम होता है।
*   **न्याय का वितरण:** यह सुनिश्चित करता है कि हर अपराध के लिए उचित न्यायालय उपलब्ध है, जो पीड़ित को न्याय प्रदान करने में सहायक होता है।
*   **प्रशासनिक सरलता:** क्षेत्राधिकार के नियमों से न्यायालयों को मामलों के प्रबंधन और संसाधन आवंटन में मदद मिलती है।

**भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत क्षेत्राधिकार:**


 1.  **सेशन न्यायालय (Sessions Court):** सेशन न्यायालय सबसे उच्च न्यायालय होता है जो गंभीर अपराधों की सुनवाई करता है, जैसे कि हत्या, बलात्कार, और अन्य अपराध जिनमें सात साल से अधिक की सजा का प्रावधान है।

2.  **प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट (Magistrates of the First Class):** ये मजिस्ट्रेट उन अपराधों की सुनवाई करते हैं जिनमें तीन साल तक की सजा का प्रावधान है।

3.  **द्वितीय वर्ग के मजिस्ट्रेट (Magistrates of the Second Class):** ये मजिस्ट्रेट उन अपराधों की सुनवाई करते हैं जिनमें एक साल तक की सजा का प्रावधान है।

4.  **कार्यपालक मजिस्ट्रेट (Executive Magistrates):** ये मजिस्ट्रेट कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं और कुछ विशेष प्रकार के मामलों की सुनवाई करते हैं, जैसे कि शांति भंग होने की आशंका वाले मामले।

**क्षेत्राधिकार का निर्धारण:**

**स्थानिक क्षेत्राधिकार (Territorial Jurisdiction):** जिस स्थान पर अपराध हुआ है, उस स्थान के अधिकार क्षेत्र में आने वाला न्यायालय ही मामले की सुनवाई करेगा।
**विषय क्षेत्राधिकार (Subject-Matter Jurisdiction):** कुछ विशेष प्रकार के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों का गठन किया जा सकता है, जैसे कि बाल यौन अपराधों के लिए पॉक्सो न्यायालय (POCSO Courts)।
**अपराध की गंभीरता (Severity of the Offence):** अपराध की गंभीरता के आधार पर यह तय किया जाता है कि किस न्यायालय में मामला सुना जाएगा।

*निष्कर्ष:*


    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत आपराधिक न्यायालयों के क्षेत्राधिकार का निर्धारण एक महत्वपूर्ण पहलू है जो यह सुनिश्चित करता है कि न्याय सुचारू रूप से और कुशलता से प्रदान किया जाए। 

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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अपीलीय न्यायालय (BNSS)

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में अपीलीय न्यायालयों की भूमिका एक केंद्रीय स्थान रखती है। अपीलीय न्यायालय, निचली अदालतों के निर्णयों की समीक्षा करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कानून का सही ढंग से पालन किया गया है और न्याय का निष्पक्ष रूप से वितरण हुआ है।

    BNSS में अपीलीय न्यायालयों की संरचना और अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। सबसे निचले स्तर पर, सत्र न्यायालयों के निर्णयों के खिलाफ अपील उच्च न्यायालयों में दायर की जा सकती है। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की एक पीठ अपील की सुनवाई करती है और निर्णय की वैधता का आकलन करती है। वे इस बात की जाँच करते हैं कि निचली अदालत ने कानून की व्याख्या में कोई त्रुटि तो नहीं की, या कार्यवाही में कोई अनियमितता तो नहीं थी जिसके कारण अन्याय हुआ हो।

    उच्च न्यायालयों के निर्णयों के खिलाफ अपील भारत के सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय, देश का सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है और उसके निर्णय सभी निचली अदालतों के लिए बाध्यकारी होते हैं। सर्वोच्च न्यायालय केवल उन मामलों में अपील स्वीकार करता है जिनमें कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हो या जिसमें न्याय का घोर उल्लंघन हुआ हो।

    अपीलीय न्यायालयों के पास कई महत्वपूर्ण शक्तियां हैं। वे निचली अदालत के फैसले को बरकरार रख सकते हैं, उसे उलट सकते हैं, या उसे संशोधित कर सकते हैं। वे मामले को पुनर्विचार के लिए निचली अदालत को वापस भी भेज सकते हैं। इसके अतिरिक्त, अपीलीय न्यायालय निचली अदालत के रिकॉर्ड की जांच कर सकते हैं, अतिरिक्त सबूत मांग सकते हैं और आवश्यक होने पर गवाहों को बुला सकते हैं।

    अपीलीय न्यायालयों का महत्व इस बात में निहित है कि वे न्यायिक प्रणाली में त्रुटियों को सुधारने और न्याय सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं। यह सुनिश्चित करते हैं कि निचली अदालतों ने कानून का सही ढंग से पालन किया है और निष्पक्ष सुनवाई की है। वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि व्यक्तियों को अन्यायपूर्ण सजा न मिले।

    हालांकि, अपीलीय प्रक्रिया कुछ चुनौतियों का सामना कर रही है। लंबित मामलों की संख्या अधिक है, जिसके कारण अपील की सुनवाई में देरी होती है। इसके अतिरिक्त, अपीलीय न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण भी प्रक्रिया में बाधा आती है।

    इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, सरकार को अपीलीय न्यायालयों में बुनियादी ढांचे में सुधार करने और न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने के लिए निवेश करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, अपीलीय प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और लंबित मामलों को कम करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए।

    संक्षेप में, अपीलीय न्यायालयों की भूमिका महत्वपूर्ण है। वे न्याय सुनिश्चित करने,
कानून का सही ढंग से पालन करने और न्यायिक प्रणाली में त्रुटियों को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। सरकार को इन न्यायालयों को मजबूत करने और उन्हें अधिक प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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BNSS: विधिक सहायता - न्याय की राह को सुगम बनाना

