उत्तर _
परिचय: दान की अवधारणा
'दान' शब्द का अर्थ है 'देने की क्रिया' । आधुनिक समय में, दान को किसी जरूरतमंद व्यक्ति को सहायता के रूप में कुछ देने के रूप में समझा जाता है । कानूनी दृष्टिकोण से, दान का तात्पर्य किसी वस्तु पर अपना अधिकार समाप्त करके दूसरे व्यक्ति का अधिकार स्थापित करना है । यह आवश्यक है कि दान में दी गई वस्तु के बदले में किसी प्रकार का विनिमय या प्रतिफल नहीं होना चाहिए। दान की प्रक्रिया तभी पूर्ण मानी जाती है जब दान में दी गई वस्तु पर प्राप्त करने वाले का अधिकार स्थापित हो जाए । यदि दान की वस्तु प्राप्तकर्ता का अधिकार होने से पहले ही नष्ट हो जाती है, तो उसे कानूनी रूप से दान नहीं कहा जा सकता । ऐसी स्थिति में दान करने वाले को किसी दोष का भागी नहीं माना जाता, लेकिन उसे दान का फल भी प्राप्त नहीं होता ।
भारतीय संस्कृति और धर्म में दान का एक महत्वपूर्ण स्थान है। सभी धर्मों में योग्य व्यक्ति को दान देना एक परम कर्तव्य माना गया है। हिंदू धर्म में दान की विशेष महिमा बताई गई है। विभिन्न प्रकार के दानों का उल्लेख मिलता है, जैसे कि धर्म दान, जो बिना किसी स्वार्थ के केवल धार्मिक भावना से दिया जाता है। अर्थ दान किसी विशेष उद्देश्य या सांसारिक लाभ की इच्छा से दिया जाता है। काम दान, जो अनुचित उद्देश्यों के लिए दिया जाता है, और लज्जा दान, जो सामाजिक दबाव या शर्म के कारण दिया जाता है। दान को उसकी पवित्रता और समय के आधार पर भी वर्गीकृत किया गया है, जैसे कि सात्विक, राजस और तामस दान। इसके अतिरिक्त, दान को कायिक (शारीरिक क्रिया द्वारा), वाचिक (वचन द्वारा), और मानसिक (मानसिक अर्पण) जैसे भेदों में भी विभाजित किया गया है।
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भारत में संपत्ति के दान से संबंधित कानूनी प्रावधानों को निर्धारित करता है। यह अधिनियम दान को एक विशिष्ट प्रकार के संपत्ति अंतरण के रूप में मान्यता देता है और इसकी वैधता के लिए कुछ आवश्यक शर्तों को निर्धारित करता है। इस अधिनियम के तहत, एक व्यक्ति अपनी संपत्ति को दूसरे व्यक्ति को बिना किसी प्रतिफल के स्वेच्छा से हस्तांतरित कर सकता है, और इस प्रक्रिया को कानूनी मान्यता प्राप्त है।
भारतीय संस्कृति और धर्म में दान का एक महत्वपूर्ण स्थान है। सभी धर्मों में योग्य व्यक्ति को दान देना एक परम कर्तव्य माना गया है। हिंदू धर्म में दान की विशेष महिमा बताई गई है। विभिन्न प्रकार के दानों का उल्लेख मिलता है, जैसे कि धर्म दान, जो बिना किसी स्वार्थ के केवल धार्मिक भावना से दिया जाता है। अर्थ दान किसी विशेष उद्देश्य या सांसारिक लाभ की इच्छा से दिया जाता है। काम दान, जो अनुचित उद्देश्यों के लिए दिया जाता है, और लज्जा दान, जो सामाजिक दबाव या शर्म के कारण दिया जाता है। दान को उसकी पवित्रता और समय के आधार पर भी वर्गीकृत किया गया है, जैसे कि सात्विक, राजस और तामस दान। इसके अतिरिक्त, दान को कायिक (शारीरिक क्रिया द्वारा), वाचिक (वचन द्वारा), और मानसिक (मानसिक अर्पण) जैसे भेदों में भी विभाजित किया गया है।
