आधुनिक युग में विकास की अवधारणा सिर्फ आर्थिक प्रगति तक सीमित नहीं रह गई है। अब यह स्वीकार किया जा रहा है कि विकास टिकाऊ और समावेशी होना चाहिए, ताकि वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को भी पूरा किया जा सके। यही अवधारणा **पोषणीय विकास (Sustainable Development)** कहलाती है।
**पोषणीय विकास से आप क्या समझते है?**
सरल शब्दों में, पोषणीय विकास एक ऐसा विकास मॉडल है जो तीन प्रमुख स्तंभों पर आधारित है:
1. **आर्थिक स्थिरता (Economic Sustainability):** इसका अर्थ है दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि और स्थिरता को सुनिश्चित करना। इसमें सभी के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना, गरीबी कम करना और संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करना शामिल है।
2. **सामाजिक समानता (Social Equity):** इसका उद्देश्य समाज में समानता और न्याय को बढ़ावा देना है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आवास और अन्य मूलभूत सुविधाओं तक सभी की पहुँच सुनिश्चित करना, और सामाजिक असमानताओं को कम करना शामिल है।
3. **पर्यावरणीय संरक्षण (Environmental Protection):** यह पर्यावरण की सुरक्षा और प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग पर केंद्रित है। इसमें प्रदूषण कम करना, जैव विविधता का संरक्षण करना, जलवायु परिवर्तन से निपटना और पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ बनाए रखना शामिल है।
पोषणीय विकास इन तीनों स्तंभों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है, ताकि विकास एक साथ आर्थिक रूप से व्यवहार्य, सामाजिक रूप से न्यायसंगत और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ हो।
**भारत जैसे विकासशील देश में पोषणीय विकास प्राप्त करने में क्या कठिनाइया है?
भारत, एक विशाल और विविध विकासशील देश होने के नाते, पोषणीय विकास प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है, लेकिन इस मार्ग में अनेक चुनौतियाँ भी हैं। इन चुनौतियों का विवेचन इस प्रकार है:
* **विशाल जनसंख्या और गरीबी:** भारत की विशाल जनसंख्या प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव डालती है। बड़ी संख्या में लोगों का गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करना सामाजिक समानता और आर्थिक स्थिरता के लिए एक बड़ी बाधा है। गरीबी अक्सर पर्यावरण के प्रति गैर-जिम्मेदार व्यवहार को भी बढ़ावा देती है।
* **पर्यावरणीय क्षरण:** औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और कृषि प्रथाओं के कारण भारत में गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। वायु और जल प्रदूषण, वनों का क्षरण, मृदा अपरदन और जैव विविधता का नुकसान पोषणीय विकास के मार्ग में प्रमुख बाधाएं हैं।
* **संसाधनों का असमान वितरण:** प्राकृतिक संसाधनों और विकास के लाभों का असमान वितरण सामाजिक असमानता को बढ़ाता है। कुछ वर्गों को विकास का अधिक लाभ मिलता है, जबकि अन्य वंचित रह जाते हैं, जो सामाजिक स्थिरता के लिए हानिकारक है।
* **आधारभूत अवसंरचना की कमी:** ऊर्जा, परिवहन, जल निकासी और स्वच्छता जैसी आधारभूत अवसंरचना में कमी पोषणीय विकास के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, अपर्याप्त स्वच्छ ऊर्जा अवसंरचना पर्यावरणीय प्रदूषण को बढ़ाती है।
* **तकनीकी और वित्तीय बाधाएं:** पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ प्रौद्योगिकियों को अपनाना और बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता पोषणीय विकास के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन विकासशील देश होने के नाते भारत को तकनीकी जानकारी और वित्तीय संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है।
* **शासन और संस्थागत चुनौतियाँ:** कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण और विभिन्न सरकारी विभागों के बीच समन्वय की कमी पोषणीय विकास नीतियों को लागू करने में बाधा डालती है।
* **सामाजिक और सांस्कृतिक कारक:** कुछ पारंपरिक प्रथाएं और सामाजिक मान्यताएं, जैसे कि खुले में शौच या प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग, पोषणीय व्यवहार को अपनाने में चुनौती पेश करते हैं। जागरूकता की कमी भी एक प्रमुख कारक है।
* **जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:** भारत जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। बढ़ते तापमान, चरम मौसमी घटनाएं और समुद्री स्तर में वृद्धि कृषि, जल सुरक्षा और तटीय क्षेत्रों पर गंभीर प्रभाव डाल रही है, जो पोषणीय विकास के प्रयासों को बाधित कर रहा है।
**निष्कर्ष:**
पोषणीय विकास भारत के भविष्य के लिए अनिवार्य है। हालांकि, उपरोक्त चुनौतियाँ दर्शाती हैं कि यह मार्ग आसान नहीं है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और आम जनता के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। नीतियों को इस तरह से तैयार किया जाना चाहिए जो आर्थिक विकास को सामाजिक समानता और पर्यावरणीय संरक्षण के साथ एकीकृत करे। शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना, टिकाऊ प्रौद्योगिकियों में निवेश करना और प्रभावी शासन स्थापित करना पोषणीय विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं। भारत के पास अपनी विशाल क्षमता और युवा कार्यबल के साथ पोषणीय विकास के वैश्विक एजेंडे में एक अग्रणी भूमिका निभाने का अवसर है, जिससे न केवल अपनी जनता के जीवन स्तर में सुधार लाया जा सके, बल्कि एक हरित और न्यायसंगत भविष्य का निर्माण भी किया जा सके।
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