**विधिक सहायता क्या है?**


    विधिक सहायता का अर्थ है कानूनी सलाह, प्रतिनिधित्व और सहायता प्रदान करना उन व्यक्तियों को जो आर्थिक या सामाजिक रूप से वंचित होने के कारण अपना मामला न्यायालय में स्वयं प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं। यह सहायता उन्हें न्याय पाने और अपने अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम बनाती है।

**बीएनएसएस में विधिक सहायता का महत्व:**


बीएनएसएस के तहत विधिक सहायता का महत्व कई कारणों से बढ़ जाता है:

**निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार:** बीएनएसएस के तहत, अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। विधिक सहायता यह सुनिश्चित करती है कि हर अभियुक्त, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो, को न्यायालय में अपना पक्ष रखने का समान अवसर मिले।
**वंचितों का सशक्तिकरण:** यह कमजोर वर्गों, जैसे कि महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति/जनजाति और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को सशक्त बनाती है ताकि वे अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जान सकें और उनका उपयोग कर सकें।
**न्यायपालिका पर बोझ कम करना:** जब व्यक्तियों को कानूनी मार्गदर्शन उपलब्ध होता है, तो वे बेहतर ढंग से अपने मामलों को समझ पाते हैं और गैर-जरूरी मुकदमेबाजी से बचते हैं, जिससे न्यायपालिका पर बोझ कम होता है।
**कानून का शासन सुनिश्चित करना:** विधिक सहायता यह सुनिश्चित करती है कि कानून का शासन सभी पर समान रूप से लागू हो, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।

**विधिक सहायता कौन प्रदान करता है?**

    भारत में विधिक सहायता राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority - NALSA) और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (State Legal Services Authorities - SLSA) द्वारा प्रदान की जाती है। ये प्राधिकरण विभिन्न विधिक सहायता क्लीनिक, वकीलों के पैनल और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से विधिक सहायता सेवाएं प्रदान करते हैं।

**विधिक सहायता कैसे प्राप्त करें?**


विधिक सहायता प्राप्त करने के लिए, आप निम्नलिखित तरीके अपना सकते हैं:

**NALSA/SLSA से संपर्क करें:** आप NALSA या अपने राज्य के SLSA की वेबसाइट पर जाकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और आवेदन कर सकते हैं।


**विधिक सहायता क्लीनिक:** आपके क्षेत्र में स्थित विधिक सहायता क्लीनिक से संपर्क करें, जो कानूनी सलाह और सहायता प्रदान करते हैं।


**वकीलों के पैनल:** NALSA/SLSA द्वारा सूचीबद्ध वकीलों के पैनल से संपर्क करें। ये वकील जरूरतमंद लोगों को मुफ्त कानूनी सेवाएं प्रदान करते हैं।

**निष्कर्ष:**


    विधिक सहायता एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो न्याय तक समान पहुंच को बढ़ावा देता है। यह वंचितों को सशक्त बनाता है और उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम बनाता है। विधिक सहायता के बारे में जागरूक होना और इसका उपयोग करना आवश्यक है ताकि हम एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज का निर्माण कर सकें।

    यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विधिक सहायता प्राप्त करने के लिए कुछ मानदंड होते हैं, जैसे कि आय सीमा और मामले की प्रकृति।

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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अपील: एक समीक्षा, पुनरावलोकन से अंतर और दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील प्रक्रिया

    कानूनी प्रणाली में, न्याय की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए, अपील एक महत्वपूर्ण तंत्र है। अपील का मतलब है किसी निचली अदालत के फैसले को चुनौती देना और उसे बदलने के लिए उच्च अदालत में याचिका दायर करना। कई लोगों के मन में अपील, पुनरीक्षण (रिविजन) और पुनरावलोकन (रिव्यू) को लेकर भ्रम रहता है। इसलिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि अपील क्या है, यह अन्य दो प्रक्रियाओं से कैसे अलग है, और दोषमुक्ति (acquit) के निर्णय के विरुद्ध अपील दायर करने और उसकी सुनवाई की प्रक्रिया क्या है।

**अपील क्या है?**


    अपील एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें एक पक्ष, जो निचली अदालत के फैसले से असंतुष्ट है, एक उच्च अदालत में उस फैसले को पलटने या संशोधित करने के लिए याचिका दायर करता है। अपील में, उच्च अदालत निचली अदालत के फैसले की समीक्षा करती है और यह देखती है कि क्या कानूनी प्रक्रिया का सही ढंग से पालन किया गया है और क्या निचली अदालत ने कानून की सही व्याख्या की है।

**अपील, पुनरीक्षण और पुनरावलोकन में अंतर:**


    अपील, पुनरीक्षण और पुनरावलोकन, तीनों ही उच्च अदालतों द्वारा निचली अदालतों के फैसलों की समीक्षा करने की प्रक्रियाएं हैं, लेकिन इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं:


**अपील:** अपील एक वैधानिक अधिकार है, यानी इसे कानून द्वारा मान्यता प्राप्त है। अपील में, उच्च अदालत निचली अदालत के फैसले के तथ्यों और कानून दोनों की समीक्षा कर सकती है। अपील एक अलग प्रक्रिया है और इसमें निचली अदालत के रिकॉर्ड और नई दलीलें शामिल होती हैं।

**पुनरीक्षण:** पुनरीक्षण एक विवेकाधीन शक्ति है जो उच्च न्यायालयों को दी गई है। इसका उपयोग तब किया जाता है जब निचली अदालत ने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर, कानून का उल्लंघन करके या प्रक्रियात्मक त्रुटि करके कोई फैसला दिया हो। पुनरीक्षण में, उच्च अदालत आमतौर पर केवल कानून के मुद्दों की समीक्षा करती है, तथ्यों की नहीं।