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भारत में संपत्ति के दान से संबंधित कानूनी प्रावधानों को निर्धारित करता है। यह अधिनियम दान को एक विशिष्ट प्रकार के संपत्ति अंतरण के रूप में मान्यता देता है और इसकी वैधता के लिए कुछ आवश्यक शर्तों को निर्धारित करता है। इस अधिनियम के तहत, एक व्यक्ति अपनी संपत्ति को दूसरे व्यक्ति को बिना किसी प्रतिफल के स्वेच्छा से हस्तांतरित कर सकता है, और इस प्रक्रिया को कानूनी मान्यता प्राप्त है।
दान की कानूनी परिभाषा
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 122 दान को परिभाषित करती है। इस धारा के अनुसार, दान किसी वर्तमान जंगम (चल) या स्थावर (अचल) संपत्ति का वह अंतरण है जो एक व्यक्ति द्वारा, जिसे दाता कहा जाता है, दूसरे व्यक्ति को, जिसे आदाता कहा जाता है, स्वेच्छा से और बिना किसी प्रतिफल के किया जाता है, और जिसे आदाता द्वारा या उसकी ओर से स्वीकार किया जाता है। इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि दान एक स्वैच्छिक और प्रतिफल रहित लेनदेन है जो दो जीवित व्यक्तियों के बीच संपन्न होता है और यह अंतिम प्रकृति का होता है। यदि संपत्ति की स्वीकृति से पहले आदाता की मृत्यु हो जाती है, तो ऐसा दान कानून की दृष्टि में शून्य माना जाता है। दान के लेनदेन में केवल दो पक्षों की आवश्यकता होती है: दान देने वाला और दान प्राप्त करने वाला।
कानूनी रूप से, 'दान' और 'उपहार' शब्दों को संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत समानार्थक माना जाता है। अधिनियम की धारा 122 'दान' को ही परिभाषित करती है, और इसे कानूनी संदर्भों में अक्सर 'उपहार' के रूप में भी जाना जाता है। जबकि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से इन शब्दों के उपयोग में कुछ भिन्नता हो सकती है, जहाँ 'दान' धार्मिक या धर्मार्थ कार्यों से अधिक जुड़ा हो सकता है, वहीं 'उपहार' व्यक्तिगत संबंधों में अधिक उपयोग किया जाता है। फिर भी, जब संपत्ति के हस्तांतरण की बात आती है, खासकर बिना किसी प्रतिफल के, तो संपत्ति अंतरण अधिनियम के प्रावधान दोनों पर समान रूप से लागू होते हैं।
एक वैध दान के लिए कुछ आवश्यक शर्तें हैं। इनमें सबसे पहले यह है कि संपत्ति वर्तमान में मौजूद होनी चाहिए, चाहे वह चल हो या अचल। दूसरा, दान करने वाला (दाता) कानून के तहत अनुबंध करने के लिए सक्षम होना चाहिए। तीसरा, दान प्राप्त करने वाला (आदाता) होना चाहिए, और उसकी स्वीकृति आवश्यक है। चौथा, संपत्ति का हस्तांतरण दाता द्वारा स्वेच्छा से और बिना किसी प्रतिफल के किया जाना चाहिए। पांचवां, आदाता द्वारा या उसकी ओर से दान का प्रतिग्रहण (स्वीकृति) आवश्यक है। अंत में, दान के समय संपत्ति का अस्तित्व में होना अनिवार्य है।
एक वैध दान के आवश्यक तत्व
एक वैध दान के लिए कई महत्वपूर्ण तत्वों का होना आवश्यक है:
स्वामित्व का अंतरण: दान में संपत्ति के स्वामित्व का पूर्ण हस्तांतरण शामिल होता है। दाता संपत्ति पर अपने सभी अधिकारों को प्राप्तकर्ता को हस्तांतरित कर देता है। दान करने वाले व्यक्ति को संपत्ति का स्वामी होना चाहिए या उसके पास मालिक से दान करने का वैध अधिकार होना चाहिए। यह हस्तांतरण पूर्ण होना चाहिए, जिसमें दाता के सभी अधिकार और हित दान प्राप्त करने वाले में निहित हो जाते हैं।
