Sunday, 13 April 2025

कर्मकार प्रतिकार अधिनियम 1923 के अंतर्गत नियोक्ता और संविदा संबंधी प्रावधान

    कर्मकार प्रतिकार अधिनियम, 1923 (कर्मकार मुआवजा अधिनियम, 1923) भारत में मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं या व्यावसायिक रोगों के कारण घायल होने या मृत्यु होने की स्थिति में मजदूरों को मुआवजा प्रदान करता है।

**नियोक्ता की परिभाषा:**

कर्मकार प्रतिकार अधिनियम, 1923 की धारा 2(1)(e) में नियोक्ता को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार, नियोक्ता का अर्थ है:

* **कोई भी व्यक्ति** जो किसी कारखाने, खदान, गोदी, निर्माण स्थल या अन्य परिसर में किसी कर्मचारी को रोजगार देता है, चाहे वह सीधे तौर पर या किसी ठेकेदार के माध्यम से हो।
* **राज्य सरकार**, जब राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से किसी कार्य को पूरा करने के लिए किसी कर्मचारी को रोजगार दिया जाता है।
* **स्थानीय प्राधिकारी**, जब स्थानीय प्राधिकारी द्वारा या उसकी ओर से किसी कार्य को पूरा करने के लिए किसी कर्मचारी को रोजगार दिया जाता है।
* **ठेकेदार**, जब किसी ठेकेदार द्वारा किसी व्यक्ति को किसी कार्य को पूरा करने के लिए रोजगार दिया जाता है, और यदि नियोक्ता (मुख्य नियोक्ता) ने ठेकेदार को अधिनियम के तहत मुआवजा देने के दायित्व से मुक्त नहीं किया है।
* कानूनी प्रतिनिधि, यदि नियोक्ता मर चुका है।

    सरल शब्दों में, नियोक्ता वह व्यक्ति या संस्था है जो किसी कर्मचारी को अपने अधीन काम करने के लिए रखता है और जिसके पास कर्मचारी के काम पर नियंत्रण होता है। यह महत्वपूर्ण है कि नियोक्ता की परिभाषा व्यापक है और इसमें न केवल प्रत्यक्ष नियोक्ता बल्कि ठेकेदार और अन्य मध्यस्थ भी शामिल हैं।

संविदा (Contracting) संबंधी

    कर्मकार प्रतिकार अधिनियम 1923 (The Workmen's Compensation Act, 1923) भारत में श्रमिकों के हितों की रक्षा करने और उन्हें काम के दौरान चोट लगने या मृत्यु होने पर मुआवजा प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम के अंतर्गत, संविदा (Contracting) करने से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान हैं जो नियोक्ता (employer) और संविदाकार (contractor) दोनों पर लागू होते हैं। यह सुनिश्चित करते हैं कि श्रमिक अपने अधिकारों से वंचित न रहें और उन्हें उचित मुआवजा मिले।

**मुख्य प्रावधान:**


1.  **नियोक्ता का दायित्व:** अधिनियम की धारा 12 के अनुसार, जब कोई नियोक्ता अपने व्यवसाय के भाग के रूप में किसी संविदाकार के माध्यम से काम करवाता है, तो वह संविदाकार द्वारा नियोजित कर्मकार को हुए किसी भी नुकसान के लिए उत्तरदायी होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि संविदाकार अपने कर्मकार को मुआवजा देने में असमर्थ है, तो मूल नियोक्ता को मुआवजा देना होगा।

2.  **मुआवजे की वसूली:** यदि नियोक्ता ने कर्मकार को मुआवजा दिया है क्योंकि संविदाकार ने मुआवजा देने में विफलता बरती, तो नियोक्ता संविदाकार से उस राशि की वसूली कर सकता है जिसका भुगतान उसने किया है। यह प्रावधान नियोक्ता को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित करता है कि संविदाकार अपने दायित्वों का निर्वहन करे।

3.  **मुआवजे की गणना:** कर्मकार प्रतिकार अधिनियम के अनुसार, मुआवजे की राशि कर्मकार की मासिक वेतन, चोट की गंभीरता और उम्र जैसे कारकों पर निर्भर करती है। यह अधिनियम स्पष्ट रूप से मुआवजे की गणना के तरीकों को परिभाषित करता है।