**पुनरावलोकन:** पुनरावलोकन भी एक विवेकाधीन शक्ति है। इसका उपयोग अदालत द्वारा अपने स्वयं के फैसले में हुई स्पष्ट त्रुटि को सुधारने के लिए किया जाता है। पुनरावलोकन केवल तभी संभव है जब रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि हो और आमतौर पर फैसले के बाद एक निश्चित समय सीमा के भीतर दायर किया जाना चाहिए।

**दोषमुक्ति के निर्णय के विरुद्ध अपील:**


    दोषमुक्ति का मतलब है कि किसी व्यक्ति को आपराधिक आरोप से बरी कर दिया गया है। आमतौर पर, एक बार जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषमुक्त कर दिया जाता है, तो उसे उसी अपराध के लिए दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में, राज्य या पीड़ित पक्ष दोषमुक्ति के फैसले के खिलाफ अपील दायर कर सकते हैं।

**दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील की प्रक्रिया:**


1.**अपील दायर करना:** दोषमुक्ति के फैसले के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में दायर की जाती है। अपील में, यह बताना होता है कि निचली अदालत ने कहां गलती की और क्यों फैसले को पलटा जाना चाहिए।


2.**अदालत का अनुमोदन:** दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील दायर करने के लिए उच्च न्यायालय की अनुमति की आवश्यकता हो सकती है।


3.**सुनवाई:** यदि उच्च न्यायालय अपील को स्वीकार करता है, तो वह मामले की सुनवाई करेगा। सुनवाई में, अभियोजन पक्ष ( prosecution) और बचाव पक्ष (defense) दोनों को अपने तर्क प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा।


4.**फैसला:** सुनवाई के बाद, उच्च न्यायालय अपना फैसला सुनाएगा। उच्च न्यायालय दोषमुक्ति के फैसले को बरकरार रख सकता है, उसे पलट सकता है, या मामले को पुनर्विचार के लिए निचली अदालत में वापस भेज सकता है।

**निष्कर्ष:**

    अपील एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रिया है जो न्याय की निष्पक्षता सुनिश्चित करने में मदद करती है। यह पुनरीक्षण और पुनरावलोकन से अलग है। दोषमुक्ति के फैसले के खिलाफ अपील एक जटिल प्रक्रिया है, लेकिन यह पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने का एक महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है। 

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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अलीबाई का बचाव

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (Bharatiya Sakshya Adhiniyam 2023) एक महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज है जो भारतीय न्यायालयों में साक्ष्यों के स्वीकार्यता और उनके मूल्यांकन को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम में कई महत्वपूर्ण अवधारणाओं को परिभाषित और स्पष्ट किया गया है, जिनमें से एक है "अलीबाई" (Alibi) का बचाव। 

**अलीबाई क्या है?**

    सरल शब्दों में, अलीबाई शब्द लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ अन्यत्र या कही और है. अर्थात् जिस समय कोई अपराध घटित हुआ, उस समय आरोपी किसी अन्य स्थान पर मौजूद था और इसलिए वह अपराध करने में सक्षम नहीं था। यह एक सशक्त रक्षात्मक रणनीति हो सकती है, क्योंकि यदि सफलतापूर्वक साबित हो जाए तो यह आरोपी को आरोप से मुक्त कर सकती है।

**भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 में अलीबाई का प्रावधान:**

    यद्यपि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 में अलीबाई शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है, लेकिन इसका निहितार्थ धारा 103 और 106 में पाया जा सकता है। ये धाराएं साक्ष्यों के भार (Burden of Proof) से संबंधित हैं।

* **धारा 103:** यह धारा सामान्य सिद्धांत स्थापित करती है कि जो कोई भी किसी तथ्य का दावा करता है, उसे उसे साबित करना होगा। इसका मतलब है कि यदि कोई आरोपी यह दावा करता है कि अपराध के समय वह कहीं और था (अलीबाई का दावा), तो यह जिम्मेदारी उसकी है कि वह इस दावे को साबित करे।

* **धारा 106:** यह धारा उन तथ्यों से संबंधित है जो विशेष रूप से किसी व्यक्ति के ज्ञान में हैं। यदि अलीबाई का दावा किसी विशेष जानकारी पर निर्भर करता है जो केवल आरोपी को ही पता है, तो उसे अदालत को उस जानकारी को प्रस्तुत करके अपने दावे को साबित करना होगा।

**अलीबाई के बचाव के लिए आवश्यक शर्तें:**

अलीबाई के बचाव को प्रभावी बनाने के लिए, निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक है:


**समय और स्थान का स्पष्ट उल्लेख:** आरोपी को यह स्पष्ट रूप से बताना होगा कि अपराध के समय वह किस स्थान पर था और कितने बजे तक वहां था। अस्पष्ट या विरोधाभासी जानकारी अलीबाई के बचाव को कमजोर कर सकती है।
**विश्वसनीय साक्ष्य:** आरोपी को अपने दावे को साबित करने के लिए विश्वसनीय साक्ष्य पेश करने होंगे। यह साक्ष्य गवाहों की गवाही, दस्तावेज़, तस्वीरें, वीडियो या अन्य प्रासंगिक सामग्री के रूप में हो सकता है।
**तत्काल सूचना:** आम तौर पर, अलीबाई के बचाव के बारे में जितनी जल्दी हो सके अदालत और अभियोजन पक्ष को सूचित किया जाना चाहिए। देरी से सूचना बचाव को कमजोर कर सकती है।

**अदालत का दृष्टिकोण:**

    अदालत अलीबाई के बचाव को सावधानीपूर्वक देखती है। अदालत साक्ष्यों की विश्वसनीयता का मूल्यांकन करती है और यह सुनिश्चित करती है कि आरोपी ने अपने दावे को साबित करने के लिए उचित प्रयास किए हैं। यदि अलीबाई का बचाव पूरी तरह से साबित हो जाता है, तो अदालत आरोपी को दोषमुक्त कर सकती है।