स्वामित्व का अंतरण: दान में संपत्ति के स्वामित्व का पूर्ण हस्तांतरण शामिल होता है। दाता संपत्ति पर अपने सभी अधिकारों को प्राप्तकर्ता को हस्तांतरित कर देता है। दान करने वाले व्यक्ति को संपत्ति का स्वामी होना चाहिए या उसके पास मालिक से दान करने का वैध अधिकार होना चाहिए। यह हस्तांतरण पूर्ण होना चाहिए, जिसमें दाता के सभी अधिकार और हित दान प्राप्त करने वाले में निहित हो जाते हैं।
वर्तमान संपत्ति: दान की जाने वाली संपत्ति दान के समय अस्तित्व में होनी चाहिए। संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 124 इस बात को स्पष्ट करती है। संपत्ति चल या अचल हो सकती है, और यह अधिनियम की धारा 6 के तहत हस्तांतरणीय होनी चाहिए। भविष्य में प्राप्त होने वाली संपत्ति का दान कानून की दृष्टि में शून्य माना जाता है, क्योंकि दान एक ऐसा लेनदेन है जो तुरंत या वर्तमान में प्रभावी होता है। यदि दान में वर्तमान और भविष्य दोनों प्रकार की संपत्ति शामिल है, तो भविष्य की संपत्ति के संबंध में दान शून्य होगा।
बिना प्रतिफल के अंतरण: दान संपत्ति का ऐसा हस्तांतरण है जो बिना किसी प्रतिफल के किया जाता है। एक वैध दान के लिए यह आवश्यक है कि दान प्रतिफल के बिना हो, अर्थात दान के बदले में किसी भी वस्तु या लाभ की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। दान संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के तहत एक उदारता का कार्य है जिसमें प्रतिफल का कोई तत्व नहीं होता है। दाता का उद्देश्य केवल आदाता को कुछ देना होता है, बिना किसी प्राप्ति की इच्छा के। यदि दान किसी प्रतिफल के बदले किया जाता है, तो ऐसा दान कानून में शून्य माना जाएगा। प्राकृतिक प्रेम और स्नेह को इस धारा के तहत प्रतिफल नहीं माना जाता है। प्रतिफल से तात्पर्य हमेशा ऐसे मूल्यवान प्रतिफल से है जिसका मूल्यांकन धन के रूप में किया जा सके।
स्वतंत्र सहमति: दान दाता द्वारा स्वेच्छा से किया जाना चाहिए, न कि किसी दबाव में आकर। यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का दान किसी प्रकार के दबाव या जोर-जबरदस्ती में आकर करता है, तो ऐसा दान शून्य माना जाएगा। दान दाता की स्वतंत्र इच्छा और सहमति से होना चाहिए। यदि दाता की सहमति स्वतंत्र नहीं है, जैसे कि वह बलपूर्वक या अनुचित प्रभाव के कारण दी गई है, तो वह दान वैध नहीं होगा। भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 15 और 16 क्रमशः बलपूर्वक और अनुचित प्रभाव को परिभाषित करती हैं।
आदाता द्वारा स्वीकृति: दान तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक कि आदाता उसे स्वीकार न कर ले। स्वीकृति स्पष्ट रूप से दी जा सकती है या यह आदाता के आचरण या परिस्थितियों से निहित हो सकती है। दानकर्ता के जीवनकाल में दान की स्वीकृति आवश्यक है। यदि दान प्राप्त करने वाला नाबालिग या मानसिक रूप से विक्षिप्त है, तो दान उसकी ओर से किसी सक्षम व्यक्ति, जैसे कि उसके संरक्षक द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए। यदि संपत्ति की स्वीकृति से पहले आदाता की मृत्यु हो जाती है, तो दान शून्य माना जाता है। यदि दो या दो से अधिक व्यक्तियों को संयुक्त रूप से दान दिया जाता है, तो यह आवश्यक है कि उन सभी द्वारा दान स्वीकार किया जाए; यदि उनमें से कोई एक भी स्वीकार नहीं करता है, तो उसका हित शून्य हो जाता है।
