स्कैचर-सिंगर सिद्धांत, जिसे टू-फैक्टर थ्योरी ऑफ इमोशन के रूप में भी जाना जाता है, मनोविज्ञान में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो भावनाओं की उत्पत्ति और अनुभव को समझने में मदद करता है। इस सिद्धांत को स्टेनली स्कैचर और जेरोम सिंगर ने 1962 में प्रतिपादित किया था।
सिद्धांत के मुख्य बिंदु:
- शारीरिक उत्तेजना: स्कैचर-सिंगर सिद्धांत के अनुसार, भावना का अनुभव करने के लिए सबसे पहले शारीरिक उत्तेजना (physiological arousal) होनी चाहिए। यह उत्तेजना विभिन्न भावनाओं के लिए समान होती है, जैसे कि दिल की धड़कन तेज होना, पसीना आना या सांस फूलना।
- संज्ञानात्मक मूल्यांकन: शारीरिक उत्तेजना के बाद, व्यक्ति उस उत्तेजना का संज्ञानात्मक मूल्यांकन (cognitive appraisal) करता है। वह यह समझने की कोशिश करता है कि यह उत्तेजना क्यों हो रही है। यह मूल्यांकन व्यक्ति के पिछले अनुभवों, वर्तमान स्थिति और सामाजिक संदर्भ पर आधारित होता है।
- भावना का अनुभव: संज्ञानात्मक मूल्यांकन के आधार पर, व्यक्ति एक विशिष्ट भावना का अनुभव करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति तेज दिल की धड़कन और पसीने का अनुभव करता है और उसे लगता है कि वह खतरे में है, तो वह डर का अनुभव करेगा। वहीं, यदि उसे लगता है कि वह किसी आकर्षक व्यक्ति के पास है, तो वह उत्तेजना का अनुभव करेगा।
सिद्धांत के महत्व:
- यह सिद्धांत भावनाओं की जटिल प्रकृति को समझने में मदद करता है।
- यह बताता है कि भावनाएं केवल शारीरिक प्रतिक्रियाएं नहीं हैं, बल्कि संज्ञानात्मक मूल्यांकन भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह सिद्धांत विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भों में भावनाओं के अनुभव को समझने में उपयोगी है।
सिद्धांत की आलोचना:
- कुछ शोधकर्ताओं ने इस सिद्धांत की आलोचना की है और तर्क दिया है कि शारीरिक उत्तेजना और संज्ञानात्मक मूल्यांकन हमेशा अलग-अलग प्रक्रियाएं नहीं होती हैं।
- कुछ शोधों में यह भी पाया गया है कि कुछ भावनाएं विशिष्ट शारीरिक प्रतिक्रियाओं से जुड़ी होती हैं, जो इस सिद्धांत के विपरीत है।
फिर भी, स्कैचर-सिंगर सिद्धांत भावनाओं के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण योगदान है और आज भी मनोवैज्ञानिकों द्वारा इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
No comments:
Post a Comment