**अलीबाई के बचाव का महत्व:**

    अलीबाई का बचाव निर्दोष लोगों को गलत आरोपों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जाता है। यह कानूनी प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।

**निष्कर्ष:**

    अलीबाई का बचाव भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के तहत एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय है। यह आरोपी को यह साबित करने का अवसर देता है कि वह अपराध के समय घटनास्थल पर मौजूद नहीं था और इसलिए अपराध करने में सक्षम नहीं था। हालांकि, इस बचाव को सफलतापूर्वक स्थापित करने के लिए, आरोपी को ठोस सबूतों के साथ अपने दावे को साबित करना होगा और समय पर अदालत को सूचित करना होगा। इस प्रकार, अलीबाई का बचाव न्याय प्रणाली में निष्पक्षता और समानता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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Wednesday, 16 April 2025

BNSS में प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम के प्रावधान

    भारतीय न्याय संहिता (BNSS) न केवल अपराधों और दंडों को पुनर्गठित करती है, बल्कि प्रतिकारात्मक न्याय (Restorative Justice) और पीड़ित प्रतिकार स्कीम (Victim Compensation Scheme) पर भी विशेष ध्यान केंद्रित करती है। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है जो अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के साथ-साथ पीड़ितों के अधिकारों और जरूरतों को प्राथमिकता देता है। 

**प्रतिकारात्मक न्याय: एक नया दृष्टिकोण**

    प्रतिकारात्मक न्याय पारंपरिक दंडनीय दृष्टिकोण से हटकर एक ऐसा दर्शन है जो अपराध के कारण हुए नुकसान को सुधारने पर केंद्रित है। यह पीड़ित, अपराधी और समुदाय को एक साथ लाता है ताकि अपराध के परिणामों को समझा जा सके और उसे ठीक करने के लिए एक समझौता किया जा सके। BNSS में प्रतिकारात्मक न्याय को स्पष्ट रूप से परिभाषित तो नहीं किया गया है, लेकिन कुछ ऐसे प्रावधान जरूर शामिल किए गए हैं जो इसके सिद्धांतों के अनुरूप हैं।

**समझौते के माध्यम से समाधान:** BNSS कुछ मामलों में समझौते के माध्यम से समाधान की अनुमति देती है। यह समझौता तब हो सकता है जब पीड़ित और अपराधी अपराध के नतीजों को स्वीकार करते हैं और क्षतिपूर्ति या अन्य उपायों के माध्यम से नुकसान को कम करने पर सहमत होते हैं। इससे न्यायालय पर बोझ कम होता है और पीड़ित को त्वरित न्याय मिलने की संभावना बढ़ जाती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि समझौते के लिए अपराध की प्रकृति और गंभीरता पर विचार किया जाता है, और कुछ गंभीर अपराधों में यह संभव नहीं है।

**सजा में वैकल्पिक उपाय:** BNSS के तहत सजा सुनाते समय न्यायालय अपराधियों को सुधारात्मक उपाय (Corrective measures) जैसे सामुदायिक सेवा, परामर्श, और शिक्षा कार्यक्रम अपनाने के लिए कह सकते हैं। ये उपाय अपराधियों को उनके कार्यों के लिए जिम्मेदारी लेने और भविष्य में अपराधों को रोकने में मदद कर सकते हैं।

**पीड़ित की भूमिका पर बल:** BNSS में पीड़ितों को अधिक अधिकार दिए गए हैं, जिसमें सुनवाई के दौरान अपनी बात रखने का अधिकार भी शामिल है। यह प्रतिकारात्मक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है, जहां पीड़ितों को प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने और अपनी जरूरतों और चिंताओं को व्यक्त करने का अवसर मिलता है।

**पीड़ित प्रतिकार स्कीम: पीड़ितों को आर्थिक सहायता**


BNSS में पीड़ित प्रतिकार स्कीम से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं। यह योजना अपराध के पीड़ितों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का लक्ष्य रखती है, खासकर उन मामलों में जहां अपराधी को पहचाना नहीं जा सका है या उसके पास क्षतिपूर्ति देने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
**राज्य सरकार की भूमिका:** प्रत्येक राज्य सरकार को पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए एक पीड़ित प्रतिकार स्कीम स्थापित करने का आदेश दिया गया है। यह स्कीम उन पीड़ितों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है जिन्हें अपराध के कारण चोट लगी है, विकलांगता हुई है या जिनकी मृत्यु हो गई है।

**मुआवजे के लिए मानदंड:** मुआवजे की राशि अपराध की गंभीरता, पीड़ित की चोट की प्रकृति, चिकित्सा खर्चों और अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर निर्धारित की जाती है। स्कीम में मुआवजे के लिए पात्रता मानदंड और आवेदन प्रक्रिया भी निर्दिष्ट की गई है।

**मुआवजा प्राप्त करने की प्रक्रिया:** पीड़ितों को पुलिस स्टेशन या मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करना होगा, जिसमें अपराध की जानकारी और नुकसान का विवरण देना होगा। इसके बाद, पीड़ित प्रतिकार स्कीम प्राधिकरण द्वारा आवेदन की समीक्षा की जाती है और मुआवजे की राशि निर्धारित की जाती है।

**अतिरिक्त मुआवज़े का प्रावधान:** यदि अपराधी को दोषी ठहराया जाता है और वह मुआवजे का भुगतान करने में असमर्थ है, तो न्यायालय राज्य सरकार को पीड़ित प्रतिकार स्कीम से अतिरिक्त मुआवजा प्रदान करने का निर्देश दे सकता है।