बिना प्रतिफल के अंतरण: दान संपत्ति का ऐसा हस्तांतरण है जो बिना किसी प्रतिफल के किया जाता है। एक वैध दान के लिए यह आवश्यक है कि दान प्रतिफल के बिना हो, अर्थात दान के बदले में किसी भी वस्तु या लाभ की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। दान संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के तहत एक उदारता का कार्य है जिसमें प्रतिफल का कोई तत्व नहीं होता है। दाता का उद्देश्य केवल आदाता को कुछ देना होता है, बिना किसी प्राप्ति की इच्छा के। यदि दान किसी प्रतिफल के बदले किया जाता है, तो ऐसा दान कानून में शून्य माना जाएगा। प्राकृतिक प्रेम और स्नेह को इस धारा के तहत प्रतिफल नहीं माना जाता है। प्रतिफल से तात्पर्य हमेशा ऐसे मूल्यवान प्रतिफल से है जिसका मूल्यांकन धन के रूप में किया जा सके।
स्वतंत्र सहमति: दान दाता द्वारा स्वेच्छा से किया जाना चाहिए, न कि किसी दबाव में आकर। यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का दान किसी प्रकार के दबाव या जोर-जबरदस्ती में आकर करता है, तो ऐसा दान शून्य माना जाएगा। दान दाता की स्वतंत्र इच्छा और सहमति से होना चाहिए। यदि दाता की सहमति स्वतंत्र नहीं है, जैसे कि वह बलपूर्वक या अनुचित प्रभाव के कारण दी गई है, तो वह दान वैध नहीं होगा। भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 15 और 16 क्रमशः बलपूर्वक और अनुचित प्रभाव को परिभाषित करती हैं।
आदाता द्वारा स्वीकृति: दान तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक कि आदाता उसे स्वीकार न कर ले। स्वीकृति स्पष्ट रूप से दी जा सकती है या यह आदाता के आचरण या परिस्थितियों से निहित हो सकती है। दानकर्ता के जीवनकाल में दान की स्वीकृति आवश्यक है। यदि दान प्राप्त करने वाला नाबालिग या मानसिक रूप से विक्षिप्त है, तो दान उसकी ओर से किसी सक्षम व्यक्ति, जैसे कि उसके संरक्षक द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए। यदि संपत्ति की स्वीकृति से पहले आदाता की मृत्यु हो जाती है, तो दान शून्य माना जाता है। यदि दो या दो से अधिक व्यक्तियों को संयुक्त रूप से दान दिया जाता है, तो यह आवश्यक है कि उन सभी द्वारा दान स्वीकार किया जाए; यदि उनमें से कोई एक भी स्वीकार नहीं करता है, तो उसका हित शून्य हो जाता है।
दाता और आदाता की क्षमता: दान करने वाला व्यक्ति बालिग और स्वस्थ मस्तिष्क का होना चाहिए। वह किसी भी प्रकार की कानूनी अक्षमता से ग्रस्त नहीं होना चाहिए। दाता को अनुबंध करने के लिए सक्षम होना चाहिए। इसके विपरीत, दान प्राप्त करने वाले व्यक्ति के लिए अनुबंध करने में सक्षम होना आवश्यक नहीं है। एक नाबालिग या विकृत दिमाग वाला व्यक्ति भी दान प्राप्त कर सकता है, हालांकि नाबालिग की ओर से दान लेने का कार्य उसके संरक्षक द्वारा किया जाता है.
