मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 (Payment of Wages Act, 1936) भारत में श्रमिकों को समय पर और सही तरीके से उनकी मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। इस कानून को समझने के लिए, "मजदूरी" शब्द की परिभाषा को समझना अत्यंत आवश्यक है। यह परिभाषा अधिनियम की धारा २ (६) में दी गई है। आइये, इस परिभाषा को विस्तार से समझते हैं:
**धारा २ (६) के अनुसार "मजदूरी" क्या है?**
मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा २ (६) में "मजदूरी" को इस प्रकार परिभाषित किया गया है:
"मजदूरी का अर्थ है कोई भी मुआवजा (चाहे वह वेतन, भत्ते या अन्यथा हो) जो नियोजन की शर्तों को पूरा करने के लिए किए गए काम के लिए रोजगार में किसी व्यक्ति को भुगतान योग्य है और इसमें शामिल है -
(a) कोई भी अतिरिक्त पारिश्रमिक जो किसी समझौते की शर्तों के तहत या तो रोजगार के संविदा के अनुसार या अन्यथा भुगतान योग्य हो;
(b) किसी भी पुरस्कार, पुरस्कार या लाभ का मौद्रिक मूल्य;
(c) कोई भी धनराशि जो रोजगार के समाप्त होने पर रोजगार के नियमों और शर्तों के तहत भुगतान योग्य हो;
(d) कोई भी राशि जो किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए काम के लिए प्रतिपूर्ति के रूप में भुगतान योग्य हो, और जिसमें यात्रा भत्ता भी शामिल है।
**सरल शब्दों में, मजदूरी वह है जो एक कर्मचारी को उसके काम के बदले में मिलती है।** इसमें न केवल मूल वेतन शामिल है, बल्कि भत्ते, ओवरटाइम, बोनस और अन्य लाभ भी शामिल हो सकते हैं जो काम के बदले में दिए जाते हैं।
**मजदूरी में क्या शामिल नहीं है?**
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि धारा २ (६) में कुछ ऐसी चीजें भी बताई गई हैं जो मजदूरी में शामिल नहीं हैं। ये हैं:
* **नियोक्ता द्वारा दिए गए आवास, प्रकाश, पानी, चिकित्सा उपस्थिति या अन्य सुविधाओं का मूल्य;** उदाहरण के लिए, यदि नियोक्ता कर्मचारी को रहने के लिए आवास प्रदान करता है, तो उस आवास का मूल्य मजदूरी का हिस्सा नहीं माना जाएगा।
* **नियोक्ता द्वारा पेंशन निधि या भविष्य निधि में किया गया योगदान;** कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) या पेंशन योजनाओं में नियोक्ता का योगदान मजदूरी का हिस्सा नहीं है।
* **कर्मचारी द्वारा किए गए खर्चों को पूरा करने के लिए दिया गया यात्रा भत्ता;** यदि कर्मचारी आधिकारिक काम के लिए यात्रा करता है और नियोक्ता उसे यात्रा भत्ता देता है, तो वह मजदूरी का हिस्सा नहीं है।
* **नियोक्ता द्वारा दी गई कोई भी ग्रेच्युटी:** ग्रेच्युटी मजदूरी का हिस्सा नहीं है।
**इस परिभाषा का महत्व:**
मजदूरी की यह परिभाषा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह निर्धारित करती है कि मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 के प्रावधान किस प्रकार लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, नियोक्ता को यह सुनिश्चित करना होता है कि मजदूरी का भुगतान अधिनियम के तहत निर्धारित समय सीमा के भीतर किया जाए। यदि मजदूरी का भुगतान समय पर नहीं किया जाता है, तो कर्मचारी नियोक्ता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
**निष्कर्ष:**
मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा २ (६) में दी गई मजदूरी की परिभाषा को समझना, श्रमिकों और नियोक्ताओं दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि श्रमिकों को उनके काम के लिए उचित और समय पर मुआवजा मिले, और नियोक्ताओं को कानून का अनुपालन करने में मदद मिलती है।
उम्मीद है, यह जानकारी आपको मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा २ (६) को समझने में मददगार साबित होगी। यदि आपके कोई और प्रश्न हैं, तो कृपया कानूनी सलाह लेने में संकोच न करें।
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