भारत में जल प्रदूषण की बढ़ती समस्या के समाधान के लिए, भारत सरकार ने 1974 में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम पारित किया। यह अधिनियम जल प्रदूषण के निवारण और नियंत्रण के लिए एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत, केंद्रीय स्तर पर "केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड" (CPCB) और राज्य स्तर पर "राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड" (SPCB) की स्थापना की गई।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) भारत में जल प्रदूषण नियंत्रण और संबंधित मामलों में सर्वोच्च नियामक संस्था है। इसकी शक्तियाँ और कृत्य अधिनियम की विभिन्न धाराओं में परिभाषित हैं, जो इसे प्रभावी ढंग से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में सक्षम बनाती हैं।
**केंद्रीय बोर्ड की प्रमुख शक्तियाँ और कृत्य:**
1. **राष्ट्रीय नीति का समन्वय और मार्गदर्शन:** केंद्रीय बोर्ड का एक प्राथमिक कार्य पूरे देश में जल प्रदूषण निवारण और नियंत्रण से संबंधित गतिविधियों का समन्वय करना है। यह राज्य बोर्डों को मार्गदर्शन प्रदान करता है, समान मानक स्थापित करता है और राष्ट्रीय स्तर पर एक सुसंगत नीति सुनिश्चित करता है।
2. **राज्य बोर्डों की गतिविधियों का समन्वय:** अधिनियम केंद्रीय बोर्ड को राज्य बोर्डों की गतिविधियों का समन्वय करने का अधिकार देता है। इसमें उनके कामकाज की देखरेख करना, तकनीकी सहायता प्रदान करना और उनकी कार्यप्रणाली में एकरूपता सुनिश्चित करना शामिल है।
3. **तकनीकी और सांख्यिकीय जानकारी एकत्र करना और प्रसारित करना:** केंद्रीय बोर्ड जल प्रदूषण की स्थिति, इसके कारणों और निवारण के उपायों से संबंधित तकनीकी और सांख्यिकीय जानकारी एकत्र करता है। यह इस जानकारी को राज्य बोर्डों, सरकारी निकायों और जनता तक पहुँचाता है, जिससे जागरूकता बढ़ती है और प्रभावी निर्णय लेने में मदद मिलती है।
4. **अनुसंधान को बढ़ावा देना और उसका आयोजन करना:** जल प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और कमी से संबंधित अनुसंधान को बढ़ावा देना और उसका आयोजन करना केंद्रीय बोर्ड का एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसमें नई तकनीकों, प्रक्रियाओं और उपकरणों के विकास का समर्थन करना शामिल है।
5. **जल गुणवत्ता मानक स्थापित करना:** केंद्रीय बोर्ड विभिन्न जल निकायों (नदियों, झीलों, कुओं आदि) के लिए जल गुणवत्ता मानक स्थापित करता है। ये मानक विभिन्न उपयोगों (जैसे पीने, सिंचाई, औद्योगिक प्रक्रियाएं) के लिए जल की स्वीकार्य गुणवत्ता निर्धारित करते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि विभिन्न उद्देश्यों के लिए जल उपयुक्त बना रहे।
6. **अपशिष्ट निर्वहन के लिए मानक स्थापित करना:** औद्योगिक और घरेलू अपशिष्टों को जल निकायों में छोड़ने से पहले, केंद्रीय बोर्ड उनके लिए मानक निर्धारित करता है। ये मानक हानिकारक पदार्थों की स्वीकार्य मात्रा निर्धारित करते हैं जिन्हें निर्वहन में शामिल किया जा सकता है। यह अप्रत्यक्ष रूप से जल की गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करता है।
7. **राज्य बोर्डों को निर्देश जारी करना:** अधिनियम केंद्रीय बोर्ड को राज्य बोर्डों को किसी भी मामले पर निर्देश जारी करने का अधिकार देता है, जिसमें अधिनियम के तहत उनके कर्तव्यों का पालन सुनिश्चित करना शामिल है। ये निर्देश राज्य बोर्डों के कामकाज को विनियमित करने और राष्ट्रीय नीति के अनुसार कार्य करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
8. **कारखानों और उद्योगों का निरीक्षण:** केंद्रीय बोर्ड को किसी भी कारखाने, उद्योग या अन्य प्रतिष्ठान का निरीक्षण करने का अधिकार है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वे अधिनियम के प्रावधानों और निर्धारित मानकों का पालन कर रहे हैं। यह निरीक्षण अधिनियम के कार्यान्वयन और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
9. **जल प्रदूषण से संबंधित शिकायतों पर कार्रवाई करना:** केंद्रीय बोर्ड जल प्रदूषण से संबंधित शिकायतों को प्राप्त करता है और उन पर कार्रवाई करता है। यह जाँच पड़ताल करता है और उल्लंघन पाए जाने पर उचित कार्रवाई करता है।
10. **सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना:** केंद्रीय बोर्ड जल प्रदूषण के दुष्प्रभावों और इसके निवारण के उपायों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम चलाता है। इसमें शैक्षिक अभियान, सेमिनार और कार्यशालाएं आयोजित करना शामिल है।
**निष्कर्ष:**
जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दी गई शक्तियाँ और कृत्य इसे भारत में जल प्रदूषण के निवारण और नियंत्रण के लिए एक प्रभावी संस्था बनाते हैं। राष्ट्रीय नीति का समन्वय करने, मानक स्थापित करने, अनुसंधान को बढ़ावा देने और अनुपालन सुनिश्चित करने की इसकी क्षमता स्वच्छ जल निकायों को बनाए रखने और मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि, प्रभावी कार्यान्वयन के लिए लगातार निगरानी, पर्याप्त संसाधन और सभी हितधारकों के सहयोग की आवश्यकता है। जल प्रदूषण एक गंभीर चुनौती बनी हुई है, और केंद्रीय बोर्ड की भूमिका इस चुनौती का सामना करने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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