दान पत्र के लिए आवश्यक निर्देश: अचल संपत्ति के दान को कानूनी रूप देने के लिए दान पत्र (Gift Deed) तैयार करना और उसे पंजीकृत कराना आवश्यक होता है। दान पत्र में दान की जा रही संपत्ति का स्पष्ट विवरण होना चाहिए। प्राप्तकर्ता का नाम, पता और अन्य आवश्यक जानकारी भी दान पत्र में दर्ज होनी चाहिए। दान पत्र पर दाता द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए। कुछ मामलों में, प्राप्तकर्ता को भी हस्ताक्षर करने की आवश्यकता हो सकती है। दान पत्र को कम से कम दो गवाहों की उपस्थिति में पंजीकृत कराया जाना चाहिए। संपत्ति के मूल्य के आधार पर, दान पत्र पर उचित स्टाम्प शुल्क भी लगाया जाना चाहिए। भारयुक्त संपत्ति, जिस पर कोई कर्ज या अन्य देनदारी हो, का दान आमतौर पर नहीं किया जा सकता है; यदि ऐसी संपत्ति का दान करना है, तो पहले उस पर से भार हटाना होता है। एक बार दान पत्र विधिवत निष्पादित और पंजीकृत हो जाने के बाद, दान स्थायी माना जाता है।
दान पत्र के लिए आवश्यक निर्देश: अचल संपत्ति के दान को कानूनी रूप देने के लिए दान पत्र (Gift Deed) तैयार करना और उसे पंजीकृत कराना आवश्यक होता है। दान पत्र में दान की जा रही संपत्ति का स्पष्ट विवरण होना चाहिए। प्राप्तकर्ता का नाम, पता और अन्य आवश्यक जानकारी भी दान पत्र में दर्ज होनी चाहिए। दान पत्र पर दाता द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए। कुछ मामलों में, प्राप्तकर्ता को भी हस्ताक्षर करने की आवश्यकता हो सकती है। दान पत्र को कम से कम दो गवाहों की उपस्थिति में पंजीकृत कराया जाना चाहिए। संपत्ति के मूल्य के आधार पर, दान पत्र पर उचित स्टाम्प शुल्क भी लगाया जाना चाहिए। भारयुक्त संपत्ति, जिस पर कोई कर्ज या अन्य देनदारी हो, का दान आमतौर पर नहीं किया जा सकता है; यदि ऐसी संपत्ति का दान करना है, तो पहले उस पर से भार हटाना होता है। एक बार दान पत्र विधिवत निष्पादित और पंजीकृत हो जाने के बाद, दान स्थायी माना जाता है।
भविष्य में प्राप्त होने वाली संपत्ति का दान
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 124 विशेष रूप से भविष्य में प्राप्त होने वाली संपत्ति के दान से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, दान में दी गई संपत्ति दान देते समय अस्तित्व में होनी चाहिए। यदि किसी दान में वर्तमान और भविष्य दोनों प्रकार की संपत्ति शामिल हैं, तो दान भविष्य की संपत्ति के संबंध में शून्य होगा। इसका तात्पर्य यह है कि जिस संपत्ति पर दाता का दान के समय कोई स्वामित्व या अधिकार नहीं है, उसे दान के रूप में हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। दान एक ऐसा लेनदेन है जो तुरंत या वर्तमान में प्रभावी होता है, इसलिए दान के समय वस्तु का अस्तित्व आवश्यक है।
भविष्य में प्राप्त होने वाली संपत्ति के दान की सामान्य अमान्यता का मुख्य कारण यह है कि दान के समय दाता का उस संपत्ति पर कोई वर्तमान अधिकार या स्वामित्व नहीं होता है। संपत्ति अंतरण अधिनियम की परिभाषा के अनुसार, संपत्ति का अंतरण एक ऐसा कार्य है जिसके द्वारा कोई जीवित व्यक्ति वर्तमान में या भविष्य में संपत्ति हस्तांतरित करता है। हालांकि, दान के मामले में, धारा 124 इस भविष्य के हस्तांतरण को सीमित करती है। चूंकि दान में दाता द्वारा आदाता के पक्ष में संपत्ति का स्वैच्छिक अंतरण आवश्यक है, इसलिए ऐसी संपत्ति जिसका दाता भविष्य में स्वामी बनेगा, उसका वर्तमान में दान नहीं किया जा सकता है।