4.  **संविदाकार की जिम्मेदारी:** संविदाकार यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि उनके द्वारा नियोजित कर्मकार अधिनियम के तहत कवर किए जाएं। उन्हें दुर्घटनाओं के लिए मुआवजे का भुगतान करना होगा और दुर्घटना होने पर तुरंत संबंधित अधिकारियों को सूचित करना होगा।

5.  **कर्मकार के अधिकार:** कर्मकार को यह जानने का अधिकार है कि उनका नियोक्ता कौन है, भले ही वे किसी संविदाकार के माध्यम से नियोजित हों। उन्हें दुर्घटना होने पर मुआवजे का दावा करने का अधिकार है, चाहे वे स्थायी कर्मचारी हों या संविदा कर्मचारी।

**महत्व:**

    ये प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि संविदा श्रम का उपयोग करते समय श्रमिकों का शोषण न हो। वे नियोक्ता और संविदाकार दोनों को अपने दायित्वों के प्रति जवाबदेह बनाते हैं और कर्मकार को उचित मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार सुनिश्चित करते हैं।

**संविदा द्वारा त्याग (Contracting Out) संबंधी प्रावधान:**

    कर्मकार प्रतिकार अधिनियम, 1923 की धारा 17 'संविदा द्वारा त्याग' (Contracting Out) से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, कोई भी संविदा या समझौता जिसके द्वारा कर्मचारी अधिनियम के तहत प्राप्त होने वाले किसी भी अधिकार को त्यागता है या छोड़ने की कोशिश करता है, वह शून्य (void) होगा। इसका मतलब है कि नियोक्ता और कर्मचारी के बीच ऐसा कोई भी समझौता कानूनी रूप से मान्य नहीं होगा जो कर्मचारी को अधिनियम द्वारा दिए गए लाभों से वंचित करता है।

**महत्वपूर्ण बातें:**

* **अधिकारों का त्याग अवैध:** कोई भी समझौता जो कर्मचारी को चोट लगने या व्यावसायिक रोग होने पर मुआवजे के अधिकार को त्यागने के लिए बाध्य करता है, अवैध है।
* **समझौतों की वैधता:** कर्मचारी और नियोक्ता के बीच आपसी समझौते तभी मान्य होंगे जब वे अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप हों और कर्मचारी के हितों की रक्षा करें।
* **मुआवजे का अधिकार हस्तांतरणीय नहीं:** कर्मचारी का मुआवजे का अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।

**निर्णित वादों की सहायता से विवेचना:**

* **मैसर्स भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड बनाम वी. देवराजू [AIR 1993 SC 2559]:** इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कर्मकार प्रतिकार अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है और इसका उद्देश्य मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। न्यायालय ने कहा कि धारा 17 के तहत संविदा द्वारा त्याग संबंधी प्रावधानों की व्याख्या इस प्रकार की जानी चाहिए कि मजदूरों के हितों की रक्षा हो सके।
* **राजकुमार बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त [2004 (1) LLJ 352 (Raj.)]:** इस मामले में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने माना कि यदि कोई कर्मचारी स्वेच्छा से अपने अधिकारों को त्याग देता है, तो भी यह धारा 17 का उल्लंघन होगा यदि इससे अधिनियम के तहत मिलने वाले लाभों से वंचित किया जाता है।

**निष्कर्ष:**

    कर्मकार प्रतिकार अधिनियम, 1923 के तहत नियोक्ता की परिभाषा और संविदा संबंधी प्रावधान मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। धारा 17 यह सुनिश्चित करती है कि नियोक्ता कर्मचारियों को अधिनियम द्वारा प्रदत्त लाभों से वंचित करने के लिए कोई भी समझौता नहीं कर सकते। यह अधिनियम मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और उनके अधिकारों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नियोक्ताओं को इस अधिनियम के प्रावधानों का पालन करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके कर्मचारियों को कार्यस्थल पर सुरक्षा और उचित मुआवजा मिले।

(यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।)

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