Sunday, 6 April 2025

प्रश्न_8_ अनुयोज्य दावे क्या होते है? अनुयोज्य दावे के अंतरितो के अधिकार एवं दायित्व क्या है? विवेचना कीजिये।

उत्तर _
अनुयोज्य दावे: परिभाषा, अधिकार, दायित्व और सीमाएँ
1. परिचय

    अनुयोज्य दावा एक विशिष्ट प्रकार की संपत्ति को संदर्भित करता है जो स्वामित्व और हस्तांतरण के योग्य है। यह एक ऐसी अमूर्त संपत्ति है जिसमें किसी ऋण का दावा या चल संपत्ति में लाभकारी हित शामिल होता है, जो दावेदार के वास्तविक कब्जे में नहीं है। संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (टीपीए) भारतीय कानून के तहत अनुयोज्य दावों से संबंधित मुख्य प्रावधानों को स्थापित करता है। इस अधिनियम की धारा 3, 130, 131 और 132 विशेष रूप से इस विषय पर प्रकाश डालती हैं। अनुयोज्य दावों का हस्तांतरण आधुनिक वाणिज्यिक और वित्तीय लेनदेन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे विभिन्न आर्थिक गतिविधियों को सुगम बनाया जा सकता है, इन अमूर्त अधिकारों को हस्तांतरणीय संपत्ति के रूप में मान्यता देकर, कानून लेनदारों और लाभार्थियों को अपने दावों का मूल्य प्राप्त करने में सक्षम बनाता है, भले ही वे अंतर्निहित संपत्ति पर सीधे कब्जा न कर सकें। यह तरलता बनाए रखने और भविष्य या आकस्मिक लाभों से जुड़े लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। 
    संपत्ति अंतरण अधिनियम अनुयोज्य दावों को एक प्रकार की संपत्ति के रूप में मान्यता देता है जिसे मूर्त संपत्तियों के समान कानूनी रूप से निपटाया जा सकता है । इस अधिनियम के भीतर अनुयोज्य दावों का विशिष्ट समावेश उनके हस्तांतरण और प्रवर्तन के लिए एक संरचित कानूनी दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य भारतीय कानून के तहत अनुयोज्य दावों की अवधारणा की विस्तृत विवेचना करना है। यह रिपोर्ट परिभाषा, कानूनी प्रावधानों, अंतरिती के अधिकारों और दायित्वों, उदाहरणों और हस्तांतरण से जुड़ी सीमाओं पर व्यापक रूप से चर्चा करेगी।
 