**BNSS में पीड़ित प्रतिकार स्कीम के मुख्य लाभ:**


**पीड़ितों को वित्तीय सहायता:** यह योजना अपराध के पीड़ितों को चिकित्सा खर्चों, पुनर्वास लागत और आजीविका के नुकसान सहित विभिन्न प्रकार के खर्चों को कवर करने में मदद करती है।
**न्याय तक पहुंच में सुधार:** यह योजना उन पीड़ितों के लिए न्याय तक पहुंच को आसान बनाती है जिनके पास कानूनी सहायता लेने या अपराधी से मुआवजा वसूलने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
**पीड़ितों के अधिकारों को बढ़ावा देना:** यह योजना पीड़ितों के अधिकारों को मान्यता देती है और उन्हें अपराध न्याय प्रणाली में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
**सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना:** यह योजना समाज में कमजोर और वंचित लोगों की सुरक्षा को मजबूत करती है और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देती है।

**चुनौतियां और आगे की राह:**

हालांकि BNSS में प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन इन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने में कुछ चुनौतियां भी हैं:

**जागरूकता की कमी:** पीड़ितों, पुलिस अधिकारियों और न्यायपालिका के बीच इन योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।
**प्रक्रियात्मक बाधाएं:** मुआवजे के लिए आवेदन प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाना महत्वपूर्ण है।
**पर्याप्त संसाधन:** राज्य सरकारों को पीड़ित प्रतिकार स्कीम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए पर्याप्त वित्तीय और मानव संसाधन आवंटित करने की आवश्यकता है।
**प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण:** पुलिस अधिकारियों, न्यायाधीशों और अन्य हितधारकों को प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम के सिद्धांतों और प्रक्रियाओं पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।

**निष्कर्ष:**

    भारतीय न्याय संहिता (BNSS) में प्रतिकारात्मक न्याय और पीड़ित प्रतिकार स्कीम के प्रावधान एक सकारात्मक बदलाव हैं जो अपराध न्याय प्रणाली को अधिक पीड़ित-केंद्रित और मानवीय बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।  इन योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने से न केवल पीड़ितों को न्याय मिलेगा, बल्कि अपराधियों को सुधरने और समाज में फिर से शामिल होने का अवसर भी मिलेगा।  हालांकि, इन योजनाओं की सफलता के लिए सरकार, न्यायपालिका, पुलिस और नागरिक समाज सहित सभी हितधारकों के बीच सक्रिय सहयोग और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि इन प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए ताकि पीड़ितों को वास्तविक लाभ मिल सके और समाज में न्याय और समानता को बढ़ावा मिले।

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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"एक आरोपी को दोषमुक्त या दोषसिद्ध होने पर उसी अपराध के लिए दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता" (दोहरे खतरे का सिद्धांत)

    एक आरोपी को उसी अपराध के लिए दोबारा मुकदमा चलाने से बचाता है, जिसके लिए उसे पहले ही दोषमुक्त या दोषसिद्ध किया जा चुका है। यह सिद्धांत **'दोहरे खतरे (Double Jeopardy)'** के विरुद्ध सुरक्षा के रूप में जाना जाता है और यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार अदालत के चक्कर न काटने पड़ें।

**दोहरे खतरे का सिद्धांत क्या है?**


    दोहरे खतरे का सिद्धांत एक मौलिक कानूनी सिद्धांत है जो यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह सिद्धांत मानता है कि एक व्यक्ति को पहले ही कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा है और उसे फिर से उसी प्रक्रिया से गुजारना अनुचित होगा। यह राज्य की शक्ति के दुरुपयोग को रोकने और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति मनमाने अभियोजन से सुरक्षित हैं।

**धारा 300 (भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 - CrPC की धारा 300 के समान):** यह धारा स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा एक बार दोषी ठहराया या बरी कर दिया जाता है, तो उसे उसी अपराध के लिए फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति को पहले ही कानूनी प्रक्रिया का सामना करने के बाद फिर से उसी मुकदमे का सामना न करना पड़े।

**अनुच्छेद 20(2) (भारतीय संविधान):** यह अनुच्छेद दोहरे खतरे के सिद्धांत को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करता है। यह कहता है कि किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार कानूनी प्रक्रिया से न गुजरना पड़े।

**दोहरे खतरे के सिद्धांत की आवश्यकता**

दोहरे खतरे के सिद्धांत की आवश्यकता कई कारणों से है:

**अधिकारों की सुरक्षा:** यह व्यक्तियों को राज्य की मनमानी शक्ति से बचाता है।
**न्याय सुनिश्चित करना:** यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को अनिश्चित काल तक मुकदमेबाजी से न गुजरना पड़े।
**संसाधनों का कुशल उपयोग:** यह अदालतों और अभियोजन एजेंसियों के संसाधनों को बचाने में मदद करता है।
***अंतिम निर्णय:** यह कानूनी मामलों में निश्चितता और अंतिम निर्णय सुनिश्चित करता है।

**दोहरे खतरे के सिद्धांत की सीमाएं**

हालांकि दोहरे खतरे का सिद्धांत व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं:

**अलग-अलग अपराध:** यदि व्यक्ति पर अलग-अलग अपराधों के लिए आरोप लगाए जाते हैं, भले ही वे एक ही घटना से संबंधित हों, तो दोहरे खतरे का सिद्धांत लागू नहीं होगा।
**अलग-अलग न्यायालय:** यदि व्यक्ति को एक न्यायालय द्वारा बरी कर दिया जाता है, लेकिन दूसरे न्यायालय में मुकदमा चलाया जाता है, तो दोहरे खतरे का सिद्धांत लागू नहीं होगा। (हालांकि, ऐसे मामलों में कानूनी जटिलताएं और अपवाद लागू हो सकते हैं।)
**धोखाधड़ी या मिलीभगत:** यदि बरी करने या दोषसिद्धि में धोखाधड़ी या मिलीभगत शामिल है, तो दोहरे खतरे का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता है।
**अपील:** दोषमुक्ति के खिलाफ राज्य द्वारा उच्च न्यायालय में अपील दायर करने पर दोबारा मुकदमा चलाने के बराबर नहीं माना जाता। यह कानूनी प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है।