हालांकि, भविष्य में प्राप्त होने वाली संपत्ति के दान के संबंध में कुछ अपवाद भी हैं:
विशेष उत्तराधिकार (Spes Successionis) का दान: संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 126 के तहत, भविष्य में दी जाने वाली संपत्ति का दान अमान्य है, सिवाय विशेष उत्तराधिकार के। विशेष उत्तराधिकार का अर्थ है भविष्य में उत्तराधिकार की संभावना। यदि कोई व्यक्ति अपनी अविभाजित संपत्ति में अपने संभावित हिस्से को दान करता है, तो ऐसा दान मान्य होगा।
वाद संस्थित करने का अधिकार (Right to Sue): संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 126 के तहत, वाद संस्थित करने के अधिकार का दान भी मान्य है। यदि किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति के संबंध में कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है, तो वह इस अधिकार को दान कर सकता है। उदाहरण के लिए, किसी संपत्ति पर कब्जे के लिए वाद दाखिल करने का अधिकार।
इसके अतिरिक्त, विरासत में मिली संपत्ति को भी दान देने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए कानूनी वारिसों या उत्तराधिकारियों से अनुमति लेना आवश्यक है। यह स्थिति भविष्य में प्राप्त होने वाली संपत्ति से थोड़ी भिन्न है, क्योंकि विरासत में मिली संपत्ति भविष्य में प्राप्त हो सकती है, लेकिन दान करने का अधिकार वर्तमान में (उत्तराधिकार खुलने के बाद) मौजूद होता है।
यदि किसी दान में वर्तमान और भविष्य दोनों प्रकार की संपत्ति शामिल हों, तो धारा 124 के अनुसार, दान भविष्य की संपत्ति के संबंध में शून्य होगा, जबकि वर्तमान संपत्ति का दान वैध रहेगा यदि उसे भविष्य की संपत्ति से अलग किया जा सके।
निष्कर्षः
दान, संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 122 के अनुसार, किसी वर्तमान चल या अचल संपत्ति का स्वैच्छिक और बिना प्रतिफल का हस्तांतरण है जिसे आदाता द्वारा स्वीकार किया जाना आवश्यक है। एक वैध दान के लिए स्वामित्व का अंतरण, वर्तमान संपत्ति का होना, बिना प्रतिफल का अंतरण, दाता की स्वतंत्र सहमति, आदाता द्वारा स्वीकृति, और दाता तथा आदाता की कानूनी क्षमता जैसे आवश्यक तत्व महत्वपूर्ण हैं। अचल संपत्ति के दान को कानूनी रूप देने के लिए दान पत्र का पंजीकरण आवश्यक होता है।
सामान्य तौर पर, संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 124 के तहत भविष्य में प्राप्त होने वाली संपत्ति का दान शून्य माना जाता है, क्योंकि दान एक वर्तमान में प्रभावी होने वाला हस्तांतरण है और दान के समय संपत्ति का अस्तित्व आवश्यक है। हालांकि, इसके दो मुख्य अपवाद हैं: विशेष उत्तराधिकार का दान और वाद संस्थित करने के अधिकार का दान, जिन्हें संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 126 के तहत मान्यता दी गई है। विरासत में मिली संपत्ति का दान भी कानूनी वारिसों की सहमति से किया जा सकता है।
सार संक्षेप :
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