Tuesday, 8 April 2025

भारत में गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधनों की स्थिति का आलोचनात्मक मूल्यांकन

 

भारत में गैर-परंपरागत ऊर्जा संसाधनों की स्थिति का आलोचनात्मक मूल्यांकन इस प्रकार किया जा सकता है:

सकारात्मक पहलू:

  • पर्यावरण के अनुकूल: गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जलविद्युत जीवाश्म ईंधन की तुलना में बहुत कम या शून्य प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। यह जलवायु परिवर्तन और वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए महत्वपूर्ण है।
  • नवीकरणीय: ये स्रोत प्राकृतिक रूप से पुन: उत्पन्न होते हैं, इसलिए वे दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करते हैं और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करते हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा: गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का विकास देश को ऊर्जा के लिए आयात पर निर्भरता कम करने में मदद करता है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा बढ़ती है।
  • विकेंद्रीकृत ऊर्जा उत्पादन: सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोत विकेंद्रीकृत ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं, जिससे दूरदराज के क्षेत्रों में बिजली पहुंचाना आसान हो जाता है।
  • तकनीकी विकास: भारत ने गैर-परंपरागत ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण तकनीकी प्रगति की है, खासकर सौर और पवन ऊर्जा में। उत्पादन लागत में कमी आई है और दक्षता में सुधार हुआ है।
  • सरकारी प्रोत्साहन: भारत सरकार ने गैर-परंपरागत ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियां और कार्यक्रम शुरू किए हैं, जैसे कि राष्ट्रीय सौर मिशन और राष्ट्रीय पवन ऊर्जा मिशन।
  • लक्ष्य प्राप्ति: भारत ने 2030 तक अपनी संस्थापित विद्युत क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य नवंबर 2021 में ही हासिल कर लिया था।

नकारात्मक पहलू और चुनौतियाँ:

  • उच्च प्रारंभिक लागत: गैर-परंपरागत ऊर्जा परियोजनाओं की प्रारंभिक लागत अक्सर पारंपरिक ऊर्जा परियोजनाओं से अधिक होती है।
  • अस्थिरता: सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोत मौसम की स्थिति पर निर्भर करते हैं, जिससे बिजली उत्पादन में अस्थिरता आ सकती है। इसके लिए ऊर्जा भंडारण समाधान की आवश्यकता होती है, जो महंगा हो सकता है।
  • भूमि अधिग्रहण: बड़े पैमाने पर सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए बड़ी मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है, जिससे भूमि अधिग्रहण एक चुनौती बन सकता है और स्थानीय समुदायों का विरोध हो सकता है।
  • आधारभूत संरचना: गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से उत्पादित बिजली को ग्रिड तक पहुंचाने के लिए मजबूत पारेषण और वितरण नेटवर्क की आवश्यकता होती है, जिसमें और निवेश की आवश्यकता है।
  • वित्तीय बाधाएँ: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए बैंकों से आसान ऋण सुविधा की अभी भी कमी है। वितरण कंपनियों द्वारा भुगतान में देरी और विद्युत खरीद समझौतों में पुनः मोलभाव जैसी चिंताएँ भी हैं।
  • आयात पर निर्भरता: भारत अभी भी नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों के लिए चीन और जर्मनी जैसे देशों से आयात पर निर्भर है, जिससे प्रणाली लागत बढ़ जाती है।
  • अनुसंधान और विकास: नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसंधान और आधुनिक विकास सुविधाओं की अभी भी कमी है।
  • जागरूकता की कमी: आम जनता के बीच गैर-परंपरागत ऊर्जा के लाभों और उपयोग के बारे में जागरूकता की कमी है, जिससे इसे अपनाने की गति धीमी है।
  • बायोमास ऊर्जा की चुनौतियाँ: बायोमास ऊर्जा के लिए ईंधन एकत्र करने में कठिनाई और खाना बनाते समय प्रदूषण जैसी समस्याएं हैं।

निष्कर्ष:

भारत में गैर-परंपरागत ऊर्जा संसाधनों में अपार संभावनाएं हैं और देश ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। यह ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और दूरदराज के क्षेत्रों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, उच्च प्रारंभिक लागत, अस्थिरता, भूमि अधिग्रहण, आधारभूत संरचना और वित्तीय बाधाओं जैसी चुनौतियों का समाधान करना होगा ताकि इन स्रोतों का पूरी क्षमता से उपयोग किया जा सके। सरकार, उद्योग और अनुसंधान संस्थानों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि इन चुनौतियों का समाधान किया जा सके और भारत को एक स्थायी और स्वच्छ ऊर्जा भविष्य की ओर ले जाया जा सके।

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