भारतीय कानून के तहत "अनुयोज्य दावे" की परिभाषा

    संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 3 अनुयोज्य दावे को परिभाषित करती है। इस धारा के अनुसार, अनुयोज्य दावा निम्नलिखित में से किसी भी प्रकार से सुरक्षित ऋण के अलावा किसी भी ऋण का दावा है: स्थावर संपत्ति का बंधक, जंगम संपत्ति का आड़मान या गिरवी, या जंगम या स्थावर संपत्ति का बंधक । इसके अतिरिक्त, इसमें जंगम संपत्ति में कोई भी लाभकारी हित शामिल है जो दावेदार के वास्तविक या आन्वयिक कब्जे में नहीं है। महत्वपूर्ण रूप से, इस दावे को सिविल न्यायालय द्वारा राहत प्रदान करने के लिए एक आधार के रूप में मान्यता प्राप्त होनी चाहिए, चाहे ऐसा ऋण या लाभकारी हित वर्तमान, प्रोद्भवमान, सशर्त या समाश्रित हो। 
    इस परिभाषा से पता चलता है कि अनुयोज्य दावे का सार ऋण के लिए सुरक्षा की अनुपस्थिति और चल संपत्ति में लाभकारी हित के लिए कब्जे की कमी पर निर्भर करता है, साथ ही सिविल न्यायालय द्वारा दावे को राहत के आधार के रूप में मान्यता दी जाती है। सुरक्षित ऋण, जैसे कि बंधक या गिरवी द्वारा सुरक्षित ऋण, अनुयोज्य दावे की श्रेणी से बाहर हैं। एक सुरक्षित ऋण वह होता है जिसके पुनर्भुगतान के लिए कुछ सुरक्षा प्रदान की जाती है। इसके विपरीत, एक असुरक्षित ऋण केवल भुगतान के वादे के आधार पर लिया जाता है, बिना किसी संपार्श्विक के। कानून उन दावों के हस्तांतरण को सुगम बनाने पर केंद्रित है जहां लेनदार का सहारा केवल देनदार के वादे के खिलाफ होता है। उदाहरण के लिए, यदि 'क' 'ख' से ₹1000 उधार लेता है और इसके बदले अपना घर उसके पास गिरवी रखता है, तो यह बंधक ऋण अनुयोज्य दावा नहीं है 1। हालांकि, यदि 'ग' पर 'घ' का ₹1000 बकाया है, तो 'घ' का दावा अनुयोज्य दावा है 1। चल संपत्ति में लाभकारी हित की अवधारणा का अर्थ है चल संपत्ति पर स्वामित्व का अधिकार होना लेकिन उसका वास्तविक कब्जा न होना 1। यह पहचानता है कि चल संपत्ति से संबंधित अधिकार भौतिक कब्जे के बिना भी मौजूद हो सकते हैं और इन अधिकारों को अनुयोज्य दावों के रूप में हस्तांतरित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि 'क' अपनी कार 'ख' को बेचता है और 'ख' ने भुगतान कर दिया है, तो 'ख' को कार पर कब्जा करने का अधिकार है; यदि उसे कब्जा नहीं मिलता है, तो वह इसे प्राप्त करने के लिए अदालत जा सकता है। लॉटरी टिकट में ड्रॉ में भाग लेने का अधिकार भी चल संपत्ति में एक लाभकारी हित माना जाता है, इसी तरह, एक किराएदार का अपने मकान मालिक से किराया प्राप्त करने का अधिकार भी एक अनुयोज्य दावा है। अंत में, अनुयोज्य दावा वह होना चाहिए जिसे सिविल न्यायालय राहत प्रदान करने के लिए एक वैध आधार मानता हो। वाद लाने का मात्र अधिकार, जिसका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता है, अनुयोज्य दावा नहीं है। उदाहरण के लिए, अपकृत्य में मानहानि या उपद्रव के लिए क्षतिपूर्ति का अधिकार अनुयोज्य दावा नहीं है क्योंकि यह अनिश्चित और व्यक्तिगत होता है । इसका तात्पर्य है कि दावा इस प्रकार का होना चाहिए कि एक सिविल न्यायालय उस पर न्यायनिर्णय कर सके और उसके लिए उपाय प्रदान कर सके।