**उदाहरण के साथ स्पष्टीकरण**

    मान लीजिए कि 'राम' पर चोरी करने का आरोप लगाया गया है और अदालत ने उसे बरी कर दिया है। अब, उसी चोरी के लिए, राम पर दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यह दोहरे खतरे के सिद्धांत का एक स्पष्ट उदाहरण है।

    लेकिन, अगर राम पर उसी चोरी के साथ-साथ किसी को नुकसान पहुंचाने का भी आरोप लगता है, और उसे चोरी के आरोप से बरी कर दिया जाता है, तो उसे नुकसान पहुंचाने के आरोप के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है, क्योंकि यह एक अलग अपराध है।

**निष्कर्ष**

    BNSS में 'दोहरे खतरे' के खिलाफ सुरक्षा एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है जो व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है और न्याय सुनिश्चित करता है। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार मुकदमा न चलाया जाए, जिससे राज्य की मनमानी शक्ति पर अंकुश लगता है और कानूनी मामलों में स्थिरता आती है। यह BNSS में शामिल किए गए कई प्रगतिशील उपायों में से एक है, जिसका उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक निष्पक्ष और कुशल बनाना है।    

 (**अस्वीकरण:** यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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BNSS: सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ देने का आदेश

    'सदाचरण की परिवीक्षा' पर अभियुक्त को छोड़ देना, जिसका अर्थ है उसे जेल भेजने के बजाय अच्छे आचरण की शर्त पर रिहा कर देना। 

**सदाचरण की परिवीक्षा: मूल अवधारणा**

    सदाचरण की परिवीक्षा, जैसा कि BNSS में परिकल्पित है, अभियुक्त को सुधार का अवसर प्रदान करती है। इसका उद्देश्य विशेष रूप से युवा अपराधियों और पहली बार अपराध करने वालों को जेल के कठोर वातावरण से बचाना है, जहां वे और अधिक आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने की संभावना रखते हैं। इस व्यवस्था के तहत, अभियुक्त को कुछ शर्तों के साथ रिहा किया जाता है, जैसे:

*   नियमित रूप से परिवीक्षा अधिकारी से मिलना।
*   कानून का पालन करना।
*   शराब या नशीले पदार्थों का सेवन न करना।
*   समुदाय सेवा में भाग लेना (कुछ मामलों में)।

**BNSS में सदाचरण की परिवीक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान**

BNSS में सदाचरण की परिवीक्षा से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्रावधान हैं जिन पर ध्यान देना आवश्यक है:

**अपराधों की प्रकृति:** यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी प्रकार के अपराधों के लिए सदाचरण की परिवीक्षा उपलब्ध नहीं है। गंभीर अपराधों, जैसे हत्या और बलात्कार, के लिए यह विकल्प उपलब्ध नहीं हो सकता है।
**आयु और पृष्ठभूमि:** न्यायालय अभियुक्त की आयु, पृष्ठभूमि और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों पर विचार करेगा। युवा अपराधियों और पहली बार अपराध करने वालों को वरीयता दी जा सकती है।
**पीड़ित का दृष्टिकोण:** न्यायालय पीड़ित की राय को भी ध्यान में रख सकता है, खासकर यदि अपराध पीड़ित को गंभीर नुकसान पहुंचाता है।
**परिवीक्षा अधिकारी की भूमिका:** परिवीक्षा अधिकारी यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि अभियुक्त शर्तों का पालन कर रहा है। वे अभियुक्त को पुनर्वास में भी मदद करते हैं।

**सदाचरण की परिवीक्षा के लाभ**

**जेल की भीड़ कम करना:** यह सजा का एक किफायती विकल्प है जो जेल की भीड़ को कम करने में मदद कर सकता है।
**अपराधियों का पुनर्वास:** यह अपराधियों को समाज में फिर से एकीकृत होने का अवसर प्रदान करता है।
**अपराध दर में कमी:** अध्ययनों से पता चला है कि सदाचरण की परिवीक्षा अपराध दर को कम करने में प्रभावी हो सकती है।

**चुनौतियाँ और संभावित कमियाँ**

**कार्यान्वयन की निगरानी:** यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि परिवीक्षा की शर्तों का ठीक से पालन किया जा रहा है।
**परिवीक्षा अधिकारियों पर बोझ:** परिवीक्षा अधिकारियों पर अत्यधिक बोझ हो सकता है, जिससे वे सभी मामलों पर प्रभावी ढंग से निगरानी करने में असमर्थ हो सकते हैं।
**सार्वजनिक सुरक्षा:** यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि सदाचरण की परिवीक्षा के तहत रिहा किए गए अभियुक्त सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा न बनें।

**निष्कर्ष**

    सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ देने का आदेश एक प्रगतिशील कदम है जो अपराधियों को सुधार का अवसर प्रदान करता है। हालाँकि, इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त संसाधनों, अच्छी तरह से प्रशिक्षित परिवीक्षा अधिकारियों और सार्वजनिक सुरक्षा पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसमें निस्संदेह भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार लाने की क्षमता है।

BNSS: सह अपराधी की क्षमा की निविदान

    भारतीय न्याय प्रणाली में अपराधों की जाँच और सुनवाई एक जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में, कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी मामले में शामिल कई आरोपियों में से कोई एक, जिसे 'सह-अपराधी' (Co-accused) कहा जाता है, क्षमा या माफी के लिए निवेदन करता है। इस तरह के निवेदन पर विचार करते समय, अदालत को विशेष सावधानी बरतनी होती है क्योंकि इसका असर पूरे मामले और न्याय की प्रक्रिया पर पड़ सकता है।

