Sunday, 13 April 2025

कर्मकार प्रतिकार अधिनियम, 1923: दुर्घटना का नियोजन से संबंध - मुआवज़े की पात्रता की कुंजी

"मात्र दुर्घटना ही किसी कर्मकार को मुआवजा पाने के अधिकारी नहीं बनाती है बल्कि वह दुर्घटना नियोजन के दौरान तथा नियोजन के उद्भूत होनी चाहिए"

    कर्मकार प्रतिकार अधिनियम, 1923 (कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923) श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम के तहत, किसी श्रमिक को कार्यस्थल पर दुर्घटना के कारण होने वाली शारीरिक चोट या मृत्यु के लिए मुआवजा प्रदान किया जाता है। हालांकि, यह समझना ज़रूरी है कि सिर्फ दुर्घटना घटित होना ही मुआवज़े का आधार नहीं है। अधिनियम यह स्पष्ट करता है कि मुआवजा पाने के लिए, दुर्घटना का **नियोजन के दौरान** और **नियोजन से उद्भूत** होना भी आवश्यक है।

    सरल शब्दों में, इसका अर्थ यह है कि दुर्घटना तब होनी चाहिए जब श्रमिक अपने नियोक्ता के लिए काम कर रहा हो, और दुर्घटना सीधे तौर पर उसके रोजगार के कारण या उसके रोजगार के दौरान होने वाली गतिविधियों से संबंधित होनी चाहिए।

आइये, कुछ निर्णित वादों की मदद से इस सिद्धांत को और अधिक गहराई से समझें:

**1. *सौरष्ट्र साल्ट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम बाई वलु राजा* (AIR 1958 SC 881):** इस मामले में, एक श्रमिक की मृत्यु उसके कार्यस्थल पर हृदयघात के कारण हुई। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि हृदयघात एक स्वाभाविक मृत्यु थी और यह नियोजन के दौरान जरूर हुई, लेकिन यह नियोजन से उद्भूत नहीं हुई थी। इसलिए, मुआवज़े का दावा अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि मृतक का कार्य उसके हृदयघात का कारण नहीं बना था।

**इस वाद से सीखने योग्य:** सिर्फ कार्यस्थल पर दुर्घटना होना पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह साबित करना ज़रूरी है कि कार्य करने के दौरान होने वाले तनाव या खतरे के कारण वह दुर्घटना हुई।

**2. *मैकेंज़ीज़ (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड बनाम श्रीमती मसूदा खातून* (2004 (3) LLN 157):** इस मामले में, एक श्रमिक को कार्यालय में चाय पीते समय करंट लग गया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। अदालत ने माना कि यद्यपि चाय पीना कार्य का प्रत्यक्ष हिस्सा नहीं था, लेकिन यह नियोक्ता द्वारा प्रदान की गई सुविधाओं का एक हिस्सा था और नियोजन के दौरान हुआ था। इसलिए, यह दुर्घटना नियोजन से उद्भूत हुई मानी गई और मुआवजा दिया गया।

**इस वाद से सीखने योग्य:** 'नियोजन से उद्भूत' की परिभाषा में वे गतिविधियां भी शामिल हो सकती हैं जो सीधे तौर पर कार्य से संबंधित नहीं हैं, लेकिन कार्यस्थल पर उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग करते समय घटित होती हैं।

**3. *लंकस्टर मोटार कंपनी लिमिटेड बनाम श्रीमती परमात्मा देवी* (AIR 1954 ऑल 195):** इस मामले में, एक ड्राइवर दुर्घटना के समय बस में सो रहा था। अदालत ने माना कि वह ड्यूटी पर था और बस में सोना उसकी ड्यूटी का हिस्सा था, इसलिए दुर्घटना नियोजन के दौरान और नियोजन से उद्भूत हुई।

**इस वाद से सीखने योग्य:** ड्यूटी के दौरान विश्राम भी नियोजन का हिस्सा माना जा सकता है, यदि नियोक्ता द्वारा इसकी अनुमति दी गई हो या यह कार्य की प्रकृति का अभिन्न अंग हो।

**निष्कर्ष:**

    कर्मकार प्रतिकार अधिनियम, 1923 श्रमिकों के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है, लेकिन मुआवज़े का दावा तभी सफल होता है जब यह साबित हो जाए कि दुर्घटना न केवल नियोजन के दौरान हुई, बल्कि नियोजन से उद्भूत भी हुई। इन निर्णित वादों से यह स्पष्ट होता है कि 'नियोजन के दौरान' और 'नियोजन से उद्भूत' की व्याख्या परिस्थिति के अनुसार भिन्न हो सकती है, और प्रत्येक मामले की बारीकियों पर ध्यान देना आवश्यक है। यदि कोई श्रमिक दुर्घटना का शिकार होता है, तो उसे यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत जुटाने चाहिए कि दुर्घटना उसके कार्य के कारण या कार्यस्थल पर काम करने के दौरान हुई।

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