अनुयोज्य दावों से संबंधित कानूनी प्रावधान और कानून

    संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 में अनुयोज्य दावों से संबंधित कई महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान हैं। धारा 130 अनुयोज्य दावे के हस्तांतरण से संबंधित है । यह धारा स्पष्ट रूप से बताती है कि अनुयोज्य दावे का हस्तांतरण, चाहे प्रतिफल के साथ हो या बिना, केवल अंतरणकर्ता या उसके विधिवत अधिकृत एजेंट द्वारा हस्ताक्षरित एक लिखित दस्तावेज के निष्पादन द्वारा ही प्रभावी होगा । ऐसे दस्तावेज का निष्पादन हस्तांतरण को पूर्ण और प्रभावी बनाता है, और अंतरणकर्ता के सभी अधिकार और उपचार अंतरिती में निहित हो जाते हैं । महत्वपूर्ण रूप से, धारा 130 अंतरिती को यह अधिकार भी देती है कि वह ऐसे हस्तांतरण दस्तावेज के निष्पादन पर, अंतरक की सहमति के बिना और उसे मुकदमे में पक्षकार बनाए बिना अपने नाम से वाद या कार्यवाही कर सके । इसके अतिरिक्त, यह धारा यह भी प्रावधान करती है कि ऋणी या अन्य व्यक्ति द्वारा ऋण या अन्य अनुयोज्य दावे के संबंध में हर लेनदेन, अंतरणकर्ता के मुकाबले में वैध होगा, जब तक कि ऋणी या अन्य व्यक्ति अंतरण का पक्षकार न हो या उसे विधिवत सूचना न मिल गई हो । यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह धारा समुद्री या अग्नि बीमा पॉलिसी के हस्तांतरण पर लागू नहीं होती है । धारा 131 अनुयोज्य दावे के हस्तांतरण की सूचना से संबंधित है। यह निर्धारित करता है कि हस्तांतरण की हर सूचना लिखित में होगी और अंतरणकर्ता या उसके अधिकृत एजेंट द्वारा हस्ताक्षरित होगी। यदि अंतरणकर्ता हस्ताक्षर करने से इनकार करता है, तो सूचना अंतरिती या उसके एजेंट द्वारा हस्ताक्षरित की जा सकती है। सूचना में अंतरिती का नाम और पता स्पष्ट रूप से उल्लेखित होना चाहिए । धारा 132 अनुयोज्य दावे के अंतरिती के दायित्व को संबोधित करती है। इसके अनुसार, अनुयोज्य दावे का अंतरिती उसे उन सभी देनदारियों और साम्याओं के अधीन लेगा जिनके अध्यधीन अंतरक, अंतरण की तारीख को उस दावे के बारे में था । उदाहरण के लिए, यदि 'क', 'ख' से ऋण लेता है और फिर उस ऋण को 'ग' को हस्तांतरित करता है, लेकिन 'क' स्वयं 'ख' का ऋणी है, तो 'ग' द्वारा 'ख' से ऋण की वसूली के मुकदमे में, 'ख' को 'क' के ऋण को समायोजित करने का अधिकार होगा, भले ही 'ग' को हस्तांतरण के समय इसकी जानकारी न हो। अनुयोज्य दावों से संबंधित अन्य प्रासंगिक कानूनी प्रावधानों में धारा 133 शामिल है, जो यह स्पष्ट करती है कि अंतरणकर्ता ऋणी की दिवालियापन के संबंध में कोई वारंटी नहीं देता है । धारा 134 बंधक ऋण के हस्तांतरण से संबंधित है। धारा 135 अग्नि बीमा पॉलिसी के तहत अधिकारों के समनुदेशन का प्रावधान करती हैधारा 136 न्यायालय से जुड़े अधिकारियों को अनुयोज्य दावों को खरीदने या उनमें किसी प्रकार की दखलअंदाजी करने से रोकती है । अंत में, धारा 137 परक्राम्य लिखतों आदि की बचत का प्रावधान करती है । ये विभिन्न धाराएँ सामूहिक रूप से अनुयोज्य दावों के हस्तांतरण और प्रवर्तन के लिए एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करती हैं।

अनुयोज्य दावे के अंतरिती के अधिकार

    अनुयोज्य दावे के अंतरिती को संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के तहत कई महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं। धारा 130 अंतरिती को यह अधिकार देती है कि वह अपने नाम से वाद या कार्यवाही कर सके। इसका अर्थ है कि अंतरिती को अंतरणकर्ता की संपत्ति प्राप्त किए बिना और उसे मुकदमे में शामिल किए बिना स्वयं अपने नाम पर मुकदमा दायर करने या कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है। यह अंतरिती का एक प्राथमिक अधिकार है, जो उन्हें अंतरणकर्ता पर निर्भर हुए बिना सीधे दावे को लागू करने की अनुमति देता है। इसके अतिरिक्त, अंतरिती को वाद या कार्यवाही करने के लिए अंतरणकर्ता की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है और न ही उसे मुकदमे में पक्षकार बनाने की आवश्यकता होती है। यह प्रावधान अंतरिती के लिए दावे को लागू करने की प्रक्रिया को और सरल बनाता है। धारा 132 के तहत, अंतरिती को वे सभी अधिकार और उपचार प्राप्त होते हैं जो अंतरक के पास थे। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अंतरिती उन सभी देनदारियों और सीमाओं से भी बंधा होगा जो अंतरक पर लागू थीं। संक्षेप में, अंतरिती अनिवार्य रूप से अंतरक के स्थान पर खड़ा होता है, दावे से जुड़े लाभ और बोझ दोनों को प्राप्त करता है।

