Tuesday, 8 April 2025

वन अधिकार अधिनियम 2006 भारत में आदिवासियों और वनवासियों की किस तरह से मदद करता है?

 वन अधिकार अधिनियम 2006 भारत में आदिवासियों और वनवासियों की कई तरह से मदद करता है:

1. भूमि और संसाधन पर अधिकार:

  • यह अधिनियम आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों को उस वन भूमि पर स्वामित्व का अधिकार देता है जिस पर वे परंपरागत रूप से निर्भर रहे हैं। यह अधिकार अधिकतम 4 हेक्टेयर तक की खेती योग्य भूमि के लिए है।
  • उन्हें लघु वनोपज (Minor Forest Produce - MFP) को इकट्ठा करने, उपयोग करने और बेचने का अधिकार मिलता है। MFP में बांस, जड़ी-बूटियाँ, शहद, गोंद, पत्ते, फल आदि शामिल हैं, जो उनकी आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
  • उन्हें चराई भूमि और पारंपरिक रास्तों का उपयोग करने का अधिकार मिलता है।
  • उन्हें सामुदायिक वन संसाधनों का प्रबंधन और संरक्षण करने का अधिकार मिलता है।

2. बेदखली से सुरक्षा:

  • यह अधिनियम आदिवासियों और वनवासियों को उनकी सहमति के बिना वन भूमि से बेदखल किए जाने से सुरक्षा प्रदान करता है। किसी भी विकास परियोजना के लिए उनकी भूमि का अधिग्रहण करने से पहले उनकी सहमति आवश्यक है।

3. विकास और राहत का अधिकार:

  • अवैध बेदखली या जबरन विस्थापन के मामले में उन्हें पुनर्वास का अधिकार मिलता है।
  • उन्हें बुनियादी ढांचा (जैसे स्कूल, अस्पताल, आंगनवाड़ी) और अन्य विकास सुविधाओं तक पहुंच का अधिकार मिलता है।

4. ग्राम सभा को सशक्त बनाना:

  • यह अधिनियम ग्राम सभा को वन अधिकारों की मान्यता और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका देता है। ग्राम सभा को यह तय करने का अधिकार है कि कौन से व्यक्ति और समुदाय वन अधिकारों के हकदार हैं।

5. सांस्कृतिक और पारंपरिक अधिकारों की मान्यता:

  • यह अधिनियम आदिवासियों और वनवासियों के पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक प्रथाओं को मान्यता देता है जो वन संसाधनों से जुड़े हैं।
  • उन्हें अपने धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों तक पहुंचने और उनका उपयोग करने का अधिकार मिलता है जो वन के भीतर स्थित हैं।

6. महिलाओं के अधिकार:

  • इस अधिनियम के तहत भूमि के अधिकार महिलाओं के नाम पर भी दर्ज किए जा सकते हैं, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

संक्षेप में, वन अधिकार अधिनियम 2006 आदिवासियों और वनवासियों को उनकी भूमि, आजीविका, और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाता है और वन प्रबंधन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करता है। यह अधिनियम ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने और उन्हें वन संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को बहाल करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

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