**सह-अपराधी की क्षमा निविदान क्या है?**

    एक सह-अपराधी, अपराध में शामिल अन्य आरोपियों के खिलाफ गवाही देने के बदले में, सजा से छूट पाने या कम सजा की मांग कर सकता है। यह आमतौर पर तब होता है जब सह-अपराधी जांच एजेंसियों को अपराध के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है, जो मामले को सुलझाने में मदद कर सकती है। इस प्रक्रिया को 'राजसाक्षी बनना' (Becoming an Approver) भी कहा जाता है।

   आम तौर पर, अदालत सह-अपराधी के क्षमा निविदान पर विचार करते समय निम्नलिखित कारकों पर ध्यान देती है:
 

**जानकारी की सच्चाई और प्रासंगिकता:** सह-अपराधी द्वारा दी गई जानकारी कितनी सटीक और मामले के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। क्या इससे अपराध की गुत्थी सुलझ सकती है और अन्य आरोपियों को दोषी ठहराने में मदद मिल सकती है?

**सहयोग की मात्रा:** सह-अपराधी ने जाँच एजेंसियों के साथ कितना सहयोग किया है। क्या उसने बिना किसी दबाव के स्वेच्छा से जानकारी दी है?
**सह-अपराधी की भूमिका:** अपराध में सह-अपराधी की भूमिका कितनी सक्रिय थी। क्या वह सिर्फ एक दर्शक था या उसने अपराध में सक्रिय रूप से भाग लिया?
**न्याय के हित:** क्या सह-अपराधी को क्षमा करना न्याय के हित में होगा? क्या इससे अन्य आरोपियों को दोषी ठहराने और अपराध को रोकने में मदद मिलेगी?

**अदालत की जिम्मेदारी:**


    सह-अपराधी को क्षमा करने का निर्णय अदालत का होता है और यह एक विवेकाधीन शक्ति है। अदालत को इस निर्णय को बहुत सावधानी से लेना होता है, क्योंकि इससे मामले में शामिल अन्य आरोपियों के अधिकारों पर असर पड़ सकता है। अदालत को यह सुनिश्चित करना होता है कि सह-अपराधी की क्षमा से न्याय का उल्लंघन न हो और पीड़ित के साथ अन्याय न हो।

**निष्कर्ष:**

    सह-अपराधी की क्षमा निविदान एक जटिल कानूनी मुद्दा है। अदालत को यह सुनिश्चित करना होता है कि सह-अपराधी को क्षमा करने का निर्णय न्याय के सिद्धांतों और पीड़ित के अधिकारों के अनुरूप हो। इस तरह के निर्णयों में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बनाए रखना, भारतीय न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता के लिए आवश्यक है।

 

(यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और कानूनी सलाह नहीं है।)

BNSS: अभियोजन वापस लेना

**अभियोजन वापस लेने का तात्पर्य:**

    अभियोजन वापस लेने का अर्थ है सरकार या अभियोजन पक्ष द्वारा किसी आपराधिक मामले को आगे न बढ़ाने का निर्णय लेना। यह निर्णय किसी मामले की शुरुआत के बाद किसी भी स्तर पर लिया जा सकता है, लेकिन निर्णय सुनाए जाने से पहले।


**BNSS और अभियोजन वापस लेना:**


    BNSS में अभियोजन वापस लेने की प्रक्रिया को दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure - CrPC) की मौजूदा प्रावधानों के अनुरूप ही रखा गया है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण पहलू ध्यान देने योग्य हैं:


*   **सार्वजनिक हित:** अभियोजन वापस लेने का मुख्य आधार हमेशा सार्वजनिक हित (Public Interest) होना चाहिए। इसका अर्थ है कि मामला वापस लेने से समाज का कल्याण होना चाहिए और न्याय का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
*   **न्यायालय की भूमिका:** CrPC की धारा 321 के तहत, अभियोजन पक्ष को किसी मामले को वापस लेने के लिए न्यायालय की अनुमति लेनी होती है। न्यायालय को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि अभियोजन वापस लेना उचित है और सार्वजनिक हित में है। BNSS भी इसी प्रक्रिया का पालन करती है।
*   **कारण बताना आवश्यक:** अभियोजन पक्ष को अभियोजन वापस लेने के कारणों को स्पष्ट रूप से बताना होता है। ये कारण कानूनी और तथ्यात्मक होने चाहिए और न्यायालय को संतुष्ट करने वाले होने चाहिए।

**अभियोजन वापस लेने के कारण:**


    अभियोजन पक्ष विभिन्न कारणों से किसी मामले को वापस लेने का निर्णय ले सकता है, जिनमें शामिल हैं:

*   **अपर्याप्त सबूत:** यदि अभियोजन पक्ष के पास आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं, तो वे मामला वापस लेने का निर्णय ले सकते हैं।
*   **साक्षी अनुपलब्ध:** यदि महत्वपूर्ण साक्षी अनुपलब्ध हैं या गवाही देने को तैयार नहीं हैं, तो मामला वापस लिया जा सकता है।
*   **जनहित:** कुछ मामलों में, सामाजिक सद्भाव बनाए रखने या अन्य जनहित कारणों से मामला वापस लेना उचित हो सकता है।
*   **राजनीतिक सुलह:** कभी-कभी, राजनीतिक सुलह को बढ़ावा देने के लिए भी अभियोजन वापस लिया जा सकता है।

**निहितार्थ:**

    अभियोजन वापस लेने की प्रक्रिया का समाज और न्याय प्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। यदि इस प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जाता है, तो यह न्याय को कमजोर कर सकता है और अपराधियों को दंड से बचने में मदद कर सकता है। इसलिए, न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियोजन वापस लेने का निर्णय केवल सार्वजनिक हित में लिया जाए और कानूनी सिद्धांतों का पालन करते हुए लिया जाए।

बीएनएसएस की धारा 360 द्वारा जोड़ी गई नई विशेषताएं क्या हैं? 