अनुयोज्य दावे के अंतरिती के दायित्व और जिम्मेदारियाँ

    अनुयोज्य दावे के अंतरिती के प्रमुख दायित्वों और जिम्मेदारियों में से एक यह है कि वह अंतरण की तारीख को अंतरक पर लागू सभी देनदारियों और साम्याओं के अधीन होता है। यह प्रावधान संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 132 में स्पष्ट रूप से कहा गया है। इसका तात्पर्य है कि अंतरिती को दावे के संबंध में अंतरणकर्ता के समान कानूनी स्थिति विरासत में मिलती है। उदाहरण के लिए, यदि अंतरणकर्ता के पास दावे के संबंध में कोई ऋण या दायित्व था, तो अंतरिती उस ऋण या दायित्व के लिए भी उत्तरदायी होगा। यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि अनुयोज्य दावे का हस्तांतरण किसी भी पक्ष की स्थिति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं करता है। ऋणी के पास अंतरिती के खिलाफ वही बचाव उपलब्ध होंगे जो उसके पास अंतरणकर्ता के खिलाफ थे। इसके अतिरिक्त, धारा 133 यह स्पष्ट करती है कि अंतरणकर्ता ऋणी की दिवालियापन के संबंध में कोई निहित वारंटी नहीं देता है। इसलिए, हस्तांतरण के बाद ऋणी की वित्तीय अस्थिरता का जोखिम अंतरिती पर पड़ता है।

अनुयोज्य दावों के विशिष्ट उदाहरण

अनुयोज्य दावों की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए कुछ विशिष्ट उदाहरण निम्नलिखित हैं:

श्रेणी (Category)

उदाहरण (Examples)

असुरक्षित ऋण (Unsecured Debts)

बकाया चालान, बैंक ऋण (असुरक्षित भाग), वचन पत्र

भविष्य की आय (Future Income)

भविष्य में देय भरण-पोषण भत्ता, किराए का बकाया , ठेके का लाभ, व्यापार की आय प्राप्त करने का दावा 

धन वापसी के दावे (Claims for Return of Money)

अग्रिम राशि की वापसी का दावा, अर्नेस्ट मनी वापस पाने का दावा, बिक्री लेनदेन रद्द होने पर बिक्री खरीद का पैसा वापस पाने का दावा 

वित्तीय उपकरण (Financial Instruments)

बैंक में सावधि जमा, जीवन बीमा पॉलिसी , सामान्य बीमा पॉलिसी, जमा रसीद 

अन्य अधिकार (Other Rights)

किराया-खरीद समझौता, पुनर्खरीद का विकल्प, बही खाते के ऋण या दावे, साझेदारी फर्म के विघटन के बाद खाते के लिए मुकदमा करने का भागीदार का अधिकार , लॉटरी टिकट में अधिकार 


ये उदाहरण विभिन्न प्रकार के अमूर्त अधिकारों को दर्शाते हैं जिन्हें अनुयोज्य दावों के रूप में वर्गीकृत और हस्तांतरित किया जा सकता है, जो विभिन्न वित्तीय और वाणिज्यिक संदर्भों में उनकी व्यावहारिक प्रासंगिकता को उजागर करते हैं।

अनुयोज्य दावों के हस्तांतरण से जुड़ी सीमाएँ और शर्तें

    अनुयोज्य दावों के हस्तांतरण से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण सीमाएँ और शर्तें हैं जिनका पालन किया जाना आवश्यक है। सबसे पहले, धारा 130 स्पष्ट रूप से करती है कि अनुयोज्य दावे का हस्तांतरण मौखिक रूप से नहीं किया जा सकता है; इसे हमेशा लिखित रूप में होना चाहिए । यह आवश्यकता हस्तांतरण का एक औपचारिक रिकॉर्ड सुनिश्चित करती है, जिससे अस्पष्टता और संभावित विवादों को रोका जा सके। दूसरा, अनुयोज्य दावे का हस्तांतरण प्रतिफल के साथ या बिना किया जा सकता है। यह प्रावधान अनुयोज्य दावों को उपहार के रूप में या बिना किसी प्रत्यक्ष मौद्रिक आदान-प्रदान के हस्तांतरित करने की अनुमति देता है। तीसरा, धारा 131 के अनुसार, ऋणी को हस्तांतरण की सूचना लिखित में दी जानी चाहिए, जिसमें अंतरिती का नाम और पता हो । हालांकि, यदि ऋणी को हस्तांतरण की सूचना नहीं मिली है और वह अंतरणकर्ता को भुगतान करता है, तो ऐसा भुगतान वैध माना जाता है । चौथा, धारा 136 कुछ व्यक्तियों को अनुयोज्य दावों के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाती है । विशेष रूप से, कोई भी न्यायाधीश, कानूनी व्यवसायी या न्यायालय से संबद्ध अधिकारी किसी अनुयोज्य दावे को न तो खरीदेगा और न ही उसमें किसी प्रकार की दखलअंदाजी करेगा। इस प्रतिबंध का उद्देश्य हितों के टकराव को रोकना और न्यायिक प्रणाली की अखंडता बनाए रखना है। पांचवां, वाद लाने के अधिकार का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता है यदि उसका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व न हो । अनुयोज्य दावा एक संपत्ति है जिसका स्वतंत्र अस्तित्व होता है और वह हस्तांतरणीय है। उदाहरण के लिए, मानहानि के लिए वाद लाने का अधिकार व्यक्तिगत है और इसे हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। छठा, धारा 130 समुद्री या अग्नि बीमा पॉलिसी के हस्तांतरण पर लागू नहीं होती है, और यह बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 38 के प्रावधानों को प्रभावित नहीं करती है । अंत में, संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत हस्तांतरण के सामान्य सिद्धांत भी अनुयोज्य दावों पर लागू होते हैं। 
    इसका मतलब है कि कोई भी हस्तांतरण जो विधि द्वारा निषिद्ध है, या किसी ऐसे व्यक्ति को किया जाता है जो हस्तांतरिती होने से कानूनी रूप से अयोग्य है, या जो कानून के किसी प्रावधान का उल्लंघन करता है, या जो कपटपूर्ण है या जिसमें किसी व्यक्ति या उसकी संपत्ति को क्षति शामिल है, या जिसे न्यायालय द्वारा अनैतिक या लोक नीति के प्रतिकूल माना जाता है, वह वैध नहीं होगा।

निष्कर्ष -
    अनुयोज्य दावे भारतीय कानून के तहत एक महत्वपूर्ण अवधारणा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो असुरक्षित ऋणों और चल संपत्ति में लाभकारी हितों के हस्तांतरण और प्रवर्तन को सक्षम बनाती है। अंतरिती को दावे को लागू करने का अधिकार प्राप्त होता है, लेकिन वह अंतरणकर्ता के सभी संबंधित दायित्वों और साम्याओं के अधीन भी होता है। अनुयोज्य दावों का हस्तांतरण वाणिज्यिक लेनदेन, ऋण वसूली और विभिन्न अन्य वित्तीय गतिविधियों को सुविधाजनक बनाता है, जिससे यह कानूनी और आर्थिक व्यवस्था का एक अभिन्न अंग बन जाता है। संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 में निहित कानूनी प्रावधान इस प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं, जिससे पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।

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