  • बीएनएसएस की धारा 360 में प्रावधान में परिवर्तन किया गया है, जो उन मामलों में लागू होगा जहां अभियोजन वापस लेने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक है। 
    • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (सीआरपीसी की धारा 321 के तहत) द्वारा जांच किए गए अपराधों के बजाय, नया प्रावधान किसी भी केंद्रीय अधिनियम के तहत जांच किए गए अपराध का प्रावधान करता है। 
  • इसके अलावा, इस धारा में एक नया प्रावधान भी जोड़ा गया है जो पहले नहीं था। 
    • नये प्रावधान में यह प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय मामले में पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना ऐसी वापसी की अनुमति नहीं देगा। 
    • इस प्रकार, इससे पीड़ित के हित को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि अभियोजन से हटने से पहले उन्हें सुनवाई का अवसर दिया जाता है। 
  • शेष सभी प्रावधान सीआरपीसी की धारा 321 के समान हैं।   

बीएनएसएस की धारा 360 और सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजन से वापसी की तुलनात्मक तालिका?  

धारा 321 सीआरपीसी  बीएनएसएस की धारा 360 

किसी मामले का भारसाधक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक न्यायालय की सहमति से निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी भी समय किसी व्यक्ति के अभियोजन से सामान्यतः या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के संबंध में, जिनके लिए उसका विचारण किया जा रहा है, हट सकता है; और ऐसे हटने पर - 

(क) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पूर्व किया गया है, तो अभियुक्त को ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में उन्मोचित कर दिया जाएगा;  

(ख) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पश्चात किया गया है, या जब इस संहिता के अधीन कोई आरोप अपेक्षित नहीं है, तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में दोषमुक्त कर दिया जाएगा। 

 

बशर्ते कि जहां ऐसा अपराध-  

(i) किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी कानून के विरुद्ध था जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है, या 

(ii) दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अधीन दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन द्वारा जांच की गई थी, या 

(iii) जिसमें केन्द्रीय सरकार की किसी संपत्ति का दुरुपयोग, विनाश या क्षति शामिल है, या (iv) केन्द्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते समय किया गया हो, 

और मामले का प्रभारी अभियोजक केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह, जब तक कि उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसा करने की अनुमति न दी गई हो, अभियोजन से हटने के लिए न्यायालय से उसकी सहमति के लिए आवेदन नहीं करेगा और न्यायालय, सहमति देने से पहले, अभियोजक को निर्देश देगा कि वह अभियोजन से हटने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुमति को उसके समक्ष प्रस्तुत करे। 

किसी मामले का भारसाधक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक न्यायालय की सहमति से निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी भी समय किसी व्यक्ति के अभियोजन से सामान्यतः या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के संबंध में, जिनके लिए उसका विचारण किया जा रहा है, हट सकता है; और ऐसे हटने पर, - 

(क) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पूर्व किया गया है, तो अभियुक्त को ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में उन्मोचित कर दिया जाएगा; 

(ख) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पश्चात किया गया है, या जब इस संहिता के अधीन कोई आरोप अपेक्षित नहीं है, तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में दोषमुक्त कर दिया जाएगा: 

 

बशर्ते कि जहां ऐसा अपराध-  

(i) किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध था जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है; या  

(ii) किसी केन्द्रीय अधिनियम के अंतर्गत जांच की गई हो; या  

(iii) केन्द्रीय सरकार की किसी संपत्ति का दुर्विनियोजन, विनाश या क्षति शामिल थी; या (iv) केन्द्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते समय किया गया था, 

और मामले का भारसाधक अभियोजक केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह, जब तक कि उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसा करने की अनुमति न दी गई हो, अभियोजन से हटने के लिए न्यायालय से उसकी सहमति के लिए आवेदन नहीं करेगा और न्यायालय, सहमति देने से पूर्व, अभियोजक को निर्देश देगा कि वह अभियोजन से हटने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुमति को अपने समक्ष प्रस्तुत करे: 

आगे यह भी प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय मामले में पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना ऐसी वापसी की अनुमति नहीं देगा। 

 

महत्वपूर्ण मामले कानून क्या हैं? 

  • वीएस अच्युतानंदन बनाम आर. बालकृष्णन पिल्लई (1995) 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने एक मंत्री के खिलाफ अभियोजन वापसी के आवेदन का विरोध करने में विपक्षी नेता की अधिकारिता को स्वीकार कर लिया, क्योंकि कोई अन्य व्यक्ति ऐसे आवेदन का विरोध नहीं कर रहा था।
    •  एम. बालकृष्ण रेड्डी बनाम सरकार के प्रधान सचिव, गृह विभाग (1999) 
    • आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि: 
      • अपराध का शिकार न होने वाले व्यक्ति को भी अभियोजन से वापसी के आवेदन का विरोध करने का उतना ही अधिकार है जितना कि अपराध के पीड़ित को। 
      अदालत ने आगे कहा कि तीसरा व्यक्ति उस समुदाय का हिस्सा है जिसके विरुद्ध अपराध किया गया है , इसलिए उसे वापसी का विरोध करने का अधिकार है. 

     

    **निष्कर्ष:**

        भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में अभियोजन वापस लेने की प्रक्रिया में कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं किया गया है। यह प्रक्रिया अभी भी CrPC के प्रावधानों के अनुरूप ही है। हालांकि, इस प्रक्रिया का सही ढंग से पालन करना और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि यह केवल जनहित में किया जाए। इससे न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता बनी रहेगी और समाज में कानून का शासन कायम रहेगा।


    (यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और कानूनी सलाह नहीं है।)

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